अपना-अपना भाग्य कहानी की कथावस्तु: जैनेंद्र जी ने ‘अपना-अपना भाग्य' कहानी का प्रारंभ नैनीताल के प्राकृतिक सौंदर्य चित्रण से किया है। उन दिनों लेखक (वा
अपना-अपना भाग्य कहानी की कथावस्तु / कथानक
अपना-अपना भाग्य कहानी की कथावस्तु: जैनेंद्र जी ने ‘अपना-अपना भाग्य' कहानी का प्रारंभ नैनीताल के प्राकृतिक सौंदर्य चित्रण से किया है। उन दिनों लेखक (वाचक मैं ) अपने मित्र के साथ नैनीताल घूमने गए थे। शाम के समय वे घूमते हुए देखते हैं कि समाज के उच्च वर्ग के लोग पहाडी स्थानों पर जा कर बडे-बडे हॉटेलों में निवास करते हैं। उनके कमरों से आती हुई मधुर संगीत की ध्वनि उनकी शौकिया मानसिकता और तबीयत की सम्पन्नता की ओर संकेत करती है। नौका विहार, घुडसवारी इनके प्रिय शौक हैं। इनके बच्चे भी तरह-तरह के मँहगे कपडों से सुसज्जित अनेक प्रकर के खेल खेलते हैं।
कहानीकार ने नैनीताल की प्राकृतिक सुंदरता का चित्र प्रस्तुत करते हुए कहा है कि “रूई के रेशे से बादल हमारे सिरों के छूकर बेरोक घूम रहे थे। हलके प्रकाश और अँधियारी से रंगकर कभी वे नीले दीखते, कभी सफेद और फिर जरा देर में अरूण पड जाते। वे जैसे हमारे साथ खेलना चाह रहे थे।” सूर्यास्त के समय का नैनीताल का वातावरण बहुत ही लुभावना होता है। ऐसे समय में शासक अंग्रेज मौज-मस्ती के लिए आए हुए थे। उनके झुंड ही झुंड नैनीताल में इधर-उधर घूम रहे थे। अंग्रेज अधिकारी गर्व से तने घोडों पर सवार थे और गरीब भारतीय डरे-सहमे हुए थे। उनके सम्मान और प्रतिष्ठा को अंग्रेजों ने कुचलकर शून्य बना दिया था।
हँसते - खिल खिलाते लाल चेहरेवाले अंग्रेजों के बच्चे भी अपने अपने पिताओं के साथ शरारते करते हुए भाग रहे थे। पिले चेहरे लिए आश्चर्यचकित अपने भारतीय बच्चे पिता की ऊँगली पकडकर चल रहे थे। अंग्रेज औरतें हँसती हुई तेज चाल से चल रही थी तो भारतीय नारियाँ सडक के किनारे-किनारे दामन बचाती हुई साडी की कई तहों में सिमट - सिमटकर सहमी हुई जा रही थी।
धीरे-धीरे चारों तरफ घना कुहरा छा गया था। लेखक और उनके मित्र एक होटल में ठहरे हुए थे। वे उस संध्या के समय घूमने निकल पडे थे। बर्फ गिरने लगी थी। धीरे-धीरे रास्ते विरान हो रहे थे। घडी में रात के ग्यारह बज रहे थे तब लेखक का ध्यान दस-बारह साल के पहाड़ी लड़के की ओर जाता है। वह लडका सिर के बडे-बडे बालों को खुजलाता हुआ चला आ रहा था। वह नंगे पैर नंगे सिर था। उसने एक मैली कमीज पहनी थी। वह चलते समय लडखडाता हुआ चल रहा था। वह गोरे रंग का था मगर मैल से काला पड गया था। उसकी आँखें अच्छी और बडी पर सूनी थी। वह ठंड से बेहाल था। वह भूखा-प्यासा था। उसे पूछने पर मालूम हुआ कि गरीबी और भूखमरी के कारण वह पहाडी गाँव से भाग आया था। वह एक होटल में दिन भर काम करता था। काम के बदले में उसे जूठा खाना और एक रुपया मिलता था। वहाँ से भी उसे उस दिन से निकाल दिया गया था। वह बेसहारा बना हुआ था। उसे खाने और सहारे की जरूरत थी । इसके बदले में वह कुछ भी काम करने के लिए तैयार था।
वह लेखक और लेखक के मित्र से काम और खाने के लिए माँगने लगा तब लेखक और उनके मित्र उस लडके को अपने साथ लेकर अपने वकील मित्र के पास गए। क्योंकी उस वकील मित्र को नौकर की जरूरत थी । उस लडके की करूण दशा देखकर लेखक का दिल पिघल गया था। इसलिए वे उस लडके की सहायता करना चाहते थे। मगर उनके वकील मित्र ने उस पहाडी लडके की ईमानदारी पर शक प्रकट करते हुए उसे नौकरी पर रखने का विरोध किया। वकील साहब का पहाडी लडकों पर जरा भी भरोसा नहीं था। उन्हे लगता था कि पहाडी लडके चोरी करके भाग जाते हैं।
