शिक्षा को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य बताइए। शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक सामंजस्यपूर्ण एवं प्रगतिशील विकास है। शिक्षा का
शिक्षा को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य बताइए।
भारतीय दृष्टिकोण से शिक्षा का अर्थ शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की 'शिक्ष' में 'अ' प्रत्यय लगाने से बना है, शिक्षा का अर्थ है सीखना एवं सिखाना, इस प्रकार शिक्षा का अर्थ सीखने, सिखाने की क्रिया, ज्ञान प्राप्त करना, अध्ययन करना आदि है। शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करने हेतु विद्वानों ने इसे भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित करने का प्रयास किया है। इनमें से कुछ विशिष्ट विद्वानों एवं शिक्षाविदों की परिभाषाओं का उल्लेख निम्नलिखित पंक्तियों में किया गया है -
शिक्षा की परिभाषा (Definition of Education in Hindi)
पेस्टालॉजी - "शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक सामंजस्यपूर्ण एवं प्रगतिशील विकास है।"
एडम्स - "शिक्षा एक चेतन एवं उद्देश्य युक्ति प्रक्रिया है जिससे एक व्यक्ति दूसरे के व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है जिससे दूसरे के विकास को ज्ञान की दक्षता का आदान-प्रदान से रूपान्तरित किया जाता है।"
जी. एच. थॉमसन - "शिक्षा से मेरा आशय वातावरण के उस प्रभाव से है जो व्यक्ति में उसके व्यवहार विचार एवं अन्य आचरण की आदतों में स्थायी परिवर्तन लाता है।"
स्पेन्सर - "शिक्षा मनुष्य के अन्तर एवं बाह्य में सम्बन्ध स्थापित करती है।"
स्ट्रेवर - "शिक्षा वह है जो व्यक्ति के कार्यों में अन्तर ला देती है।"
लॉक - "पौधे पालन द्वारा विकसित किये जाते हैं तथा मनुष्य शिक्षा द्वारा।"
सुकरात - "शिक्षा का तात्पर्य है सार्वजनिक प्रमाणिकता के विचारों को प्रकाश में लाना जो प्रत्येक व्यक्ति के मन में निहित होते हैं।"
शिक्षा के लक्ष्य - शिक्षा एवं शिक्षण के उद्देश्य विभिन्न प्रकार के होते हैं। इन लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का निर्धारण, सामाजिक आवश्यकताओं एवं बालकों के अनुरूप किया जाता है। इन लक्ष्यों की पृष्ठिभूमि में छात्रों के विकास हेतु कोई न कोई प्रयोजन अवश्य निहित रहता है। शिक्षा के सार्वभौमिक उद्देश्य सुनिश्चित एवं शाश्वत होते हैं। स्थायी एवं सार्वभौमिक स्वरूपों के आधार पर इन उद्देश्यों का निर्धारण किये जाने के कारण इनमें किसी प्रकार के परिवर्तनों की सम्भावना नहीं रहती है। देश, काल, समाज अथवा परिस्थिति एवं युगानुकूल आवश्यकता के आधार पर निर्धारित इन उद्देश्यों में समय समय पर परिवर्तन होता रहता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त हमारे देश की राजनैतिक, आर्थिक आदि स्थिति में परिवर्तन आया और सरकार का सर्वप्रमुख उद्देश्य जनकल्याण करना हो गया। आज देश का प्रत्येक नागरिक परोक्ष या अपरोक्ष रूप में शासन में भाग लेता है। इसीलिये शिक्षा के अग्रलिखित उद्देश्य निर्धारित किये गये हैं.'
शिक्षा के उद्देश्य (Purpose of Education in Hindi)
- व्यक्तित्व का विकास करना
- नेतृत्व के गुणों का विकास करना
- नागरिकता का विकास करना
- शारीरिक विकास करना
- भावात्मक एकता को प्राप्त करना
- शैक्षिक अवसरों में समानता स्थापित करना
- सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करना
- आन्तरिक सांस्कृतिक भावना का विकास करना
- सामाजिक बुराइयों को समाप्त करना
- अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास
1. व्यक्तित्व का विकास करना: आधुनिक भारत में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य व्यक्तित्व का विकास करना होना चाहिए। व्यक्ति का शारीरिक गठन, लक्षण, दृष्टिकोण इत्यादि उसके व्यक्तित्व को एक सुनिश्चत स्वरूप प्रदान करते हैं। शिक्षा व्यक्तित्व के निर्माण की एक आवश्यक एवं महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। बालक विद्यालय एवं विद्यालय के बाहर जो कुछ सीखता है, वह उसके व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक सिद्ध होता है।
2. नेतृत्व के गुणों का विकास करना: आज देश को योग्य नेताओं की आवश्यकता है। ऐसे योग्य नेता जो देश के निर्माण हेतु उचित नेतृत्व प्रदान कर सकें। इन गुणों का विकास करने हेतु बालकों में सामाजिक विवादों की स्पष्ट एवं पूर्ण जानकारी सहयोग, अनुशासन आदि का विकास किया जाना चाहिए।
