आत्मनिर्भरता पर निबंध : आत्मनिर्भरता का अर्थ है स्वावलम्बन। आत्मनिर्भरता से यह अर्थ बिलकुल भी नहीं है की व्यक्ति प्रत्येक कार्य स्वयं ही करे। यानी झाड़ू लगाने से लेकर रोटी बनाने और कपडे धोने तक। ऑफिस में ड्यूटी से लेकर बच्चों को पढ़ाने तक। वास्तव में स्वयं की और देश की आवश्यकताओं की पूर्ती करने की क्षमता ही स्वावलम्बन है। स्वावलम्बी व्यक्ति को ही सही मायने में आदर्श व्यक्ति माना जा सकता है। ऐसे व्यक्ति समाज रुपी बगीचे में एक सुगन्धित पुष्प के समान होते हैं जो अपने आस-पास के वातावरण को महकाकर रखते हैं।
आत्मनिर्भरता पर निबंध। Essay on Self Dependence in Hindi
आत्मनिर्भरता का अर्थ है स्वावलम्बन। आत्मनिर्भरता से यह अर्थ बिलकुल भी नहीं है की व्यक्ति प्रत्येक कार्य स्वयं ही करे। यानी झाड़ू लगाने से लेकर रोटी बनाने और कपडे धोने तक। ऑफिस में ड्यूटी से लेकर बच्चों को पढ़ाने तक। वास्तव में स्वयं की और देश की आवश्यकताओं की पूर्ती करने की क्षमता ही स्वावलम्बन है। जीवन में सच्ची सफलता पाने का एक ही मन्त्र है और वह है स्वावलम्बन। वीरों, कर्मयोगियों, नेता-अभिनेताओं आदि की सफलता का यही मूल आधार है।
स्वावलम्बी व्यक्ति को ही सही मायने में आदर्श व्यक्ति माना जा सकता है। ऐसे व्यक्ति समाज रुपी बगीचे में एक सुगन्धित पुष्प के समान होते हैं जो अपने आस-पास के वातावरण को महकाकर रखते हैं। स्वावलम्बी व्यक्ति कभी किसी की चापलूसी नहीं करता क्योंकि वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होता है। कितना भी कठिन कार्य हो पर वह कभी हार नहीं मानता है। ऐसे ही व्यक्ति देश को आगे ले जाते हैं और सभी का सम्मान अर्जित करते हैं।
किसी भी व्यक्ति को भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्ति आलसी और परिश्रमहीन हो जाते हैं। गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने भी कहा है की तुम अपना कर्म करो और फल की चिंता मत करो। कुछ लोग यह समझते हैं की जितना भगवान् चाहेगा उतना ही मिलेगा। एक धारणा यह भी प्रचलित है कि वक़्त से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को नहीं मिलता। परन्तु ऐसी ही सोच व्यक्ति को आलसी और अकर्मण्य बनाती है और नतीजा यह होता है कि समय हाथ से निकल जाता है और जितना भाग्य में है वह भी नहीं मिलता। ऐसे ही व्यक्ति जीवन में सिर्फ हाथ मलते रह जाते हैं इसलिए व्यक्ति को स्वावलम्बी होना चाहिए और समय का सम्मान करना चाहिए।
ईश्वर भी उन्ही के सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। वास्तव में वही व्यक्ति खुश रह सकता है जो कठिन परिश्रम से नहीं घबराता। वह केवल अपना काम पूरे मन से करता है और ऐसे व्यक्ति की ही जय-जयकार होती है। ये लोग दूसरों से सहायता की कामना नहीं करते बल्कि वे स्वयं दूसरों की सहायता करते हैं। अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरों का मुँह ताकना आचरण नहीं होता। स्वावलम्बी व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है क्योंकि वह कहने में नहीं बल्कि कर के दिखाने में विश्वास रखता है। इसीलिए कहा भी गया है कि जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं।
स्वावलम्बन ही वह मार्ग है जिस पर चलकर कोई व्यक्ति अपनी, समाज की तथा राष्ट्र की उन्नति कर सकता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति का चारों ओर सम्मान होता है। ऐसे व्यक्ति के शत्रु भी पीठ-पीछे उसका उदाहरण देते नहीं थकते। अतः प्रत्येक व्यक्ति को आलस्य त्यागकर स्वावलम्बी बनना चाहिए।
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