शिक्षा द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास: यूनेस्को ने अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के संबंध में विद्यालयों में सामाजिक विज्ञान को माध्य
शिक्षा द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास (Development of International Understanding through Education in Hindi)
यूनेस्को ने अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के संबंध में विद्यालयों में सामाजिक विज्ञान को माध्यम बनाते हुए निम्न दस सिद्धांत प्रस्तुत किये:-
- सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों को नागरिकता का प्रशिक्षण दिया जाएगा व कक्षा, विद्यालय तथा समाज ही इस शिक्षण को देने हेतु प्रयोगशाला का रूप लेगी।
- यह विषय छात्रों को विश्व के प्रमुख अंगों के बारे में जानकारी देगा।
- छात्रों के अंदर आवश्यक मनोवृत्तियों व कौशलों का विकास करना ।
- वर्तमान में विश्व की सभी समस्याओं में रूचि लेने हेतु छात्रों को प्रेरित करना।
- छात्रों की तर्क, निर्णय व आलोचनात्मक शक्ति का विकास करना।
- भूगोल के अध्ययन द्वारा छात्रों को प्राकृतिक सम्पदा का ज्ञान कराना व खाद्य समस्या की उन्हें जानकारी देना।
- विभिन्न धर्म, जाति, संस्कृति के आधार पर तथा आर्थिक आधार पर पाये जाने वाली विभिन्नता को दूर करना।
- एक समुदाय का दूसरे समुदाय से संबंध बताना।
- छात्रों को विभिन्न भाषा सिखाने हेतु प्रेरित करना ।
- मानव के व्यक्तित्व के समुचित विकास पर बल देने हेतु उपयुक्त मानवीय संबंधों को स्थापित किया जाए।
- सामाजिक घटनाओं, तनावों व सहयोग पर विशेष ध्यान दिया जाए।
यूनेस्को के इन सिद्धांतों की चर्चा करने के पश्चात् अब हम इस बात पर विचार करेंगे कि विद्यालय में चलने वाले सामान्य कार्यक्रम में हम क्या परिवर्तन करें, जिससे हम छात्रों के अंदर अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव को उत्पन्न कर सकें। इसके लिए हमें जो मुख्य परिवर्तन करने होंगे, वे निम्न प्रकार है: -
- सामान्य कार्यक्रमों में परिवर्तन
- शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन
- शिक्षण विधियों में परिवर्तन
- पाठ्यक्रम में परिवर्तन
- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन
शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन (Change in the aims of education)
अंतर्राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए हमें विद्यालय के वातावरण पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा। आज विद्यालय जो राजनीति व संकुचित राष्ट्रीयता के विकास का एक केन्द्र बनते जा रहे हैं, उनके उद्देश्यों में हमें प्रारम्भ से ही ध्यान देना होगा। जिन बातों को अपनाया जाना इस भावना के विकास हेतु अनिवार्य है, वह इस प्रकार हैं:-
1. छात्रों में स्वतंत्र विचार करने की क्षमता उत्पन्न करना (To develop the capacity for free thinking) :- शिक्षा के लिए यह अनिवार्य है कि वह बालक को यह क्षमता प्रदान करे कि वह अपने विचारों को अथवा अपनी राय को अन्य व्यक्तियों के समक्ष स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकें। दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति यह है कि व्यक्ति पढ़-लिखकर भी दूसरों के दबाव में आ जाता है व उन्हीं प्रभाव से अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने लगता है, यह गलत है। आपके अन्दर इतनी सूझबूझ होना अनिवार्य है कि आप अपनी एक विचारधारा बना सकें। इसी का विकास शिक्षा द्वारा किया जाना चाहिए।
