काव्य के तत्व पर प्रकाश डालिए: भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्रियों ने काव्य के चार तत्व माने हैं - भाव तत्व, बुध्दि तत्व, कल्पना तत्व और शैली तत्व।
काव्य के तत्व पर प्रकाश डालिए
काव्य के तत्व: भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्रियों ने काव्य के चार तत्व माने हैं - भाव तत्व, बुध्दि तत्व, कल्पना तत्व और शैली तत्व। भाव, बुध्दि और कल्पना को संप्रेषित एवं प्रभावपूर्ण बनाने के लिए शैली तत्व की आवश्यकता होती है। तात्पर्य है कि चारों तत्व परस्पर सहाय्यक एवं पोषक होते हैं। दूसरे शब्दों में चारों तत्व एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इन चारों तत्वों का विवेचन निम्न प्रकार से किया जा सकता है :-
1) भाव तत्व (Element of Emotion) :- भारतीय आचार्यों ने भावतत्त्व को काव्य की आत्मा माना है। वे मानते है कि भावतत्त्व के अभाव में साहित्य निर्जीव और निष्प्राण हो जाता है। सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर जब साहित्यकार उच्च भावभूमि पर स्थित आनंदमय भावों का उद्रेक अपने हृदय में प्राप्त करता है और उन्हें अपने कार्य (काव्य) में प्रकट करता है, तब यही भाव रस का रूप धारण करके पाठक या श्रोता के हृदय को आनंदमग्न कर देता है। इसीलिए साहित्य में भावतत्त्व का अपना विशिष्ट स्थान है।
आचार्य विश्वनाथ ने 'वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम्' कहकर भावतत्त्व को प्रधानता दी है। भावतत्त्व हृदय में स्थित होता है। डॉ. भगीरथ मिश्र ने भाव तत्व के महत्त्व को व्यक्त करते हुए लिखा है कि भाव काव्य का बड़ा व्यापक तत्त्व है। यह पाठक और श्रोता का भी संस्कार करता है। भाव को साकार रूप देनेवाले शब्द, अर्थ और कल्पना है। और इसके अलावा बिना बौध्दिक प्रयत्न के भी भावतत्त्व का गहरा प्रभाव काव्य में होता है। स्पष्ट है कि भावतत्त्व काव्य का प्रधान और प्रेरक तत्व है।
2) बुध्दि तत्व (Element of Intellect) :- इसे विचार तत्व भी कहा जाता है। बुध्दितत्त्व काव्य में भाव एवं कल्पना का संयोजन करता है। इसी तत्व के महत्त्व को स्वीकार करते हुए पाश्चात्य विद्वान टी. जी. विलियम्स ने लिखा है, 'कविता विचारों के आदान-प्रदान करने का एक विशेष तरीका है। काव्य सुनियोजित विचारों की अभिव्यक्ति है।' तात्पर्य यही है कि बुध्दि या विचार तत्व को काव्य का एक महत्त्वपूर्ण तत्व स्वीकार किया गया है।
बुध्दि तत्व में विचारों की प्रधानता होती है। साहित्यकार की रचना का एक विशिष्ट उद्देश्य होता है। वह उसके द्वारा पाठकों को एक विशिष्ट संदेश देना चाहता है। इस विशिष्ट संदेश तथा उद्देश्य के प्रतिपादन के लिए वह काव्य के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति करता है। वही विचार साहित्य में बुध्दि तत्व कहलाते हैं। साहित्य में साहित्यकार अपने विचारों के अनुसार जीवन की व्याख्या करता है। साथ ही साथ विश्व के महान सत्य की अभिव्यक्ति करता है। इस अभिव्यक्ति में ही वह अपने दार्शनिक विचारों की स्थापना करता हुआ बुध्दि तत्व की पुष्टि करता है। इसीलिए काव्य में बुध्दितत्त्व अनिवार्य है।
