जाति प्रथा के दोष - Jati Pratha Ke Dosh : (1) श्रमिकों की कुशलता में बाधक, (2) श्रमिकों की कुशलता में बाधक, (3) सामाजिक समस्याओं की उत्पत्ति (4) समाज
जाति प्रथा के दोष की व्याख्या कीजिए।
अथवा जाति व्यवस्था की हानियाँ लिखिए।
जाति प्रथा के दोष - Jati Pratha Ke Dosh
- श्रमिकों की कुशलता में बाधक
- श्रमिकों की कुशलता में बाधक
- सामाजिक समस्याओं की उत्पत्ति
- समाज का विभाजन
- निम्न जातियों का शोषण
1. श्रमिकों की कुशलता में बाधक - जाति व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक जाति का अपना एक परम्परागत व्यवसाय होता है और प्रत्येक व्यक्ति अपनी जाति का परम्परागत व्यवसाय ही कर सकता है, वह किसी दूसरी जाति के परम्परागत व्यवसाय को अपना नहीं सकता है। अतः जो व्यक्ति अपने परम्परागत व्यवसाय के अतिरिक्त किसी अन्य व्यवसाय में निपुण है, वे उस व्यवसाय को नहीं अपना सकते
2. श्रमिकों की कुशलता में बाधक - जाति व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक जाति में खान-पान सम्बन्धी अनेक निषेध हैं, जिसके कारण लोगों पर अनेक शारीरिक एवं मानसिक कुप्रभाव पड़ते हैं। अतः उनकी कार्य-कुशलता में कमी होती है।
3. सामाजिक समस्याओं की उत्पत्ति - जाति व्यवस्था के अन्तर्गत एक व्यक्ति अपनी जाति में ही विवाह कर सकता है। इसके अतिरिक्त अनेक विवाह सम्बन्धी नियम हैं जिनके कारण समाज में अनेक समस्याओं की उत्पत्ति हुई है, जैसे - बाल-विवाह, बेमेल विवाह, कुलीन विवाह, विधवा पुनर्विवाह, दहेज प्रथा आदि। इन समस्याओं के कारण हिन्दू समाज की दशा खराब होती जा रही है।
4. समाज का विभाजन - जाति व्यवस्था के कारण हिन्दू समाज छोटे-छोटे समूहों में बँट गया है। प्रत्येक समूह केवल अपने हित के लिए कार्य करता है, वह समाज के विषय में कुछ नहीं सोचता है। समाज में एक जाति समूह दूसरी जाति समूह से भेदभाव भी करने लगा है।
5. निम्न जातियों का शोषण - जाति व्यवस्था के अन्तर्गत निम्न जातियों को उच्च जातियों की अपेक्षा समाज में बहुत कम महत्व दिया जाता है। समाज में निम्न स्तर के कार्य गन्दे एवं घृणित कार्य निम्न जाति के लोगों को सौंपे गये हैं।
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