2. ज्ञान का व्यवहारिक प्रयोग करने की क्षमता (ability to use knowledge in practical form) - हम जानते तो बहुत कुछ है, परन्तु क्या उन सबका हम व्यवहारिक प्रयोग कर रहे है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है। जैसे हम सभी जानते हैं कि हमें ईमानदार, निष्पक्ष, सत्यवादी होना चाहिए, पर क्या हम यह सब गुण व्यवहारिक रूप में प्रयोग करते है ? इस कारण आज आवश्यकता इस बात की भी है कि ज्ञान सिर्फ सैद्धान्तिक धरातल तक ही सीमित न रह जाये वरन् उसका व्यवहारिक प्रयोग भी किया जा सके।
3. विश्वबंधुत्व व विश्व नागरिकता की भावना का विकास ( development of the feeling of world citizenship):- शिक्षा के द्वारा हमें इस विचारधारा की भी पूर्ण व्याख्या करनी होगी कि बालक स्वयं को यह न समझे कि मैं भारत का हूँ, मैं पाकिस्तान का हूँ बल्कि उसके अंदर यह दृष्टिकोण पैदा करना है कि वह संपूर्ण विश्व समुदाय का एक अभिन्न अंग है। यह भाव यदि हमने छात्रों के अंदर उत्पन्न कर दिया तो विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में समायोजन व सामंजस्य के भाव को उत्पन्न किया जा सकता है और यह भाव विश्व शान्ति बनाये रखने में अपनी सक्रिय भूमिका अदा करेगा।
4. पारस्परिक निर्भरता की भावना का विकास ( Development of the feeling of interdependent) :- यदि हम अपने व्यक्तिगत जीवन को ही लें तो हमें इस जीवन को सुसंचालित करने में अपने लोगों का योगदान दिखाई देगा। यह बात एक राष्ट्र के स्तर पर भी लागू होती है। कोई भी राष्ट्र अपनी सभी आवश्यकताओं को स्वयं ही पूर्ण नहीं कर सकता। उसे कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दूसरे राष्ट्रों के सहयोग की आवश्यकता होती है। यह बात यदि सभी के समझ में आ जाये तो सभी देश एक-दूसरे के साथ अच्छे संबंध बनाये रखने का प्रयास करेंगे।
5. मानव जाति को समान विरासत का ज्ञान कराना (To give the knowledge about the common heritage of mankind):- मानव जाति के उद्गम का इतिहास पढ़ाते समय छात्रों के अंदर यह भाव जागृत करना होगा कि हम सब उत्पत्ति की दृष्टि से समान है। अतः हमें एक-दूसरे के साथ प्रेम व भ्रातृत्व की भावना के साथ रहना चाहिए।
6. स्वस्थ सामाजिक अभिवृत्ति, दृष्टिकोण व सामाजिक अन्तःक्रिया की भावना का विकास करना।7. परम्पराओं, रीति-रिवाज व जीवनयापन के तरीकों में अंतर के कारण को समझना ।8. व्यक्तिगत व राष्ट्रीय जीवन से भय को दूर करना।9. व्यक्तिगत व सामाजिक चेतना विकसित करना।
शिक्षण विधियों में परिवर्तन (Change in teaching methods )
- 1. शिक्षण विधि का व्यवहारिक होना आवश्यक है। जहां तक संभव हो, अध्यापक को छात्र को “करके सीखने” (Learning by doing) के लिए प्रेरित करना चाहिए।
- 2. वैज्ञानिक विधि का अध्यापक को अनुपालन करना चाहिए, जिससे छात्रों में वस्तुनिष्ठता, तर्क, चिन्तन व सूझबूझ की शक्ति का समुचित विकास हो सके।
पाठ्यक्रम में परिवर्तन (Change in syllabus)
- पाठ्यक्रम में हमें जो परिवर्तन लाना होगा, उसमें प्रमुख है कि पाठ्यक्रम में विश्व के प्रमुख धर्मो के आदर्श, रहन-सहन व व्यवहार के तरीकों का अध्ययन छात्रों को कराना होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय कल्याण के कार्यक्रमों का पुनर्निरीक्षण करना, जिससे सभी राष्ट्रों का विकास हो सके।
