भारतीय कला की परिभाषा और चरण बताइये: संस्कृत के विद्वानों के अनुसार कला का मूल शब्द कल है जिसका अर्थ है सुन्दर (Beautiful), कोमल (Soft), मधुर (Sweet)
भारतीय कला की परिभाषा और चरण बताइये (Definition of Indian Art and its Stages)
भारतीय कला की परिभाषा: संस्कृत के विद्वानों के अनुसार कला का मूल शब्द कल है जिसका अर्थ है सुन्दर (Beautiful), कोमल (Soft), मधुर (Sweet) या जो प्रसन्नता / खुशी (Pleasure) प्रदान करता है। सर्वप्रथम (1st CenturyA.D.) इस शब्द का प्रयोग भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में किया था । भरत मुनि के श्लोक के अनुसार गाना, बजाना, नृत्य आदि इस शब्द का द्योतक है। पंडित भोलानाथ तिवारी के अनुसार इस शब्द का प्रयोग लघुकला (Fine arts) और शिल्पकला (Useful arts) दोनों के लिए ही किया गया है। पाणिनी (Panini) के अष्टअध्याय में शिल्प का प्रयोग लघु और उपयोगी दोनों ही कला के लिए किया गया है। अतः नाट्यशास्त्र के उद्भव के पहले सामान्य रूप में शिल्प का अर्थ दोनों ही था ।
कला (Art) शब्द की उत्पत्ति
आर्ट (Art) लेटिन (Latin) शब्द Ars or Artem से उत्पन्न हुआ है। इसका मूल शब्द Ar है जिसका अर्थ है उत्पन्न करना (To produce) सृजन करना (To create ) व्यवहारिक कौशल (Practical Skill) हस्तकाल (Craft) आदि। यूनानी शब्द Artizein तैयार करना (To prepare ) है। प्राचीन आंग्ल भाषा में Eart, और मध्यकाल आंग्ल भाषा में Art का प्रयोग हुआ। पुर्नजागरण काल के दो शताब्दी बाद (1660 ) से Art का आधुनिक अर्थ में प्रयोग किया जा रहा है।
- प्लेटो (Plato) के अनुसार कला सत्य का प्रतिमान है। (Art is the imitation of truth.)
- रस्किन (Ruskin) के अनुसार कला ईश्वर के कृति के प्रति मानव की आनंद / खुशी है । (It is mans delight towards the creation of God.)
- कुछ विद्वानों के कला को प्रभाव की अभिव्यक्ति (Expression of Impression) कहा है।
भारतीय कला की उत्पत्ति पाँच हजार वर्ष पूर्व हुई। समय के साथ - साथ संस्कृति के प्रभाव से इसमें परिवर्तन आया और यह विविधता से पूर्ण हो गया। भारतीय इतिहास के चार चरण है जिसमें कला को प्रभावित किया और उस काल की संस्कृति, धर्म एवं राजनीति के विकास को प्रतिबिम्बित किया। अति प्राचीन भारतीय कला गुफाओं में दिखती है। भीम बैठक गुफा चित्रकारी इसका उदाहरण है। एक सामान्य चीज जो सभी गुफा चित्रकारी में पाई जाती है गेरू का उपयोग ( Powdered mineral a form of Iron Oxide hematite )। ये लाल रंग से की गई चित्रकारी मानव, पशु शिकार, पत्थर के औजार को दर्शाता है।
भारतीय कला अपनी मूर्ति कला के लिए उल्लेखनीय है । सिन्धु सम्यता (500-1500 BC.E.) से ही पत्थर और धातु की मूर्ति बनाई जाती थी जो भारतीय मौसम के थपेड़ों को सह कर बची रही। धातु संकचन है (Metalcasting) का नमूना है सिन्धु घाटी की नृत्यांगना।
मौर्य काल (322 BCE - 185 BCE ) की कला में लकड़ी का भरपूर प्रयोग हुआ साथ ही साथ पत्थरों से स्मारक कला (Monumental) का भी उद्भव हुआ।
गुप्तकाल (320 CE - 550 CE ) उत्तर भारतीय कला का उत्कृष्ट शिखर था। चित्रकला का भी विस्तृत प्रचार था लेकिन बचे हुए अवशेष ज्यादातर धार्मिक मूर्तिकला के ही नमूने है । चित्रकला में लघु चित्र (Miniature painting) और भित्ति चित्र (Mural painting) भी था।
दक्षिण में (3rd Century - C. 1300 CE) मंदिरों और मूर्तियों का बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ। मध्यकाल (C 1400 CE- C1800 CE) में इस्लाम का प्रभाव दिखने लगा । ये वास्तुकला के साथ-साथ ललित कला के भी प्रशंसक थे। चित्रकला का अत्यधिक विकास हुआ। चित्रकला पर फारस की शैली (Persian style) का प्रभाव था। उत्तर भारत में काँगड़ा (Kangra school) और पहाड़ी (Pahari style) शैली भी खूब प्रचलित थी।
स्वतंत्रता पूर्व भारतीय कला पर यूरोपीय प्रभाव था। यूरोपीय और भारतीय कला का सम्मिश्रण भी देखा गया। स्वतंत्रता बाद ( C. 1900 CE) की समकालीन कला आज भी प्रचलित है। भारत कला और हस्तकला का देश है। यह पारंपरिक कला और हस्तकला के देश के रूप में चित्रित है। प्रत्येक क्षेत्र की कुछ न कुछ खासियत है। एक अलग पहचान है जो क्षेत्रीय कला के माध्यम से अभिव्यक्त की गई है जिसे लोक कला (Follcant) कहा गया। साथ ही जनजाति (Tribal Art) कला भी विकसित हुई। ये अति प्राचीन काल से कायम हैं और पीढी दर पीढ़ी आज भी प्रयोग में हैं। बिहार भी ऐसी कला का केन्द्र है और इनके उदाहरण हैं मंजूषा चित्र कला या अंगिका कला, मिथिला या मधुबनी चित्रकला, टिकुलीकला, पटनाकलाम जिसे कंपनी चित्रकला भी कहते हैं। बंगाल का कालीघाट चित्रकला, महाराष्ट्र का वर्ली चित्रकला, राजस्थान का लघु चित्रकला और केरला का कलमकला आदि। अन्य क्षेत्रों में भी विकास हुए जैसे कच्छ ( राजस्थान) का रोघन चित्रकला, बस्तर का ढोकरा हस्तकला, उड़ीसा का पटचित्र, आँध्रप्रदेश का निर्मल चित्रकला । लोक कला में केवल चित्रकला ही नहीं आता है। व्यापक रूप से इसमें घर सज्जा, कपड़ा बनाना, मिट्टी के बर्त्तन बनाना, आभूषण बनाना सभी आता है। कढ़ाई में पारसी कला, टोडा जनजाजि की कला, पटोला बुनाई सब अपने आप में खूबसूरत नमूना है।
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