सार लेखन से क्या आशय है सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त करना ही सार-लेखन कहलाता है। कम शब्दों में बात करना या लिखन
सार लेखन से क्या आशय है सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
किसी दी हुई सामग्री को कम शब्दों में व्यक्त करने की कला; इसी को सार-लेखन कहते हैं। सार-लेखन में किसी दूसरे के द्वारा लिखी गई विस्तृत बात को उसका मूल भाव सुरक्षित रखते हुए कम शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है।
जिस प्रकार, छोटी-सी बात को विस्तार देना एक कला है, उसी प्रकार विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त कर देना भी एक कला है। विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त करना ही सार-लेखन कहलाता है। कम शब्दों में बात करना या लिखना एक कौशल है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इससे लाभ होता है।
विभिन्न क्षेत्रों में सार - लेखन की उपयोगिता है। अख़बारों में जगह के हिसाब से समाचार-संपादक समाचारों का सार लेखन करते हैं। 'आकाशवाणी' और 'दूरदर्शन' पर समय के हिसाब से यही काम किया जाता है। कई बार लेखों, यहाँ तक कि पुस्तकों तक का सार तैयार किया जाता है। सरकारी कार्यालयों में भी सहायक द्वारा पत्रों और कभी-कभी तो पूरी फ़ाइल का सार - लेखन किया जाता है।
सार-लेखन के रूप / प्रकार (Sar lekhan ke Prakar)
सार-लेखन की विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगिता है। अलग-अलग क्षेत्रों, विषयों या कामों के लिए, सार-लेखन के कई अलग-अलग प्रकार का प्रयोग किया जाता है। आइए, उनमें से कुछ के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं :
- अधिक शब्दों में लिखी बात को कम शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता समाचार - लेखन में होती है, या फैक्स करने में होती है, आदि-आदि। ऐसा प्रायः भाषा में अनेक शब्दों या वाक्यांशों के लिए एक शब्द का प्रयोग करके, शब्दों के दुहराव या अनावश्यक शब्दों को छाँट कर तथा वाक्य विन्यास की शिथिलता को दूर करके किया जाता है।
- विस्तृत लेख को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करते समय पहले उसके मूल भाव या विचार-बिंदु तथा उसे पुष्ट करने वाले संबंधित बिंदुओं को नोट कर लेते हैं। फिर ऊपर वाली विधि की सहायता से उसे संक्षेप में व्यक्त कर देते हैं।
- उपर्युक्त सभी स्थितियों में सार-लेखक मूल सामग्री को प्रायः कई बार गौर से पढ़ कर अपनी भाषा में उसका सार प्रस्तुत कर देता है। किंतु साहित्यिक रचनाओं - उपन्यास, कहानी आदि का सार प्रस्तुत करते समय यह प्रयास किया जाता है कि लेखक की भाषा और शैली भी यथासंभव बची रहे ।
सार - लेखन की प्रक्रिया ( चरण )
सार-लेखन करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। सार लेखन के चरण निम्नलिखित हैं :
- मूल बिंदु का चयन
- संबंधित बिंदुओं का चयन
- मूल और संबंधित बिंदुओं को क्रम देना
- अनावश्यक सामग्री को छोड़ना
- उपयुक्त आकार में सार लिखना
आइए, हम एक-एक करके इन पर विचार करें:
1. आप किसी भी गद्यांश को पढ़ने पर पाएँगे कि लेखक उसमें विशिष्ट रूप से किसी बात पर पाठक का ध्यान केंद्रित करना चाहता है, यही उस गद्यांश का मूल भाव होता है। गद्यांश को दो-तीन बार पढ़कर उसके मूल भाव को समझा जा सकता है।
