भारत में कुपोषण के कारण तथा रोकथाम के उपाय बताइए: अन्य विकसित देशों की अपेक्षा भारत में व्यक्ति बहुत अधिक कुपोषण एवं अपोषण के शिकार हैं। कुपोषण तथा अ
भारत में कुपोषण के कारण तथा रोकथाम के उपाय बताइए।
अन्य विकसित देशों की अपेक्षा भारत में व्यक्ति बहुत अधिक कुपोषण एवं अपोषण के शिकार हैं। कुपोषण तथा अपोषण के कारण ही हमारे देश में मृत्यु दर अधिक है। व्यक्ति अधिक दुबले-पतले, कमजोर व अविकसित हैं तथा अधिकतर व्यक्ति रोग्रस्त रहते हैं। स्वास्थ्य की इस दुर्दशा के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं—
भारत में कुपोषण के कारण
- निर्धनता
- अशिक्षा व अज्ञानता
- खाद्य-पदार्थों का अभाव
- भोज्य आदतें
- मिलावट
1. निर्धनता - भारतवर्ष एक निर्धन देश है। प्रत्येक शहर की औसतन एक तिहाई जनता इतनी अधिक गरीब है कि अपनी दैनिक अनिवार्य आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाती । पर्याप्त भोजन न मिल पाने के कारण भूखा रहना, वस्त्र न मिलने के कारण फटे हाल रहना तथा मकान की सुविधा न होने के कारण फुटपाथ पर रहना जनता के लिए एक सामान्य सी बात है। ऐसे व्यक्तियों से पर्याप्त एवं सन्तुलित भोजन की आशा करना व्यर्थ है। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि प्रदेशों में निर्धनता अन्य प्रदेशों की अपेक्षा विशेष रूप से अधिक है।
2. अशिक्षा व अज्ञानता - भारतवर्ष में अशिक्षा एवं अज्ञानता भी कुपोषण का कारण बनती है। विभिन्न पोषक तत्त्वों के महत्त्व का ज्ञान न होने के कारण अधिकतर व्यक्ति भोजन को महत्त्व ही नहीं देते हैं। अशिक्षा उनको वातावरण के प्रति जागरूक नहीं कर पाती। आज भी भारत में अधिकांश परिवारों में भोजन में आलू, तला हुआ भोजन तथा मिर्च-मसालों को बहुत महत्त्व दिया जाता है। दूसरी ओर शाकाहारी व्यक्तियों की संख्या भारत में अधिक है। ये लोग दूध, दाल, फल आदि को कोई महत्त्व ही नहीं देते हैं। भोज्य पदार्थों के बहुत अधिक तले जाने के कारण उनका पोषक महत्त्व कम हो जाता है। भोजन पकाते हुए उबली सब्जी का पानी तथा चावल का मांड फेंक देना अज्ञानता का प्रतीक है। भोजन के प्रति इस तरह का व्यवहार उनके कुपोषित होने का कारण बनता है ।
3. खाद्य-पदार्थों का अभाव - भारत एक कृषि प्रधान देश हैं, परन्तु कृषि प्रधान होने के बावजूद भारतवर्ष के किसान देश की समस्त जनता के लिए खाद्य पदार्थ उत्पन्न नहीं कर पाते। उपज कम होने के कारण खाद्य पदार्थों का मूल्य अधिक होता है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुरूप खाद्य-पदार्थ को प्राप्त नहीं कर पाता। हमारा प्राथमिक भोजन अनाज है। हम अपनी उदरपूर्ति के लिए अनाज ही प्रयोग में लाते हैं। हमारे देश में अनाज की बहुत कमी रहती है इसीलिए पिछले कुछ वर्षों से 'अधिक अन्न उपजाओ' देश का एक प्रसिद्ध नारा बन गया। यद्यपि डेरी फार्म व पोल्ट्री फार्म हमारे देश में निरन्तर खोले जा रहे हैं, फिर भी देश की गरीब जनता को दूध व अन्य प्रोटीनयुक्त पदार्थ सामान्य मूल्यों पर उपलब्ध नहीं हो पाते। मौसम के फल व सब्जियों की उपज कम होने के कारण अधिक महँगे रहते हैं अथवा इनका परिवहन ( Transport ) ठीक तरह से न हो पाने के कारण उपज स्थान पर इनकी अधिकता तथा उपयोग न हो पाने के कारण नष्ट हो जाते हैं। इसके विपरीत दूसरे स्थान पर इनकी मात्रा कम होने के कारण ये पदार्थ अत्यन्त महँगे होते हैं। अतः उपर्युक्त कारणों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार भोजन ग्रहण कर पाने में असमर्थ हो जाता है। परिणामस्वरूप वह कुपोषित तथा अपोषित हो जाता है।
