रीढ़ की हड्डी एकांकी के आधार पर गोपाल प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ: जगदीश चंद्र माथुर द्वारा रचित एकांकी "रीढ़ की हड्डी" में गोपाल प्रसाद का चरित्र
रीढ़ की हड्डी एकांकी के आधार पर गोपाल प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
जगदीश चंद्र माथुर द्वारा रचित एकांकी "रीढ़ की हड्डी" में गोपाल प्रसाद का चरित्र रूढ़िवादी सोच का मूर्तरूप है। एक सफल वकील होने के नाते उनका व्यक्तित्व दंभ और अहंकार से भरा हुआ है। यह दंभ समाज में उनकी ऊँची स्थिति का परिचायक तो बनता है, लेकिन उनकी सोच को अतीत के रुढ़िवादी तालों में जकड़ लेता है।
रूढ़िवादी: गोपाल प्रसाद परंपराओं के अंधे अनुयायी हैं। उनका मानना है कि विवाह के लिए लड़की का शिक्षित होना व्यर्थ है। उनकी नज़र में लड़की की असली परीक्षा घरेलू कार्यों में निपुणता और सौंदर्य है। उनका यह रूढ़िवादी दृष्टिकोण शंकर के लिए कम पढ़ी-लिखी लड़की ढूंढने के उनके आग्रह से स्पष्ट होता है।
महिलाओं के प्रति भेदभाव: गोपाल प्रसाद का चरित्र समाज में व्याप्त महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण को दर्शाता है। उन्हें महिलाएं केवल पत्नी और गृहिणी के रूप में नजर आती हैं। उमा की शिक्षा और बुद्धिमत्ता उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। उनकी यह सोच है उनकी मानसिक संकीर्णता को उजागर करती है।
डरपोक स्वभाव: गोपाल प्रसाद रूढ़ियों के कठोर कवच में रहते हुए भी अंदर से कमजोर हैं। उमा के तीखे सवालों और शंकर की गलती उजागर होने पर उनके पास ना तो कोई जवाब होता है और ना ही अपनी गलती स्वीकार करने का साहस। वह अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए क्रोध का सहारा लेते हैं और अंततः भागकर अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं।
अनुत्तरदायी रवैया: गोपाल प्रसाद अपने कार्यों के लिए जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं। उमा द्वारा बेटे की गलती उजागर होने पर वे उसे चुप कराने का प्रयास करते हैं। अपने बेटे को सुधारने या उससे बात करने की बजाय वे परिस्थिति से भागने का रास्ता चुनते हैं। यह उनकी नैतिक कमजोरी और अनुत्तरदायी रवैये को स्पष्ट करता है।
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