उस लडके की बेबसी, लाचारी से लेखक और उनके मित्र के मन में करूणा निर्माण हुई, इसलिए वे उसे कुछ पैसे देना चाहते थे। दोनों ने देखा कि उनके पास दस-दस के नोट थे। छुट्टे पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं दिया, उन्हें अपना बजट बिगड जाने का डर था। अतः वे केवल दया दिखाते हैं
सर्दी से लडके के दाँत कटकटाते रहें लेकिन लेखक और उनके मित्र ने छुट्टे पैसे नहीं है ऐसा कहकर उसे कुछ भी नहीं दिया। केवल झूठी सहानुभूति दिखाकर लेखक और उनके मित्र अपने निवास स्थान की ओर चल पडे। वह पहाडी लडका वही सर्दी में ठिठुरता हुआ रह गया। अगले दिन लेखक ने (वाचक मैं) उस पहाडी लडके की मृत्यु का समाचार सुना। भूख और सर्दी के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी। बतानेवाले ने बताया कि बच्चे के शरीर पर बर्फ की हल्की सी चादर चिपक गई थी। मानो दुनिया की बेहयाई - निर्ममता से बचाने के लिए प्रकृति ने लाश के लिए सफेद और ठंडे कफन का प्रबंध किया हो।
भूख, गरीबी, बेबसी के कारण उस लडके की असमय मृत्यु हो गई थी। बर्फ से ढके उस लडके के बारे में लेखक और उनके मित्र ने कहा 'अपना-अपना भाग्य है ।' लडके की मृत्यु पर लेखक और उनके मित्र को जरा भी पछतावा नहीं था कि अगर वे उसकी मदद करते तो शायद उसकी असमय में मृत्यु नहीं होती।
कहानी की विशेषताएँ
प्रस्तुत कहानी में जैनेंद्र जी ने मध्य वर्ग की खोखली सहानुभूति और भाग्य की क्रूरता को चित्रित किया है। आर्थिक-सामाजिक विषमता को चित्रित करते हुए कहानीकार ने एक ओर सुखासीन अमीर अंग्रेज और कोरी सहानुभूति दिखानेवाले मध्यवर्गीय समाज का चित्रण किया है तो दूसरी ओर गरीब, लाचार, बेबस, भूखे, पहाडी लडके और भारतीयों का चित्रण है। दूर दराज के पहाडी प्रदेश विकास और रोजगार की सुविधाओं से कोसों दूर अंधकार में होने के कारण वहाँ के बच्चे - जवानों को अपना बचपन-जवानी रोटी की तलाश में बुढी होती हुई देखना पडता है। मध्य वर्ग और नव धनाढ्य वर्ग ऐसे बेबस लोगों के प्रति कोरी सहानुभूति दिखाकर उनका शोषण करते हैं। गरीबों के प्रति उनका संवेदना शून्य व्यवहार मनुष्यता के लिए कलंक है। उनके सहानुभूति दिखाने के ढोंग को कहानीकार ने चित्रित कर उनका मजाक उडाया है। सामाजिक दायित्व से बचने के लिए भाग्यवादिता का आधार लेने वाले मध्यवर्ग की गंदी मानसिकता पर कहानीकार ने कठोर प्रहार किए हैं।
प्रस्तुत कहानी का प्रारंभ आकर्षक सुंदर और जिज्ञासा निर्माण करनेवाला है। कहानीकार ने संवेदनशीलता, कल्पना तथा संयोजन शक्ति का प्रयोग कर कहानी को गतिशील एवं उद्देश्यपूर्ति के अनुकूल बनाया है। पात्रों की मानसिक संघर्ष यात्रा और मनोदशा का प्रभावी चित्रण किया है। कहानी का अंत पाठक के दिल दिमाग को झकझोर कर देता है। कथावस्तु के विकास की दृष्टि से आरंभ, विकास, जिज्ञासा निर्मिति और अंत ये सारी स्थितियाँ आलोच्य कहानी में उलपब्ध होती हैं।
प्रस्तुत कहानी विचार प्रधान है। सूक्ष्म भावों को पकडकर व्यक्त करने की क्षमता इसमें है। भाषा सरल, स्वाभाविक एवं सुव्यवस्थित है । जीवन और जगत की दार्शनिकता का विवेचन है
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