सोना कहानी का सारांश- महादेवी जी 'सोना' रेखाचित्र / कहानी के द्वारा अबोध, अमायक तथा साधु हिरण शावक की करुण कहानी प्रस्तुत करती है। हिरण वनप्रदेश में स
सोना कहानी का सारांश - महादेवी वर्मा
सोना कहानी का सारांश- महादेवी जी 'सोना' रेखाचित्र / कहानी के द्वारा अबोध, अमायक तथा साधु हिरण शावक की करुण कहानी प्रस्तुत करती है। हिरण वनप्रदेश में स्वच्छन्द रूप से विचरते रहा हैं। कहीं शिकारियों की आहार होने से हिरणों का झुण्ड भाग जाता है। किन्तु सद्यः प्रसूता सोना की माँ भागने में असमर्थ रह जाती है। मृगी माँ अपनी सन्तान को अपने शरीर की आड़ में सुरक्षित रखने के प्रयास में प्राण खो जाती है। कुतूहल प्रियता के कारण शिकारी मृत हिरणी के साथ उसके रक्त से सने और ठण्डे स्तनों से चिपटे हुए शावक को जीवित उठा लाता है। शिकारी की सहृदय गृहिणी और बच्चे उसे पानी मिला दूध पिला कर दो चार दिन जीवित रखते हैं - एक दिन मुमूर्ष (मूर्छित अवस्था में उस अनाथ मृगशाषक को लेकर महादेवी के पास आती है। करुणामयी महादेवी उस शावक को अपने पास रख लेती है।
स्निग्घ सुनहले रंग के कारण सब उसे 'सोना' कहने लगते हैं। महादेवी जी ‘सोना' को निपल से दूध पीने और बैठक को स्वच्छ रखने का अभ्यास कराती हैं। प्रयाग विद्यापीठ की छात्राओं से सोना का हेलमेल होता है। छागावास में पहुँचते ही छात्राएँ और नौकर-चाकर सत उसके आत्मीय बन जाते है ॥ दूध-पानी पीनाचने खाना और चौकडी भरते हुए छात्रावास के कमरों का निरीक्षण करना सोना की दिनचर्या बन जाती है। उसे छोटे बच्चे अधिक प्रिय होते है क्योंकि उनके साथ खेलने का अधिक अवकाश रहता है। घंटी बजते ही वह प्रार्थना के मैदान में पहुँच जाती है और उसके समाप्त होते ही कक्षाओं के भीतर - बाहर चक्कर लगाती रहती है। छात्राएँ उस के माथे पर कुमकुम का टीका लगा देती हैं और बिस्कुट आदि खिलाती हैं। भोजन का समय स्वयं जान लेती है और साथ ही महादेवी के पास होती या भोजनालय में।
लाइन में बैठे छोटे - छोटे बच्चों के ऊपर से सोना एक ओर से दूसरी ओर छलांग लेती हैं। महादेवी के प्रति वह विविध - रीतियों में स्नेह प्रदर्शन करती है। बाहर खड़े होने पर वह सामने या पीछे से छलांग लगाती और उनके सिर के ऊपर से दूसरी ओर निकल जाती हैं। महादेवी के पैरों से वह अपना शरीर रगड़ने लगती है। कभी वह उनकी साड़ी का छोर मुँह में लेकर चबा डालती है और कभी पीछे खडी होकर चुप चाप चोटी को चबा डालती हैं डाँटने से एकटक देखने लगती है कि महादेवी को हँसी आ जाती।
यहाँ महादेवी हिरण और कुत्ते के स्वभाव का अन्तर बताती हैं। कुत्ता स्वामी और सेवक का अन्तर जानता है और स्वामी की स्नेह या क्रोध की मुद्रा से परिचित रहता है पर हिरन यह अन्तर नहीं जानता। वैसे तो पशु मनुष्य के निश्छल स्नेह से परिचित रहते हैं। उसकी ऊँची-नीची सामाजिक स्थितियों से नहीं।
वर्षभर का समय बीत जाने पर सोना हिरण - शावक से हरिणी में परिवर्तित होती हैं। प्लोरा कुतिया चार बच्चों को जन्म देती है। एक दिन फ्लोरा कहीं बाहर धूमने जाती है तो सोना उन बच्चों के साथ लेट जाती है और पिल्ले चीची करते हुए सोना के उदर में दूध खोजते रहते हैं। पिल्ले बडे होने पर भी वे सोना के साथ धूमने लगते हैं और उससे साथ आनन्दोत्सव मनाते हैं।
उसी वर्ष गर्मियों में महादेवी का बदरीनाथ यात्रा कार्यक्रम बनता है। छात्रावास बन्द रहता है और सोना के नित्य नैमित्तिक कार्यकलाप भी बन्द हो जाते हैं। महादेवी की अनुपस्थिति में सोना के आनन्दोल्लास का भी अवकाश नहीं रहता है। महादेवी के निकलने पर सोना निराश जिज्ञासा और विस्मय के साथ देखती रह जाती है।
छात्रावास के सन्नाटे और फ्लोरा और महादेवी के अभाव के कारण सोना अस्थिर हो इधर -उधर खोजती - भी कभी कम्पाउण्ड के बाहर निकल जाती है। इतनी बडी हिरणी को पालनेवाले तो कम होते हैं, परन्तु उसमें खाद्य और स्वाद प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति बहुत होते हैं। इसी आशंका से माली उसे मैदान में एक लम्बी रस्सी से बान्ध देता है। एक दिन न जाने किस पीडा जन्म जडता की अवस्था में सोना रस्सी की सीमा और बन्धन को भूल कर बहुत ऊँचाई तक उछलती है और मुँह के बल धरती पर जा गिरती है। वह उसकी अन्तिम साँस और अन्तिम उछाल होती है। उस सुनहले रेशम की गठरी से शरीर को गंगा में प्रवाहित कर आते हैं। इस प्रकार किसी निर्जन वन में जन्मी और जनसंकुलता में पली सोना की करुण कथा समाप्त होती है।
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