3) कल्पना तत्व (Element of Imagination) :- कल्पना शब्द में सृष्टि करना या निर्माण करना अर्थ निहित है। अंग्रेजी में कल्पना शब्द के लिए पर्यायवाची शब्द है Imagination | जिसका निर्माण Image से हुआ है। Image का अर्थ है - मन में धारणा करना। कल्पना द्वारा साहित्यकार अमूर्त वस्तुओं को भी मूर्त रूप प्रदान करता है और इसी कल्पना शक्ति के द्वारा वह अपनी रचना में उन्हीं चित्रों को पाठक की आँखों के सामने लाकर रख देता है। साधारण घटनाओं को भी कल्पना द्वारा कवि उन्हें असाधारण बना देता है।
कल्पना ही कवि की सृजनशक्ति है और इसी के बल पर वह सृष्टि का पुनर्निमाण कर सकता है। कल्पना - संपन्न होने के कारण ही कवि भविष्यद्रष्टा कहलाता है। कवि कल्पना के द्वारा अप्रत्यक्ष वस्तु का चित्रण करता है। काव्य में रमणीयता एवं चमत्कार कल्पना का ही कार्य है। काव्य में सुंदरम् की प्रतिष्ठा का क्षेत्र कल्पना तत्त्व को ही जाता है। दूसरे शब्दों में रूप या सौंदर्य की सृष्टि करनेवाली शक्ति कल्पना है। कल्पना के माध्यम से अतीत एवं भविष्य की वस्तुओं का हम साक्षात्कार कर सकते हैं।
अतीत को वर्तमान बनाना, सुदूरस्थ को प्रत्यक्ष करना और जीवन के अनुभव और ज्ञान को एक निश्चित रूप प्रदान करना कल्पना का ही कार्य है । कल्पना से काव्य में रमणीयता निर्माण होती है।
4) शैली तत्व (Element of Style) :- प्रथम तीन तत्व साहित्य के भावपक्ष से संबंधित है। परंतु शैलीतत्त्व का संबंध साहित्य के कलापक्ष से है। अनुभूति, भाव तथा कल्पना कितनी ही पुष्ट क्यों न हो, किंतु
शैली तत्व के अभाव वह अशक्त हो जायेगी। भावों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा शरीर का काम करती है। जैसे - निर्बल शरीर में स्वस्थ आत्मा का रहना कठिन है। उसी प्रकार अपुष्ट (कमजोर) भाषा द्वारा पुष्ट भावों की अभिव्यक्ति भी कठिन है। भावों की पुष्टता के लिए अनुकूल भाषा का गठन तथा अभिव्यक्ति शैली पुष्ट होना चाहिए।
पाश्चात्य साहित्य में शैली तत्व को विशेष महत्त्व दिया गया है। अंग्रेजी में कहा गया है कि Style is the man himself। इसी प्रकार प्रत्येक कवि की अपनी विशिष्ट शैली होती है। काव्य को प्रभावी बनाने के लिए शैली तत्व आवश्यक हो जाता है। जिस प्रकार पौष्टिक एवं सुस्वाद भोजन यदि सफाई एवं सलीके के साथ न परोसा जाए तो ग्राह्य नहीं होता। उसी प्रकार भाव, बुध्दि एवं कल्पना कितनी भी सुंदर क्यों न हो यदि उन्हें उचित ढंग से व्यक्त न किया जाए तो वे भी ग्राह्य नहीं होंगे।
शैली तत्व के अंतर्गत भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। भावानुकूल भाषा ही काव्य में सरसता उत्पन्न करती है। भावतत्त्व काव्य की आत्मा है, तो शैलीतत्त्व उसका शरीर है। कवि के हृदय में स्थित भावों को शब्दों में ढालना शैलीतत्त्व का कार्य है। काव्य में शब्द-चयन एवं उनका उचित संयोजन अत्यंत आवश्यक है। इसीलिए, कॉलरिज ने कहा है, 'Poetry is the best words, in their best order.' अर्थात् सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम क्रम काव्य है। शैलीतत्त्व के अंतर्गत शब्द, भाषा, अलंकार, छंद, शब्दशक्ति आदि का समावेश होता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि काव्य- निर्माण में भावतत्त्व, बुध्दितत्त्व, कल्पनातत्त्व और शैलीतत्त्व का उचित समन्वय आवश्यक है। साहित्य के लिए इन चारों, तत्त्वों की समान रूप से आवश्यकता है। यदि बुध्दितत्त्व से साहित्य में 'सत्यम्' तथा 'शिवम्' क रक्षा होती है, तो कल्पना, भाव एवं शैलीतत्त्व से 'सुंदरम्' का निर्माण होता है।
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