'त्यागपथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।: रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' द्वारा लिखित खण्डकाव्य 'त्यागपथी' पाँच सर्गों में विभक्त भारतवर्ष के यशस्व
'त्यागपथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
'त्यागपथी' खण्डकाव्य की कथावस्तु: रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' द्वारा लिखित खण्डकाव्य 'त्यागपथी' पाँच सर्गों में विभक्त भारतवर्ष के यशस्वी सम्राट हर्षवर्धन की शौर्य गाथा है। हर्षवर्धन के कैशोर्य तथा थानेश्वर के राजा प्रभाकरवर्द्धन के राज्य की सुख-समृद्धि-शान्तिपूर्ण व्यवस्था के साथ खण्डकाव्य प्रारम्भ होता है। आखेट पर गये राजकुमार हर्षवर्द्धन को अपने पिता के अस्वस्थ होने का समाचार मिलता है तो वह तुरन्त वायु के वेग से राजधानी लौटता है। राजा प्रभाकरवर्द्धन थानेश्वर के प्रतापी राजा हैं, तीन बच्चों राज्यवर्द्धन, हर्षवर्द्धन, राज्यश्री के पिता हैं और इस समय अपनी पत्नी के सती होने के हठ सामने विवश हैं। हर्षवर्द्धन राजधानी पहुँचकर पिता की सेवा में लग जाते हैं और माता को हर प्रकार से मनाने का प्रयास करते हैं। किन्तु मानो काल हर्षवर्द्धन की परीक्षा लेने का संकल्प ले प्रकट हुआ था।
पिता की मृत्यु से पहले ही हर्षवर्धन की माता सती हो जाती हैं और पिता कुछ दिनों बाद स्वर्गवासी हो जाते हैं। बड़े भाई राज्यवर्द्धन संन्यास लेने पर विचार करने लगते हैं किन्तु गुरुजनों तथा हर्षवर्द्धन के समझाने पर राजकाज संभालते हैं। तभी उन्हें समाचार मिलता है कि मालवराज ने उनकी बहन राज्यश्री को कारागार में डाल दिया। राज्यवर्द्धन विशाल सेना लेकर मालवराज को परास्त करते हैं, परन्तु गौड़ नरेश शशांक उनकी छलपूर्वक हत्या कर देता है। हर्षवर्द्धन को जब भाई की निर्मम हत्या का संदेश मिलता है तो वह प्रचण्ड क्रोध के साथ कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिशोध लेता है। हर्षवर्द्धन कारागार में बहन राज्यश्री को खोजता है किन्तु वह कुछ समय पूर्व ही कारागार से भाग चुकी है। सम्पूर्ण क्षेत्र में राज्यश्री की खोज होती है और सुदूर जंगल में राज्यश्री अपने जीवन के कष्टों से विवश होकर अपनी चिता तैयार कर रही है। बौद्ध भिक्षुक दिवाकर मित्र की सहायता से हर्षवर्द्धन अपनी बहन को ढूँढ निकालते हैं और उसके साथ संन्यास लेने को तैयार हो जाते हैं। पुनः दिवाकर मित्र द्वारा जनसेवा तथा लोक कल्याण के संकल्प की याद दिलाने पर दोनों भाई-बहन जनसेवा तथा देश के लिए कल्याणकारी कार्यों के सृजन में लग जाते हैं। हर्ष अपनी बहन को सहशासिका घोषित करते हैं और कन्नौज को अपनी राजधानी बनाते हैं। हर्ष के शासन में प्रजा सुखी है और हर्ष सर्वप्रकारेण प्रजा के कल्याण में रत है। इसी के साथ-साथ खण्डकाव्य समाप्त होता है।
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