- यूनेस्को के सुझावों के अनुरूप पाठ्यक्रम में सामाजिक अध्ययन विषय को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाएगा।
- साहित्य, कला व संगीत को इस रूप में पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जायेगा, जिससे छात्र सिर्फ अपने देश के बारे में ही ज्ञान प्राप्त न करें, वरन् विश्व के अन्य देशों के भी साहित्य, कला व संगीत का ज्ञान कर सकें। पाठ्यक्रम में जो भी विषय सम्मिलित किया जाए, उसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय भावना का विकास करना होना चाहिए।
अब हमें विभिन्न विषयों का अध्ययन किस प्रकार कराया जाना चाहिए, इसकी चर्चा करेंगे:-
(1) साहित्य (Literature) - साहित्य का अध्ययन कराते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए -
- इसके द्वारा छात्रों में मानवीय दृष्टिकोण को उत्पन्न करना चाहिए।
- साहित्य को प्रकृति से संबंधित करके पढाया जाना चाहिए।
- इसके द्वारा विश्व मूल्यों का ज्ञान कराया जाए।
- यह मानवीय संबंधों का वास्तविक अर्थ बताने में सहयोग दे।
- मानव जीवन के विभिन्न अनुभवों, जैसे- सुख-दुःख, सफलता-असफलता आदि का ज्ञान छात्रों को कराया जाये।
हमें साहित्य का अध्ययन कराते समय यह नहीं सोचना चाहिए कि यह हमारे देश का साहित्य है, जो अच्छा होगा व दूसरे देश का है तो खराब होगा। साहित्य में अन्तर्निहित भावनाएं सबके ऊपर एक-सा प्रभाव डालती हैं। हँसी का साहित्य सभी को हँसायेगा व दुःख का सहित्य सभी को उद्वेलित करेगा। इस कारण हमें सत्- साहित्य का अध्ययन छात्र को कराना चाहिए।
- कला विश्व के विभिन्न देशों के नागरिकों की सृजनात्मक शक्ति की अभिव्यक्ति है।
- कला से समय व स्थान की दूरी समाप्त की जा सकती है।
- कला कलाकार की भावनाओं की अभिव्यक्ति है व भावनाएं अंतर्राष्ट्रीय होती है।
(3) इतिहास (History)- पाठ्यक्रम द्वारा यदि हम अंतर्राष्ट्रीय एकता का विकास करना चाहते हैं तो उसमें हमें गणित विषय के अध्ययन को अनिवार्य रूप से सम्मिलित करना होगा। इस संबंध में के.जी. सैय्यदन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है:-
- इतिहास का आधार राजनैतिक व सैनिक पक्ष नहीं होना चाहिए वरन् विश्व की सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों को इतिहास के अंदर सम्मिलित करना चाहिए।
- इसके द्वारा इस बात पर भी प्रकाश डालना चाहिए कि वैज्ञानिक व तकनीकी प्रभाव ने विश्व जन-समुदाय के जीवन को किस स्तर तक प्रभावित किया है।
- विश्व के विभिन्न देशों की परस्पर निर्भरता का ज्ञान कराना ।
- इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए इतिहास की पाठ्य पुस्तकों को पुनः लिखना।
- छात्रों में ऐतिहासिक पत्रिकाओं व समाचार-पत्रों को पढ़ने की रूचि जागृत करना ।
इतिहास वास्तव में महत्वपूर्ण विषय है। चूंकि अब तक इतिहास के माध्यम से संकुचि राष्ट्रवादी विचारधारा को ही विकसित किया गया है। इस कारण हमें इतिहास को उस रूप में प्रस्तुत करना होगा जो सांस्कृतिक समन्वय कर सके।
(4) भूगोल (Geography) - भूगोल का भी हमें व्यापक अध्ययन करना होगा। जिससे वह सम्पूर्ण विश्व को समझने की क्षमता प्रदान कर सके। भूगोल ही इस बात का ज्ञान कराता है कि विश्व विभिन्न भागों में लोगों का रहन-सहन किस प्रकार का है तथा भौगोलिक परिस्थितियों का उद्योगों, वनस्पति, खान-पान, वेश-भूषा आदि पर क्या प्रभाव पड़ता है। भूगोल में जिन अन्य बातों को सम्मिलित किया जाना चाहिए, वे इस प्रकार है-
