अर्जित प्रस्थिति का अर्थ स्पष्ट कीजिए: अर्जित प्रस्थिति से आशय उस प्रस्थिति से होता है, जिसे व्यक्ति अपनी योग्यता, गुणों और क्षमताओं के द्वारा अर्जित
अर्जित प्रस्थिति का अर्थ स्पष्ट कीजिए (Arjit Prasthiti ka Arth Spasht Kijiye)
अर्जित प्रस्थिति — अर्जित प्रस्थिति से आशय उस प्रस्थिति से होता है, जिसे व्यक्ति अपनी योग्यता, गुणों और क्षमताओं के द्वारा अर्जित करता है। अर्जित प्रस्थिति के कुछ प्रमुख आधार शिक्षा, योग्यता, परिश्रम, कार्यकुशलता हैं। समाज के विकास हेतु अनेक पद होते हैं जिनके लिए विशिष्ट योग्यताएँ अनिवार्य होती हैं । जिन्हें व्यक्ति अपनी कुशलता और योग्यता में वृद्धि कर समाज में प्रतिष्ठित होता है। ऐसे व्यक्ति साहसी, कुशल, निपुण, धैर्यशील होते हैं।
भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध नेतागण, समाज सुधारक, लेखक, विचारक आदि अपने प्रयासों के द्वारा विपत्तियों का मुकाबला करते हुए महत्वपूर्ण प्रस्थितियाँ अर्जित कर सके हैं। जैसे लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम आदि ज्वलन्त उदाहरण हैं। हालांकि व्यक्तिगत प्रयासों के साथ सांस्कृ तिक व्यवस्था का भी सहयोग जरूरी होता है। कई बार व्यक्तिगत प्रयासों में सांस्कृतिक मूल्य भी बाधक हो जाते हैं। वास्तव में शिक्षा, प्रशिक्षण, धन संपदा आदि का संबंध अर्जित प्रस्थितियों से है।
अर्जित प्रस्थिति के आधार (Bases of Achieved Status)
आधुनिक समाजों में अर्जित प्रस्थिति की धारणा आर्थिक दशाओं, सामाजिक परिवर्तन, संपत्ति के संचय, व्यक्तिगत प्रयत्न, सामाजिक नियमों के पालन तथा सांस्कृतिक व्यवस्था आदि के साथ घनिष्ठ रूप से संबंधित है। ये ही अर्जित प्रस्थिति के आधार हैं जो इस प्रकार हैं :-
1) शिक्षा (Education) — आज के समय में शिक्षा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, निम्नवर्ग हो चाहे अस्पृश्य हो, अनेक अर्जित प्रस्थितियों को प्राप्त कर सकता है । समाज में अशिक्षितों की तुलना में शिक्षित व्यक्तियों की प्रस्थिति उच्च होती है तथा वह सम्मान भी प्राप्त करता है। औपचारिक शिक्षा अनेक अर्जित प्रस्थितियों या पदों के लिए अनिवार्य होती है ।
2 ) संपत्ति (Property) — समाज में उच्च एवं सम्मानित पद प्राप्त करने में संपत्ति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो अर्जित प्रस्थिति का आधार है । इसका कारण यह है कि संपत्ति का संचय व्यक्ति की योग्यता का स्पष्ट माप ही नहीं है बल्कि इसके द्वारा वह उच्च प्रस्थितियों से संबंधित सभी सुविधाएँ भी प्राप्त कर सकता है। कार्ल मार्क्स ने आर्थिक आधार या संपत्ति को प्रस्थिति निर्धारण का मुख्य तत्व माना है । संपत्ति के द्वारा ही अनेक पदों को भी अर्जित किया जा सकता है।
3) व्यवसाय (Occupation) — व्यक्तियों का व्यवसाय भी व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति को पर्याप्त सीमा तक निर्धारित करता है। आर्थिक व नैतिक दृष्टि से अच्छे व्यवसायों में लगे व्यक्ति साधारण मजदूरों, सेवकों आदि से ऊँचे समझे जाते हैं। प्रतियोगिता के इस युग में व्यवसायों में भी प्रतियोगिता चलती रहती है। कोई व्यवसायी अपनी बुद्धि, गुणों व कार्यों के द्वारा अपने व्यवसाय को फैलाता है, तो उसकी सामाजिक प्रस्थिति ऊँची हो जाती है, जैसे टाटा, बिड़ला, अम्बानी तथा डालमिया आदि ।
4) शारीरिक क्षमता (Physical Capacity) — कुछ समाजों को विशेषकर आदिवासी समाजों अथवा सरल समाजों में शारीरिक बल के आधार पर व्यक्ति सम्मानजनक स्थिति प्राप्त कर लेता है। जो जितना अधिक शक्तिशाली होता है तथा अच्छे शारीरिक सौष्ठव का मालिक होता है । अपनी इसी शारीरिक क्षमता के आधार पर कहीं न कहीं उच्च स्तर पर प्रतिष्ठित होता है। यद्यपि वर्तमान में इस प्रकार की प्रस्थिति का महत्व घट रहा है।
5) राजनीतिक सत्ता और शक्ति (Political Authority and Power) — किसी व्यक्ति को जिस सीमा तक राजनीतिक सत्ता प्राप्त होती है, उसी सीमा तक उसकी प्रस्थिति अन्य सामान्य लोगों की तुलना में उच्च मानी जाती है। राजनीतिक सत्ता में रहने वालों की प्रस्थिति विरोधी पक्ष से ऊँची मानी जाती है । जैसे - मुख्यमंत्री, मंत्री, उपमंत्री, संसदीय सचिव, विधायक आदि ।
6) विभिन्न उपलब्धियाँ (Different Achievements) — व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में जो असाधारण उपलब्धियाँ हासिल करता है उसके द्वारा भी उसे समाज में बेहतर प्रस्थिति प्राप्त होती है। व्यक्तियों की उपलब्धियों के ये क्षेत्र शैक्षणिक, राजनीतिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, आर्थिक खेलकूद आदि हो सकते हैं। वास्तव में साहित्यकार, अच्छे खिलाड़ी आदि की सामाजिक प्रस्थिति सम्मानित होती है। प्रदत्त एवं अर्जित स्थिति के आधारों को निम्न चित्र द्वारा अच्छी तरह समझा जा सकता है।
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