2. इस मूल भाव को स्थापित करने के लिए उससे संबंधित कुछ बातें और लिखी जाती हैं, जिनसे मूल भाव की पुष्टि होती है। ये संबंधित बिंदु कहे जाते हैं।
3. सार-लेखक को मूल भाव और उसको पुष्ट करने वाले संबंधित बिंदुओं को पहचान कर उन्हें अपने लिए एक क्रम देना होता है।
4. अपने लेख को स्पष्ट और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए और लेख के मूल भाव को स्पष्ट करने के लिए लेखक उसकी व्याख्या करता है तथा अनेक उदाहरण देता है। आवश्यकता पड़ने पर वह उस भाव को दोहराता भी है। मूल भाव की पहचान के साथ-साथ हमें उन सब बातों को भी पहचानना होता है, जिन्हें लेखक अपने मूल भाव को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त करता है। ये हैं :
- व्याख्या
- उदाहरण
- दोहराव
सार-लेखक के लिए ये बातें अनावश्यक सामग्री होती हैं। श्रेष्ठ सार-लेखन के लिए इन्हें पहचानना भी अत्यंत आवश्यक है।
सार लेखन के उदहारण
उदहारण (1) - भारत का काव्य-रूपी आकाश-मंडल अगणित प्रभापूर्ण जुगनुओं से देदीप्यमान है, पर तुलसीदास का तेज, उज्ज्वलता और चमत्कार तथा उनकी प्रदीप्त कांति और कीर्ति सबसे बढ़-चढ़ कर है। वे इस आकाश-मंडल के असंख्य तारों के बीच मध्याहनकालीन प्रचंड मार्तंड के समान प्रकाशमान हैं। किसी ने कहा भी है कि तुलसीदास हमारे ही नहीं, हमारी आगामी संतानों के लिए भी एक अनुकरणीय और अनुपम आदर्श हैं। जो स्थान अंग्रेज़ी साहित्य में शेक्सपीयर का है, उससे कहीं ऊँचा स्थान हम हिंदी साहित्य में तुलसीदास को देते हैं। और क्यों न दें, ये कोरे कवि नहीं थे, वरन् ये तो एक अद्वितीय चरित्र वाले कवि-सम्राट, परमोच्च श्रेणी के संत, राम के अनन्य भक्त, धर्म और नीति के पथ-प्रदर्शक, दार्शनिक, गंभीर तत्त्वों को सरल - सरस शब्दावली में समझाने वाले उपदेशक और भविष्य के गर्भ में निहित घटनाओं को बताने वाले महात्मा भी थे।
सार लेखन - भारत में असंख्य श्रेष्ठ कवि हैं, पर तुलसीदास उनमें अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं; क्योंकि वे कोरे कवि ही नहीं, बल्कि चरित्रवान, रामभक्त, महात्मा, दार्शनिक, पथप्रदर्शक, सरल भाषा में गूढ़ार्थ बताने वाले उपदेशक और भविष्यद्रष्टा भी थे।
सार लेखन गद्यांश-2
कहा जाता है कि मानव का आरंभिक जीवन अधिक लचीला और प्रशिक्षण के लिए विशेषकर अनुकूल होता है। यदि माता-पिता, अध्यापक और सरकार - तीनों मिलकर प्रयास करें, तो वे बालक को जैसा चाहें, वैसा वातावरण देकर उसकी जीवन-दिशा का निर्धारण कर सकते हैं। जीवन का यह समय मिट्टी के उस कच्चे घड़े के समान होता है, जिसके विकारों को मनचाहे ढंग से ठीक किया जा सकता है। लेकिन जिस तरह पके हुए घड़ों में पाए जाने वाले दोषों में सुधार करना असंभव है, उसी तरह यौवन की दहलीज़ को पार कर बीस-पच्चीस वर्ष के युवक के अंदर आमूल परिवर्तन लाना यदि असंभव नहीं, तो कठिन अवश्य है। कच्ची मिट्टी किसी भी साँचे में ढालकर किसी भी नए रूप में बदली जा सकती है, लेकिन जब वह एक बार, एक प्रकार की बन गयी, तब उसमें परिवर्तन लाने का प्रयास बहुत ही कम सफल हो पाता है। किसी लड़के या लड़की के व्यक्तित्व के निर्माण का मुख्य उत्तरदायित्व हमारे समाज, हमारी सरकार और स्वयं माता-पिता पर है तथा बहुत कुछ स्वयं लड़के या लड़की पर भी । कोई भी व्यक्ति अपने ध्येय में तभी सफल हो सकता है, जब वह अपने जीवन के आरंभिक दिनों में भी वैसा करने का प्रयास करे । इस दृष्टि से विद्याध्ययन का समय ही मानव-जीवन के लिए विशेष महत्त्व रखता है। हम सभी का और स्वयं विद्यार्थियों का भी यही कर्त्तव्य है कि सभी इस तथ्य को हमेशा अपने सामने रखें।
