अजातशत्रु नाटक की कथावास्तु - Ajajshatru Natak Ki Kathavastu: 'अजातशत्रु' नाटक का सम्पूर्ण कथानक (कथावास्तु) तीन अंकों में विभाजित है। पूरे नाटक में
अजातशत्रु नाटक की कथावास्तु - Ajajshatru Natak Ki Kathavastu
'अजातशत्रु' प्रसाद की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक नाट्य कृति है। इसमें उन्होंने इतिहास और कल्पना का सुन्दर संयोग किया है। वस्तुतः नाट्यकला की दष्टि से इसका विवेचन महत्वपूर्ण ही नहीं उपादेय भी है। 'अजातशत्रु' नाटक का सम्पूर्ण कथानक (कथावास्तु) तीन अंकों में विभाजित है। पूरे नाटक में विरोध का वर्चस्व स्पष्टतः दिखाई पड़ता है। इसका विरोध से ही आरम्भ होता है और विरोध का ही विस्तार दिखाया गया है, अंत में विरोध की समाप्ति हो जाती है। इसमें मुख्य घटनास्थल तीन हैं - मगध, कौशल और कौशांबी। जो विरोध की अग्नि मगध में प्रज्जवलित हुई, उसकी प्रचंडता कौशल में दिखाई पड़ी और उसकी लपट कौशांबी तक पहुंची है।
सम्राट बिंबसार पारिवारिक कलह के अन्तर्गत पुत्र की उद्दंडता देखकर और अपनी छोटी रानी छलना की अधिकार लोलुपता व कुमंत्रणा का विचार कर जीवन से उदासीन रहते हैं। यह विरक्ति पहले तो अन्तर्मुखी होती है लेकिन जब छलना अधिकारपूर्वक कुणिक (अजातशत्रु) के राज्याभिषेक की घोषणा करवा देती है तो वह उनके अन्तर्दृन्द्व को व्यवहार क्षेत्र में ला खड़ा करता है। छलना और देवदत्त की मंत्रणा के फलस्वरूप ही अजातशत्रु राज्यभारत संभालने लग जाता है और बिंबसार इस कार्य से तटस्थ हो जाते हैं।
सुदत्त जब मगध का यह समाचार कौशल- नरेश प्रसेनजित के पास पहुंचाता है तो सारी सभा में इसी घटना को लेकर विवाद खड़ा हो जाता है। युवराज विरुद्धक द्वारा अजातशत्रु के पक्ष का समर्थन करने पर महाराज प्रसेनजित क्रोधावेश में यह घोषणा कर देते हैं कि- "विरुद्धक युवराज पद से तथा उसकी माता शक्तिमती राजमहिषी पद से वंचित की जाती है।" इस प्रकार विरुद्धक पिता से विरोध की भावना लेकर राज्य का त्याग कर देता है और डाकू बन जाता है ।
कौशांबी में राजा उदयन मागंधी के षडयंत्र में पड़कर रानी पद्मावती के विरुद्ध हो जाते हैं। इस षडयंत्र का भेद खुलने पर मागंधी वहां से भागकर काशी में आकर बारविलासिनी बन जाती है। निष्कर्षतः सम्पूर्ण प्रथम अंक विरोधात्मक प्रयत्नों से आप्लावित है। इसके उपरांत संपूर्ण द्वितीय अंक में इसी विरोध का विस्तार और चरम सीमा दिखाई देती है। त तीय अंक में इस व्यापक विरोध का शमन है। प्रत्येक विरोधी दल अहंकार पाप-पूर्ण तुच्छ मनोव त्ति पर पश्चाताप प्रकट करता है और अपनी भूल को सुधारने का प्रयास करता है। आधार या स्रोत की द ष्टि से विद्वानों ने नाटक की कथावस्तु के तीन भेद किए हैं- (1) प्रख्यात
(2) उत्पाद्य (3) मिश्रित। प्रख्यात कथावस्तु वह कहलाती है जिसका आधार इतिहास, पुराण और जनश्रुति होती है। 'अजातशत्रु' की कथावस्तु भी 'प्रख्यात' के अन्तर्गत आती है क्योंकि इसके अधिकांश पात्रों और घटनाओं का इतिहास ग्रंथों अथवा बौद्धों की जातक कथाओं में उल्लेख मिल जाता है। इसके अतिरिक्त नाटककार ने यत्र-तत्र अपनी कल्पना शक्ति के प्रयोग द्वारा भी कथावस्तु को रोचक बनाया है। वस्तुतः आलोच्य नाटक की कथावस्तु में वे सभी गुण विद्यमान हैं जो एक अच्छे नाटक की कथावस्तु में माने जाते हैं।
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