यदि मैं परीक्षक होता पर निबंध: एक परीक्षक का काम बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यदि मैं परीक्षक होता, तो मेरी पहली प्राथमिकता परीक्षा की निष्पक्षता सुनिश
यदि मैं परीक्षक होता पर निबंध (Yadi me Parikshak Hota Essay in Hindi)
यदि मैं परीक्षक होता पर निबंध: एक परीक्षक का काम बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यदि मैं परीक्षक होता, तो मेरी पहली प्राथमिकता परीक्षा की निष्पक्षता सुनिश्चित करना होता। मैं यह सुनिश्चित करता कि सभी परीक्षार्थियों को समान अवसर मिले और उन्हें किसी भी प्रकार का भेदभाव न झेलना पड़े। मैं परीक्षा हॉल में शांति बनाए रखता ताकि सभी छात्र बिना किसी बाधा के अपनी परीक्षा दे सकें।
यदि मैं परीक्षक होता तो मैं परीक्षा शुरू होने से पहले सभी परीक्षार्थियों को निर्देशों को स्पष्ट रूप से समझाता। मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि उन्हें परीक्षा के पैटर्न और समय सीमा के बारे में पूरी जानकारी हो। इसके अलावा, मैं यह भी सुनिश्चित करता हूं कि सभी परीक्षार्थियों के पास आवश्यक स्टेशनरी सामग्री हो।
परीक्षा के दौरान, मैं परीक्षा हॉल में लगातार गश्त करता रहता। मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि कोई भी परीक्षार्थी नकल न कर रहा हो। यदि मुझे किसी परीक्षार्थी को नकल करते हुए पाया जाता है, तो मैं तुरंत उचित कार्रवाई करता।
परीक्षा समाप्त होने के बाद, मैं सभी उत्तर पुस्तिकाओं को एकत्रित करता हूं और उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखता हूं। मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि कोई भी उत्तर पुस्तिका खो न जाए या क्षतिग्रस्त न हो।
यदि मैं परीक्षक होता तो एक परीक्षक के रूप में, मैं यह भी सुनिश्चित करता हूं कि परीक्षा के परिणाम समय पर घोषित किए जाएं। मैं सभी परीक्षार्थियों के अंकों की जांच करता हूं और यह सुनिश्चित करता हूं कि कोई भी गलती न हो।
मुझे पता है कि एक परीक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। एक परीक्षक के रूप में, मैं न केवल परीक्षाओं का आयोजन करता हूं, बल्कि छात्रों के भविष्य को भी आकार देता हूं। इसलिए, मैं अपनी जिम्मेदारी को बहुत गंभीरता से लेता हूं।
यदि मैं परीक्षक होता, तो मैं हमेशा निष्पक्ष और पारदर्शी रहता। मैं यह सुनिश्चित करता कि सभी परीक्षार्थियों को न्याय मिलें। मैं चाहता हूं कि सभी छात्र अपनी पूरी क्षमता के साथ परीक्षा दें और अच्छे अंक प्राप्त करें।
यदि मैं परीक्षक होता पर निबंध - 2
वर्तमान शिक्षाप्रणाली में परीक्षा का बहुत महत्त्व है। परीक्षा की सार्थकता का मुख्य आधार योग्य और अच्छे परीक्षकों पर है। अतः मैं यह दिखाना चाहता हूँ कि यदि मैं परीक्षक होता तो किन आदर्शों को अपने सामने रखता।
सचमुच, एक परीक्षक को तलवार की धार पर चलना पड़ता है। परीक्षक अपने ज्ञान और बुद्धि से साधारण और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की योग्यता का मूल्यांकन करता है। इस काम में उसे बहुत सावधानी और विवेक से काम लेना पड़ता है। परीक्षक के लिए भी न्यायाधीश के समान निष्पक्षता और संतुलित मस्तिष्क की आवश्यकता रहती है।
यदि मैं परीक्षक होता तो सबसे पहले अपने आपमें आदर्श परीक्षक के सब गुणों का विकास करता। मैं उन परीक्षकों की तरह न होता, जो उत्तरवहियों को इधर-उधर थोड़ा-बहुत देखकर या किसी की सिफारिश पर अंक रखते चले जाते हैं! मैं उन परीक्षकों के समान भी न होता, जो उत्तर पुस्तकों को जाँचना बाएँ हाथ का खेल समझते हैं और विद्यार्थियों की किस्मत से खेलते हैं! विद्यार्थी का नाम देखकर और नंबर या चेहरे को याद करके अंक देनेवाले परीक्षकों को भी मैं कभी पसंद नहीं करता। अंक देते समय जो कुछ लिखा है ! उसी को मैं अपने सामने रखता।
परीक्षक विद्यार्थियों का भाग्यविधाता है। उसका निर्णय विद्यार्थियों के लिए वरदान या अभिशाप बन सकता है। मैं यह कभी न भूलता कि विद्यार्थियों और अध्यापकों के स्तर में फर्क होता है। विद्यार्थी की शक्ति, समझदारी और उत्तर देने की योग्यता सीमित होती है। अतः उनके स्तर को ध्यान में रखकर ही मैं उत्तरपत्रों को जाँचता। मैं परीक्षक के रूप में
विद्यार्थियों के कोमल और आशापूर्ण हृदय को कभी चोट न पहुँचने देता। उदार और न्यायी दृष्टिकोण रखकर मैं सदा उन्हें अधिकाधिक अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करता।
परीक्षक बनकर मैं सभी प्रकार के प्रलोभनों से मुक्त रहता। आजकल कुछ परीक्षक रिश्वत, सिफारिश आदि के शिकार हो जाते हैं, किंतु मैं अपने कर्तव्य और ईमानदारी से कभी न चूकता। कभी किसी के दबाव में आकर कमजोर छात्र का समर्थन न करता, किसी योग्य विद्यार्थी की प्रगति में रुकावट न बनता।
इस प्रकार अपनी संवेदना, दृढ़ संकल्प और संयम से मैं परीक्षार्थियों के भविष्य को बनाता, न कि अपनी दूषित मनोवृत्ति से उनका जीवन नष्ट करता। मैं अपने कर्तव्य के उस पहलू का सदा ध्यान रखता, जिसका संबंध छात्रों के विकास, समाज की उन्नति और शिक्षा की प्रगति से है।
काश! मैं एक परीक्षक बन पाऊँ और अपने इन आदर्शों को पूरा कर सकूँ !
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