3. नागरिकता का विकास करना: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज उसके विशिष्ट गुणों की अपेक्षा करता है। उसे अपने देश के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक जीवन के सम्बन्ध में जानकारी होनी चाहिए। उसे अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान होना चाहिए। व्यक्ति को इन सभी बातों का ज्ञान नागरिकता की शिक्षा के अन्तर्गत प्रदान किया जाता है। शिक्षा द्वारा उनमें नागरिकता हेतु आवश्यक अनेक मानसिक एवं भावात्मक गुणों का प्रादुर्भाव किया जाता है। जिससे वे अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो सकें राष्ट्र की कानून व्यवस्था को बनाये रखने में अपना योगदान दे सकें।
4. शारीरिक विकास करना: समस्त कालों एवं परिस्थितियों में बालकों का शारीरिक विकास करना शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य रहा है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में "मैं चाहता हूँ कि युवक एवं वृद्ध दोनों स्वस्थ, बलवान एवं चुस्त हों। मैं चाहता हूँ कि वे शारीरिक रूप में सर्वोत्तम राष्ट्र का निर्माण करें।" मेरा विचार है कि जब तक हमारा शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा, तब तक हम मानसिक प्रगति नहीं कर सकेंगे। बालक के शारीरिक विकास पर ही शेष समस्त प्रकार का विकास निर्भर करता है।
5. भावात्मक एकता को प्राप्त करना: भावात्मक एकता को प्राप्त करना वर्तमान भारतीय परिस्थितियों में शिक्षा का एक अन्य उद्देश्य होना चाहिए, क्योंकि भावात्मक एकता राष्ट्रीय एकता का आधार है। हमारा देश विभिन्नताओं का देश है, इसलिए इसमें भावात्मक एकता का विकास करना नितान्त आवश्यक है।
6. शैक्षिक अवसरों में समानता स्थापित करना: भारत की वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षा का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य शैक्षिक अवसरों में समानता स्थापित करना होना चाहिए। शिक्षा आयोग ने इस उद्देश्य पर जोर देते हुए लिखा है कि "शिक्षा का एक महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्य है, शिक्षा प्राप्त करने के लिए अवसरों में समानता स्थापित करना जिससे पिछड़े हुए अथवा कम विशेषाधिकार वाले वर्ग और व्यक्ति शिक्षा को अपनी दशा में सुधार करने हेतु साधन के रूप में प्रयुक्त कर सकें। प्रत्येक समाज जो सामाजिक न्याय को महत्व देता है और सामान्य मनुष्य की दशा में सुधार करने और समस्त उपलब्ध योग्यता का विकास करने का इच्छुक है, उसे जनता के समस्त वर्गों हेतु समानता के अवसर में निरन्तर वृद्धि को सुरक्षित करना आवश्यक है। यही समानता पर आधारित शिक्षा मानव समाज की गारन्टी रही है जिसमें निर्बलों का शोषण कम हो जायेगा।"
7. सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करना: शिक्षा द्वारा इन मूल्यों को मन में बैठाने के लिए हमें स्वयं अपनी परम्पराओं से और अन्य देशों की परम्पराओं तथा विश्व की संस्कृतियों से मुक्त रूप से ग्रहण करना चाहिए। स्वयं भारतीय विचार धारा में ही ऐसे सूत्र है जो आधुनिक समाज को उपयुक्त नवीन दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं और जीवन को उसके सुख-दुख, उसकी चुनौतियों तथा सफलता सहित सहर्ष स्वीकार करने के लिए व्यक्तियों को तैयार कर सकते हैं।
8. आन्तरिक सांस्कृतिक भावना का विकास करना: एक ऐसा दृष्टिकोण जिससे प्रभावित होकर व्यक्ति अपने देश की विभिन्न संस्कृतियों एवं विश्व की विभिन्न संस्कृतियों के प्रति आदर का भाव रखता है, उसे अन्तर सांस्कृतिक भावना कहते हैं। वर्तमान परिस्थितियों में इस भावना का विकास करना नितान्त आवश्यक है क्योंकि भारत एक विशाल देश है। यहाँ विभिन्न जाति, धर्म भाषाओं के व्यक्ति रहते हैं। प्रत्येक समूह संस्कृति में भिन्नता होने के कारण आपस में सांस्कृतिक मतभेद रहता है, इससे अशान्ति का वातावरण बना रहता है। इस कारण अन्तर सांस्कृतिक भावना का विकास करना आवश्यक है। इस भावना के विकास से राष्ट्र सबल बनता है और अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना विकसित होती है।
9. सामाजिक बुराइयों को समाप्त करना: आज भी हमारे देश में अनेक सामाजिक बुराइयाँ व्याप्त हैं। इन बुराइयों के होते हुए देश कभी प्रगति नहीं कर सकता। अतः शिक्षा का एक अन्य उद्देश्य इन सामाजिक बुराइयों को समाप्त करना होना चाहिए। शिक्षा का संगठन इस प्रकार किया जाये जिससे बालक कुप्रथाओं के प्रति उपेक्षा का भाव रखे और उनके विरुद्ध संघर्ष करें।
10. अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास: - आज का युग अन्तर्राष्ट्रीयता का युग है। इस युग में शिक्षा का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास करना होना चाहिए। पंडित जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में "पृथकता का तात्पर्य है पिछड़े रहना एवं पतन। विश्व बदल गया है और प्राचीन बाधायें समाप्त होती जा रही हैं, जीवन अधिकाधिक अन्तर्राष्ट्रीय होता जा रहा हैं। हमें इस भावी अन्तर्राष्ट्रीयता में अपना पार्ट निभाना है। इस कार्य हेतु विश्व से सम्पर्क आवश्यक है।"
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