- छात्रों को विभिन्न देशों के रहन-सहन व रीति-रिवाज बताना ।
- भौगोलिक परिस्थितियों का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका ज्ञान कराना।
- विभिन्न देशों के संचार साधन, आयात व निर्यात सामग्री, प्राकृतिक सम्पदा, खाद्य सम्पदा आदि का विस्तृत ज्ञान कराना।
(5) नागरिक शास्त्र (Civics) - नागरिक शास्त्र के द्वारा छात्रों को निम्नलिखित बातों का ज्ञान देना चाहिए -
- अधिकारों व कर्तव्यों का ज्ञान
- विश्व सरकार के प्रति आस्था
- विश्व नागरिकता हेतु तैयार करना ।
(6) विज्ञान (Science) - विज्ञान के सामाजिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाना चाहिए, जिससे विज्ञान के आविष्कारों का प्रयोग मानव कल्याण के लिए किया जाए, मानव विनाश के लिए नहीं -
- छात्रों के अंदर यह दृष्टिकोण विकसित करना कि वह विज्ञान की देन को मानव सभ्यता के विकास हेतु प्रयोग करें।
- छात्रों को विज्ञान का सकारात्मक व रचनात्मक पक्ष बताना।
- सामाजिक समस्याओं, जैसे- गरीबी, कुपोषण, महामारियों व रूढ़िवादियों को समाप्त करने में विज्ञान का योगदान।
पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन (Organisation of co-curricular activities)
- छात्रों को विभिन्न देशों से पत्र द्वारा सम्पर्क (Pen-friends) स्थापित करने को प्रेरित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय महत्व के व्यक्तियों का जन्मदिन विद्यालय में मनाना।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलकूद प्रतियोगिताओं को आयोजित करना।
- विज्ञान, कला, साहित्य इत्यादि की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनी लगाना।
- महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर नाटक आदि आयोजित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय दिवस, यथा-यू.एन. ओ., डब्लू.एच.ओ. विद्यालय में मनाना।
- अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक भ्रमण आयोजित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थी संघ बनाना।
- अंतर्राष्ट्रीय एकता को विकसित करने हेतु दूरदर्शन, आकाशवाणी व समाचार-पत्रों का सहयोग लेना।
- विभिन्न देशों के स्वतंत्रता दिवस विद्यालय में मनाना।
- अपने शहर में किसी भी देश से आये हुए महान व्यक्ति को विद्यालय में आमंत्रित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय तनाव, विषम परिस्थिति, जैसे-युद्ध, भूकम्प, बाढ़ के समय छात्रों से सहयोग देने की अपील करना।
अंतर्राष्ट्रीय एकता बनाने में अध्यापक की भूमिका ( Teacher's role in International Understanding)
अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव को विकसित करने में अध्यापक का महत्वपूर्ण योगदान है। उसके व्यक्तिगत गुण ही इस दिशा में सकारात्मक भूमिका अदा करते हैं। अध्यापक में जिन गुणों का होना अपेक्षित है, वे निम्न हैं:-
- वह अंतर्राष्ट्रीय भावना के प्रति आस्था रखते हों।
- तथ्यों की विवेचना करते समय उनका दृष्टिकोण निष्पक्ष व वस्तुनिष्ठ होना चाहिए।
- अन्य व्यक्तियों के कल्याण का भाव उनमें होना चाहिए।
- सत्य को स्वीकार करने की भावना।
- स्पष्ट व स्वतंत्र चिन्तन- उसका चिन्तन पक्षपातपूर्ण नहीं होना चाहिए।
- व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की भावना का होना।
- सभी छात्रों से प्रेम व उनके लिए आदर भाव होना।
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