4. भोज्य आदतें - भोजन सम्बन्धी आदतें भी कुपोषण को जन्म देती हैं। उपयोगी भोज्य- पदार्थों को पसन्द न करना, अधिक तला व मिर्च-मसालेयुक्त भोजन का प्रयोग करना, भोजन में विभिन्नता का न होना आदि से भी कुपोषण की स्थिति आ जाती है।
5. मिलावट - मिलावट भी कुपोषण का एक महत्वपूर्ण कारण है। दैनिक आहार में लेने वाले सभी भोज्य पदार्थ प्रायः मिलावटी मिलने लगे हैं। वनस्पति घी में चर्बी, सरसों के तेल में रेपसीड, दूध में पानी व अन्य भोज्य पदार्थों में विभिन्न हानिकारक पदार्थ मिला देना साधारण बात हो गई है। कुपोषण की रोकथाम
कुपोषण से बचने के उपाय
भारत जैसे विकासशील देशों में कुपोषण की समस्या के समाधान के लिए व्यवस्थित प्रयास करने पड़ते हैं। सर्वप्रथम जनसंख्या को नियन्त्रित करने के उपाय आवश्यक हैं। इसके साथ-ही-साथ अनाजों एवं अन्य खाद्य सामग्री के उत्पादन को बढ़ाने के लिए व्यवस्थित प्रयास अनिवार्य है। सस्ते पूरक आहारों का विकास अनिवार्य है जिससे गरीब जनता भी पोषक तत्वों के सेवन से वंचित न रहे। सामान्य जनता को सन्तुलित आहार की आवश्यकता एवं महत्व का ज्ञान अवश्य प्रदान करना चाहिए। जहाँ सम्भव हो रसोई - बगीचा तथा कुक्कट-पालन को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इन सब उपायों के साथ-साथ विभिन्न रोगों को नियन्त्रित करने के भी उपाय किए जाने चाहिए। वास्तव में स्वस्थ व्यक्ति अधिक धन अर्जित कर सकता है तथा अपने परिवार के लिए पोषक आहार अर्जित कर सकता है।
पौष्टिक आहार उपलब्ध न होना तथा कुछ व्यंजनों एवं खाद्य पदार्थों के प्रति अरुचि एवं आहार सम्बन्धी अनुचित आदतें! इस स्थिति में स्कूल जाने वाले बच्चों की आहार व्यवस्था का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। जहाँ तक सम्भव हो बच्चों को पूर्ण रूप से सन्तुलित आहार दिया जाना चाहिए। बच्चों के भोजन को पौष्टिक बनाने के साथ ही साथ विविधतापूर्ण तथा आकर्षक भी बनाया जाना चाहिए। बच्चों के आहार में प्रत्येक वर्ग के भोज्य पदार्थों को अदल-बदल कर प्रयोग करना चाहिए तथा विभिन्न भोज्य पदार्थों के प्रति रुचि जाग्रत की जानी चाहिए। बच्चों में पोषण के स्तर को उन्नत बनाने के लिए कर्नाटक के एक संस्थान ने बहुउद्देशीय आहार का उत्पादन किया है। इस आहार की 25 ग्राम मात्रा के समावेश से पोषण के स्तर को उन्नत किया जा सकता है। देश में स्कूल जाने वाले बच्चों के पोषण स्तर को उन्नत बनाने के लिए 'विद्यालयी आहार कार्यक्रम' भी लागू किए गए हैं। इन कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा रहा है तथा उनकी पोषण सम्बन्धी कुल आवश्यकता की 1/3 भाग की पूर्ति की जाती है। इस कार्यक्रम के विभिन्न लाभ हैं परन्तु भरपूर लाभ प्राप्त नहीं हो रहे क्योंकि इस कार्यक्रम में बच्चों के अभिभावक सही सहयोग नहीं दे रहे, निर्धन परिवार बच्चों को टिफिन नहीं देते जबकि यह आवश्यक है क्योंकि विद्यालयी आहार तो पूरक आहार होता है। इसके अतिरिक्त धनवान अभिभावक बच्चों को विद्यालयी आहार देना अपनी प्रतिष्ठा के विरुद्ध मानते हैं। इन प्रवृत्तियों के कारण स्कूल जाने वाले बच्चों के पोषणीय स्तर को उन्नत बनाने में बाधा उत्पन्न होती है।
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