मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के पंचम सर्ग का सारांश: मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के पंचम सर्ग को 'चिन्ता सर्ग' के नाम से जाना जाता है। पांचवे सर्ग की कथावस्तु सं
मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के पंचम सर्ग का सारांश लिखिए
गंगारत्न पाण्डेय द्वारा रचित 'मेवाड़ मुकुट' खण्डकाव्य में महाराणा प्रताप के त्याग, शौर्य, साहस एवं बलिदानपूर्ण जीवन के एक मार्मिक कालखण्ड का चित्रण है। स्वतन्त्रता-प्रेमी प्रताप दिल्ली के बादशाह अकबर से युद्ध में पराजित होकर अरावली पर्वत के जंगलों में भटकते फिरते हैं। यहीं से काव्य का आरम्भ होता है। इस खण्ड काव्य की कथावस्तु सात सर्गों में विभाजित है।
मेवाड़ मुकुट खण्डकाव्य के पंचम सर्ग को 'चिन्ता सर्ग' के नाम से जाना जाता है। पांचवे सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में इस प्रकार है-
विचारमग्न दौलत से राणाप्रताप उसकी चिन्ता का कारण पूछते हैं। दौलत उत्तर देती है कि उसे न कोई दुःख है न कष्ट। केवल एक चिन्ता है कि कहीं उसके कारण मेवाड़ मुकुट को सिर न झुकाना पड़ जाये।
महाराणा कहते हैं कि दौलत के आने से उन्हें यह अभाव नहीं खटकता कि उनकी कोई पुत्री नहीं है। किन्तु आज राणा ने उसकी माँ की आँखों में आँसू देखे हैं। यदि दौलत अपनी माँ (राणा की पत्नी) को धैर्य प्रदान कर सके तो राणा का मस्तक कभी नहीं झुक सकेगा। राणा के इतना कहने पर दौलत उन्हें वचन देती है। वह रानी की व्यथा को दूर करने की चेष्टा करेगी।
उधर रानी लक्ष्मी कुटी में विचारमग्न बैठी हैं। उसे दुःख है कि उसने महाराणा के सामने अपनी व्यथा बताकर उन्हें दुखित किया है। रानी लक्ष्मी के पास जाकर मधुर स्वर में उनकी चिन्ता का कारण पूछती है और रानी का दुःख स्वयं लेना चाहती है।
महाराणा प्रताप भी रानी लक्ष्मी से कहते हैं कि उन्होंने (रानी ने) अब तक हार नहीं मानी तो आगे भी हार नहीं माननी चाहिए । राणा अपना निश्चय बताते हुए कहते है कि वे अरावली छोड़ किसी अन्य स्थान पर जायेंगे और वहाँ साधन तथा सेना जुटायेंगे। वे या तो मेवाड़ से अकबर का शासन हटायेंगे या उसके प्रयत्न में अपने प्राणों की आहुति दे देगे। महाराणा प्रताप के इस निश्चय से रानी लक्ष्मी उत्साह से भर जाती हैं। राणा भी फिर से आश्वस्त हो जाते हैं। इस प्रकार पंचम सर्ग की कथावस्तु समाप्त हो जाती है।
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