रीढ़ की हड्डी एकांकी के आधार पर उमा का चरित्र चित्रण: जगदीश चंद्र माथुर की एकांकी "रीढ़ की हड्डी" में उमा एक उमा महत्वपूर्ण पात्र है। वह एक सामान्य लड़
रीढ़ की हड्डी एकांकी के आधार पर उमा का चरित्र चित्रण कीजिए
जगदीश चंद्र माथुर की एकांकी "रीढ़ की हड्डी" में उमा एक उमा महत्वपूर्ण पात्र है। वह एक सामान्य लड़की है जो उच्च्ब शिक्षित है। लड़के वाले उसे कई बार कई बार देख देख चुके हैं लेकिन विवाह निश्चित नहीं हो पाया है। एक सामान की तरह उसे बार-बार लड़के वालों को दिखाया जाना बुरा लगता है इसलिए देखने-दिखने में अब उसकी कोई रूचि नहीं। लड़के वाले उसमें सभी गुणों की अपेक्षा करते हैं जैसे सिलाई-बुनाई, पेंटिंग और गाना आदि। वह बार-बार महसूस करती है जैसे विवाह के बाजार लड़के वाले खरीदार हो और लड़कियाँ कोई वस्तु जिनकी न कोई इच्छा है, न कोई मोल।
रीढ़ की हड्डी एकांकी के आधार पर उमा के चरित्र की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
शिक्षित: उमा एक स्नातक (बी.ए.) उपाधिधारी लड़की है। उस युग में जहाँ लड़कियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था, उमा उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज में एक अलग पहचान बनाती है। वह शिक्षा को न सिर्फ सामाजिक दायरे से बाहर निकलने का माध्यम मानती है, बल्कि अपनी आवाज़ को बुलंद करने का हथियार भी समझती है।
साहसी: उमा न केवल शिक्षित और बुद्धिमान है, बल्कि अपनी बात कहने से नहीं डरती। जब उसके पिता झूठ बोलकर उसकी शिक्षा के बारे में अतिशयोक्ति करते हैं, तो वह चुप रहने के बजाय विद्रोह का बिगुल बजाती है। वह गोपाल प्रसाद और शंकर के सामने डटकर खड़ी होती है और अपनी बातों से उन्हें स्तब्ध कर देती है। उमा केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज की सभी महिलाओं के सम्मान के लिए खड़ी होती है। वह शंकर के चरित्र का खुलासा करके समाज में व्याप्त महिलाओं के प्रति असम्मानजनक व्यवहार को उजागर करती है। यह दर्शाता है कि वह न केवल अपनी लड़ाई लड़ रही है, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण की इच्छा रखती है जहां महिलाओं को सम्मान और समानता मिले।
स्वाभिमानी: उमा किसी भी प्रकार के भेदभाव या अपमान को सहने वाली नहीं है। वह अपने अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों को चुनौती देती है। समाज में लड़कियों को वस्तु की तरह परखा जाता है, लेकिन उमा खुद को किसी की "दुकान" का सामान नहीं बनने देती। वह अपनी मर्यादा और सम्मान की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित है।
बुद्धिमति: उमा की तीक्ष्ण बुद्धि और व्यंग्यपूर्ण भाषा एकांकी में चार चांद लगा देती है। वह अपनी बातों को इस तरह से कहती है कि सामने वाला शर्मसार हो जाए। गोपाल प्रसाद द्वारा सवालों की बौछार होने पर वह कुर्सी-मेज के उदाहरण के जरिए उनकी रूढ़िवादी सोच का पर्दाफाश करती है। उनका तिरस्कार करते हुए वह पूछती है कि क्या लड़कियों के दिल नहीं होते? क्या उनको चोट नहीं लगती?
उमा का चरित्र समाज में एक सकारात्मक बदलाव की लहर लाता है। वह उन लड़कियों के लिए प्रेरणा बन जाती है जो शिक्षा प्राप्त करना चाहती हैं, अपनी आवाज उठाना चाहती हैं और समाज में बराबरी का हक़ मांगती हैं। "रीढ़ की हड्डी" एकांकी उमा के माध्यम से पाठकों को यह संदेश देती है कि शिक्षा और आत्मविश्वास ही असली शक्ति है, जिसके बल पर हम रूढ़ियों को तोड़ सकते हैं और एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं।
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