पर उपदेश कुशल बहुतेरे निबंध: यह संसार विरोधाभासों से भरा हुआ है। मनुष्य का स्वभाव भी कुछ ऐसा ही है कि वह दूसरों को उपदेश देना तो बहुत पसंद करता है, पर
पर उपदेश कुशल बहुतेरे निबंध - Par Updesh Kushal Bahutere Essay in Hindi
पर उपदेश कुशल बहुतेरे निबंध: यह संसार विरोधाभासों से भरा हुआ है। मनुष्य का स्वभाव भी कुछ ऐसा ही है कि वह दूसरों को उपदेश देना तो बहुत पसंद करता है, पर स्वयं उन उपदेशों का पालन करने से अक्सर कतराता है। इसी प्रवृत्ति को व्यक्त करने के लिए हिंदी की प्रसिद्ध कहावत "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" प्रयोग में लाई जाती है। इसका अर्थ है कि दूसरों को सीख देना बहुत आसान है, लेकिन जब वही बातें खुद के जीवन में लागू करनी हों, तो कठिनाई का अनुभव होता है। यह कहावत हमें आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है कि क्या हम वही करते हैं जो हम दूसरों को करने की सलाह देते हैं?
हम अपने आसपास के समाज में भी यही प्रवृत्ति देखते हैं। राजनीति से लेकर खेल, शिक्षा और जीवन के हर क्षेत्र में ऐसे लोग मिल जाएंगे जो सिर्फ दूसरों को सुधारने का जिम्मा उठाते हैं, लेकिन जब स्वयं के जीवन में उन बातों को अपनाने की बारी आती है, तो असफल हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, कई माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल फोन कम इस्तेमाल करने की नसीहत देते हैं, लेकिन स्वयं घंटों सोशल मीडिया पर व्यस्त रहते हैं। शिक्षक कई बार छात्रों को अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन स्वयं समय पर कक्षा में नहीं आते। कई बड़े नेता और प्रभावशाली लोग नैतिकता और ईमानदारी की बातें तो बहुत करते हैं, पर जब खुद को उन सिद्धांतों पर चलना होता है, तो वे बहाने ढूँढने लगते हैं।
यदि इतिहास के पन्नों को पलटा जाए, तो ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे, जहाँ लोगों ने केवल उपदेशों से नहीं, बल्कि अपने आचरण से समाज को दिशा दी। महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा की सिर्फ शिक्षा ही नहीं दी, बल्कि अपने जीवन में इसे पूरी तरह अपनाया भी। स्वामी विवेकानंद ने जो उपदेश दिए, उन्हें अपने जीवन का अंग बनाया। चाणक्य ने नीतियों की बातें केवल सिखाईं ही नहीं, बल्कि अपने जीवन में उनका अनुसरण करके दिखाया। यही कारण है कि इन महापुरुषों की बातें सदियों बाद भी प्रासंगिक बनी हुई हैं।
इस कहावत से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दूसरों को उपदेश देने से पहले हमें खुद को देखना चाहिए। यदि हम किसी को अनुशासन सिखाना चाहते हैं, तो पहले हमें स्वयं अनुशासित बनना होगा। यदि हम दूसरों को परिश्रम का महत्व समझाना चाहते हैं, तो हमें खुद परिश्रम की मिसाल पेश करनी होगी। समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सिर्फ उपदेश देने से कुछ नहीं होगा, बल्कि हमें अपने आचरण से दूसरों को प्रेरित करना होगा।
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