सार लेखन - बाल्यकाल मानव की वह अवस्था है, जिसमें उसके जीवन को मनचाहे ढंग से मोड़ा जा सकता है। युवावस्था प्राप्ति के बाद, उसकी जीवन-दिशा को बदलना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। कच्ची मिट्टी से इच्छा के अनुसार आकृति बना सकते हैं, पक जाने पर उसका रूप - परिवर्तन असंभव है | बालक हो या बालिका, उसके जीवन-निर्माण का उत्तरदायित्व सरकार, समाज और माता-पिता के कंधों पर है। उसके अपने प्रयास भी महत्त्वपूर्ण हैं। प्रारंभ से उस दिशा में प्रयत्न करने पर ही सफलता मिलती है।
सार लेखन गद्यांश-3
हमारे देश में अशिक्षित प्रौढ़ों की संख्या करोड़ों में है। यदि हम किसी प्रकार इनके मानस-मंदिरों में शिक्षा की ज्योति जगा सकें, तो सबसे महान धर्म और सबसे पवित्र कर्त्तव्य का पालन होगा। रेलगाड़ी और बिजली की बत्ती से भी अपरिचित लोगों का होना हमारी प्रगति पर कलंक है। प्रौढ़ शिक्षा योजना इनको प्रबुद्ध नागरिक बनाने की दिशा में क्रियाशील है। इस योजना से गाँवों में एक सीमा तक आत्मनिर्भरता आएगी। हर बात के लिए शहरों की ओर ताकने की प्रवृत्ति समाप्त होगी। निरर्थक रूढ़ियों और अंधविश्वासों में फँसे हुए और अपनी गाढ़े पसीने की कमाई को नगरों की भेंट चढ़ाने वाले ये हमारे भाई प्रौढ़ शिक्षा से निश्चित ही सचेत और विवेकी बनेंगे। स्वास्थ्य, सफ़ाई, उन्नति, कृषि तथा आपसी सद्भावना के प्रति प्रौढ़ शिक्षा इनको जागरूक बना सकती है। इससे इनकी मेहनत की कमाई डॉक्टरों की जेबों में जाने से और कचहरियों में लुटने से बचेगी। सबसे बड़ा लाभ तो प्रौढ़ शिक्षा द्वारा यह होगा कि करोड़ों लोग नए ढंग से देखने, सुनने और समझने के साथ-साथ अच्छा आचरण करने में समर्थ होंगे।
हमारे करोड़ों देशवासी आज भी अशिक्षित और पिछड़े हुए हैं। सारे संसार के सामने हम इस कलंक को सिर झुकाए सह रहे हैं। भारत की उन्नति चंद नगरों को जगमग कर देने से नहीं होगी, उसकी सच्ची उन्नति का पैमाना तो यही ग्राम समुदाय है जिसकी पढ़ने की आयु निकल चुकी, जो स्वयं पढ़ने के महत्त्व से अपरिचित हैं, जिसका तन-मन-धन नगरीय सभ्यता शताब्दियों से लूटती चली आ रही है। ऐसे अज्ञान और अशिक्षा के अंधकार में जीवन बिताने वाले करोड़ों भाइयों-बहनों के प्रति यदि हम आज सचेत और उत्तरदायी बनने की बात सोच रहे हैं, तो देश का बड़ा सौभाग्य है।
सार लेखन - अशिक्षित व्यक्ति समाज के लिए कलंक है। प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अपने अधिकार और कत्तव्यों के प्रति जागरूक होंगे, नई दृष्टि से सोचने-समझने की शक्ति भी उनमें उत्पन्न होगी। साथ ही, वे शोषण के शिकार भी नहीं बनेंगे। भारत की उन्नति का अर्थ है - गाँवों की उन्नति। यह तभी संभव है, जब वहाँ के अधिक-से-अधिक नागरिक शिक्षित हों। प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम ही इसका एकमात्र उपचार है। इसे सफल बनाना हम सबका कर्त्तव्य है। इससे देश का गौरव बढ़ेगा।
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