मेरे बचपन की यादें पर निबंध: बचपन जीवन का वह खूबसूरत दौर होता है, जब न कोई चिंता होती है और न ही कोई जिम्मेदारी। यह वह समय होता है जब हर छोटी चीज हमें
मेरे बचपन की यादें पर निबंध (Mere Bachpan ki Yaadein par Nibandh)
मेरे बचपन की यादें पर निबंध: बचपन जीवन का वह खूबसूरत दौर होता है, जब न कोई चिंता होती है और न ही कोई जिम्मेदारी। यह वह समय होता है जब हर छोटी चीज हमें खुशी से भर देती है—कभी मिट्टी में खेलना, तो कभी बारिश में भीगना। बचपन की यादें केवल बीते हुए पलों का संग्रह नहीं होतीं, बल्कि वे हमारे व्यक्तित्व को आकार देने वाली कहानियाँ होती हैं, जिन्हें याद करके हम जीवनभर मुस्कुराते रहते हैं।
गाँव का निर्मल जीवन
मेरा बचपन एक छोटे से गाँव में बीता, जहाँ चारों ओर हरियाली थी, खुला आसमान था, और पंछियों की चहचहाहट कानों में संगीत घोलती थी। हमारे घर के पास एक छोटी नदी बहती थी, जहाँ मैं और मेरे दोस्त घंटों नहाते, पानी में छपाछप करते और नाव बनाकर बहाते। गाँव में हर मौसम अपनी अलग ही छटा बिखेरता था—गर्मियों में आम के पेड़ों पर चढ़कर कच्चे आम तोड़ना और सर्दियों की अलाव में बैठकर कहानियाँ सुनना, यह सब बचपन की अनमोल यादें हैं।
दादा-दादी की कहानियाँ और माँ का स्नेह
बचपन की सबसे प्यारी यादों में से एक हैं मेरे दादा-दादी। दादी की कहानियाँ मुझे एक अलग ही दुनिया में ले जाती थीं—कभी परियों की दुनिया तो कभी वीरों की कथाएँ। उनकी कहानियों में मैं खो जाता था और कई बार तो सोते-सोते भी उन कहानियों के किरदारों के बारे में सोचता रहता था। दूसरी ओर, माँ के हाथों का बना गरमा-गरम खाना और उनकी ममता से भरी थपकी, जैसे सारी दुनिया की खुशियाँ मेरे हिस्से में ही आ गई हों।
मस्ती भरे त्योहार और धूमधाम
त्योहारों की बात करें तो बचपन में उनका अलग ही आनंद था। होली पर दोस्तों के साथ रंगों में भीगना, दीवाली पर दिए जलाना और मिठाइयाँ खाना, और रक्षाबंधन पर बहन से प्यार भरी लड़ाइयाँ—यह सब मेरे बचपन की सबसे अनमोल यादें हैं। त्योहार सिर्फ परंपराएँ नहीं थे, बल्कि ये हमारे परिवार और दोस्तों को और करीब लाने का बहाना भी थे।
पहली साइकिल और न हार मानने की सीख
मुझे आज भी वह दिन याद है जब मैंने पहली बार साइकिल चलाना सीखा था। शुरुआती प्रयासों में मैं कई बार गिरा, चोट भी लगी, लेकिन पापा की हिम्मत बढ़ाने वाली बातें मेरे कानों में गूंजती रहीं—"गिरोगे नहीं तो सीखोगे कैसे?" उस दिन मैंने सीखा कि असली जीत वही होती है जो हार को स्वीकार करके फिर से खड़े होने की ताकत देती है।
बचपन की मासूम गलतियाँ और सीख
बचपन में कई बार ऐसी शरारतें कीं जिनका ख्याल आते ही हंसी आ जाती है। कभी चोरी से आम तोड़ने गए और पकड़े गए, तो कभी दोस्तों के साथ नदी में ज्यादा देर खेलते रहने पर डांट पड़ी। लेकिन इन्हीं छोटी-छोटी घटनाओं ने सिखाया कि गलतियाँ जीवन का हिस्सा होती हैं, लेकिन उनसे सीखा जाए तो वही असली बुद्धिमानी है।
निष्कर्ष
बचपन केवल एक दौर नहीं, बल्कि वह नींव है जिस पर पूरा जीवन टिका होता है। ये यादें न केवल मुस्कुराने का कारण होती हैं, बल्कि हमें जीवन जीने की प्रेरणा भी देती हैं। वे सीख, जो हमने बचपन में खेल-खेल में सीखी थीं, आगे चलकर हमारे चरित्र का हिस्सा बन जाती हैं। यही वजह है कि जब भी हम अपने बचपन को याद करते हैं, तो मन में एक सुकूनभरी मुस्कान आ जाती है और दिल यही कहता है—"काश! बचपन के वे दिन फिर लौट आते!"
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