सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं / Samajik Parivartan ki Visheshta (1) सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। (2) सामाजिक परिवर्तन का पूर्वानुमान न
सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं / Samajik Parivartan ki Visheshta
(1) सार्वभौमिकता - सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सार्वभौमिक होती है। सामाज में प्रत्येक स्थान पर कुछ न कुछ परिवर्तन निरन्तर होते रहते हैं। दुनिया के किसी भी हिस्से में सामाजिक परिवर्तन को देखा जा सकता हैं उदाहरण के तौर पर भारतीय समाज की बात करें तो एक समय पर यहाँ सती प्रथा को समाजिक प्रशास्ति प्राप्त थी परन्तु अब उसे अनैतिक व अमानवीय कृत्य माना जाता है। इसी प्रकार अमेरिकी समाज की बात करें तो वहाँ की एक समय पर श्वेत व अश्वेत के मध्य स्पष्ट व गहरी खाई थी जोकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में काफी हद तक लुप्त प्राय हो चुकी है। अतः स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है। कि सार्वभौमिकता' सामाजिक परिवर्तन की अति महत्वपूर्ण विशेषता है।
(2) पूर्व - अनुमानित न होना- सामाजिक परिवर्तनों की यह भी प्रमुख विशेषता है कि इनके विषय में किसी भी प्रकार का पूर्वानुमान अथवा भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। उदाहरण के तौर पर आज से 100 वर्ष पहले भारत में मनोरंजन के साधन के तौर पर प्रत्येक घर में टेलीविजन इतना लोकप्रिय हो जाएगा, तब यह बात अकल्पनीय थी। तब परन्तु आज वह व्यवहारिक है। इसी प्रकार लोकतांत्रिक शासन प्रणाली, अमेरिका में श्वेत व अश्वेत के मध्य बन्धुता इत्यादि अनेकों ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे यह प्रमाणित होता है कि सामाजिक परिवर्तनों के विषय में कोई भी सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। सामाजिक परिवर्तनों का क्रम निरन्तर जारी रहता है परन्तु कब कौन सा परिवर्तन आ जायेगा और कौन सा परिवर्तन प्रभावी हो जाएगा; यह अनुमान लगा पाना लगभग असम्भव सी बात है।
(3) सामाजिक मान्यता प्राप्त होना- कोई भी परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन का रूप तभी ग्रहण करता है जब समाज के विभिन्न समुदायों द्वारा उन्हें स्वीकार किया जाए। सामाजिक परिवर्तन केवल कानूनों के भय अथवा क्रान्तियों से ही नहीं आ जाते अपितु सामाजिक परिवर्तनों हेतु समाज की स्वीकृति आवश्यक होती है। अतः सामाजिक परिवर्तनों की यह अनिवार्य विशेषता है कि इन्हें सामाजिक स्तर पर स्वीकृति प्राप्त होती है और समाज इनका स्वतः पालन करता है।
(4) सामाजिक परिवर्तन किसी वर्ग विशेष के विचारों में परितर्वन नहीं है- सामाजिक परितर्वन समाज के किसी वर्ग विशेष के विचारों, तौर तरीकों में परिवर्तन का नाम नहीं है, अपितु किसी भी परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन की संज्ञा तभी दी जाती है, जब उसे समाज के अधिकांश वर्गों व समुदायों द्वारा स्वीकार किया जाए। सामाजिक परिवर्तन का किसी वर्ग, समुदाय, संस्था के व्यक्तिगत विचारों तौर-तरीकों से कोई सरोकार नहीं होता है, अपितु इसका सरोकार सार्वजनिक रूप से व्यापक स्तर पर होने वाले सामाजिक बदलावों से है।
(5) सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सर्वव्यापी होती है - सामाजिक परिवर्तन की एक अन्य प्रमुख विशेषता सर्वव्यापकता हैं। सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सर्वव्यापी होती है। यह प्रत्येक देश-काल एवं वातावरण में समान रूप से पायी जाती है और आनवरत रूप से गतिमान रहती है। सामाजिक परिवर्तन के किसी विशिष्ट स्थान एवं समय का पता नहीं लगाया जा सकता। यह सर्वव्यापी रूप से चलायमान प्रक्रिया है। उदाहरण के तौर पर हम देखें तो पाते हैं कि चाहे व अमेरिकी समाज हो, ब्रिटिश समाज हो अथवा भारतीय समाज हो प्रत्येक समाज में तमाम सामाजिक परितर्वन दृष्टिगोचर होते हैं जोकि देश, काल व वातावरण की दृष्टि से परस्पर दिशा व दशा में भिन्न भी हैं परन्तु यह शाश्वत सत्य है कि परिवर्तन आवश्यक रूप से हुए हैं। इसी प्रकार समग्र विश्व के प्रत्येक स्थान पर सामाजिक परिवर्तन होते रहते हैं, जोकि इसकी सर्वव्यापकता का प्रमाण हैं।
(6) समानता का अभाव- सामाजिक परिवर्तनों की यह भी विशेषता है कि इनके स्वरूप, प्रकृति व उद्देश्यों में समानता का अभाव होता है। देश-काल एवं वातावरण के अनुसार इसके स्वरूप, प्रकृति , उद्देश्य व रूप भी पृथक-पृथक दिखते हैं। समाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया की मात्रा में अन्तर होता है। किसी समाज के सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को शीघ्र स्वीकार्यता मिल जाती है, तो वहीं कुछ समाजों में इसको स्वीकार किये जाने में विलम्ब होता है। वहीं कुछ समाज अत्यधिक रूढ़िवादी होने के कारण सामाजिक परिवर्तन को अत्यन्त विलम्ब एवं कठिनता से स्वीकार करते हैं।
(7) समय, काल एवं युग में परिवर्तन करने वाले कारकों का असमान प्रभाव- सामाजिक परितर्वन की प्रक्रिया पर समय, काल एवं युग में परिवर्तन लाने वाले विविध कारकों का प्रभाव नहीं होता है। कहीं इन कारकों का प्रभाव अत्यधिक होता है, तो कहीं मध्यम और कहीं नगण्य। एक ही प्रकार के कारक प्रत्येक स्थान पर सामाजिक परिवर्तन पर एक ही प्रकार के प्रभाव नहीं डालते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सामाजिक परिवर्तन जहाँ एक ओर अपरिहार्य व निरन्तरता युक्त प्रक्रिया है तो वहीं इसकी प्रकृति, मात्रा, दशा एवं दिशा आवश्यकता, परिस्थितियों एवं वातावरण के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं।
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