कुहासा और किरण नाटक के आधार पर नायक का चरित्र-चित्रण: विष्णु प्रभाकर कृत "कुहासा और किरण" नाटक में अमूल्य की भूमिका केवल नायक तक ही सीमित नहीं है, बल्
कुहासा और किरण नाटक के आधार पर नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अमूल्य का चरित्र-चित्रण: विष्णु प्रभाकर कृत "कुहासा और किरण" नाटक में अमूल्य की भूमिका केवल नायक तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह एक ऐसे युवा का प्रतीक है जो भ्रष्टाचार के घने कोहरे को चीरकर, न्याय और सत्य की किरण बनकर उभरता है। देशभक्त राजेन्द्र का पुत्र अमूल्य, उन युवाओं की आवाज़ है जो ईमानदारी के पथ पर चलना चाहते हैं, भले ही वातावरण कितना भी दूषित क्यों न हो। अमूल्य के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं:
अनन्य देशभक्त: अमूल्य के लिए देश सर्वोपरि है. यह विरासत उसे अपने पिता से मिली है, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। अमूल्य देश को स्वार्थ से ऊपर रखता है और उसके कर्मों में यही भाव झलकता है। उसका कथन, "हमारे लिए देश सबसे ऊपर है। देश की स्वतंत्रता हमने प्राणों की बलि देकर पायी थी, उसे अब कलंकित न होने देंगे," यह दर्शाता है कि वह अपने खून में देशभक्ति समेटे हुए है.
निडर और साहसी युवक: अमूल्य में साहस कूट-कूट कर भरा है. वह सत्ता के नशे में चूर पुलिस इंस्पेक्टर से भी नहीं डरता और विपिन बिहारी जैसे भ्रष्ट लोगों को सबके सामने बेनकाब करने का साहस रखता है. वह इंस्पेक्टर के समक्ष निर्भीकता से कहता है, "यह षड्यन्त्र है... आप सदा ब्लैक से कागज बेचते हैं और मुझे फंसाना चाहते हैं... आप सब नीच हैं... आप देशभक्त की पोशाक पहने देशद्रोही हैं, भेड़िये हैं।"
कर्तव्यनिष्ठा की मूर्ति: अमूल्य अपने कर्तव्यों के प्रति सजग और कटिबद्ध है. पिता के असामयिक निधन के बाद भी वह परिस्थितियों से हार नहीं मानता, बल्कि कठिन परिश्रम से अपनी शिक्षा पूरी करता है। वह जो भी कार्य करता है, उसे पूर्ण समर्पण और निष्ठा के साथ अंजाम देता है।
सत्यवादी: सत्य अमूल्य का मूल मंत्र है. भ्रष्टाचार के जाल में फंसे कृष्ण चैतन्य जैसे लोगों के प्रभाव में आने के बावजूद, वह ईमानदारी के मार्ग से विचलित नहीं होता. जब उसे किसी षड्यंत्र में फंसाने का प्रयास किया जाता है, तब भी वह दृढ़ रहता है और कहता है, "चलिए, कहीं भी चलिए। मुझे जो कहना है, वह कहूँगा।"
युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत: अमूल्य आधुनिक युवाओं के लिए एक आदर्श है. वह भ्रष्टाचार के काले कारनामों को उजागर करने का संकल्प लेता है. देश सेवा के प्रति उसका जुनून उसके शब्दों में स्पष्ट झलकता है, "अब आवश्यकता है कि हम देशसेवा का अर्थ समझें। जो शैतान मुखौटे लगाए शिव बनकर घूम रहे हैं, उनके वे मुखौटे उतारकर उनकी वास्तविकता प्रकट करें।" वह चाहता है कि युवा पीढ़ी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाए और समाज को एक बेहतर दिशा दे.
सरलता और विनम्रता का संगम: अमूल्य जितना दृढ़ और साहसी है, उतना ही सरल और विनम्र भी है. उसका सरल स्वभाव सुनन्दा के शब्दों में भी परिलक्षित होता है, "पिताजी की बात अभी रहने दो। देखा नहीं था तुमने? उनका नाम सुनकर सब चौंक पड़े थे। उनसे पिताजी की बात मत कहना अभी।" यह दर्शाता है कि वह परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करने में भी सक्षम है.
'कुहासा और किरण' नाटक में अमूल्य का चरित्र सबसे महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक है। वह भ्रष्टाचार और निराशा के घने कुहासे को भेदकर कर्तव्यनिष्ठा, दृढ़ता, सच्चाई, देशभक्ति और निर्भीकता की स्वर्णिम किरणों से समाज को आलोकित करना चाहता है। अमूल्य 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' के आदर्श का प्रतीक है।
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