तैमूर की हार कहानी का सारांश - Taimoor Ki Haar kahani Ka Saransh: गाँववालों को लूटते हुए तैमूर के नेतृत्व में सिपाही लोग हमला कर रहे हैं । भयभीत होकर
तैमूर की हार कहानी का सारांश - Taimoor Ki Haar kahani Ka Saransh
भारत का इतिहास इस बात का गवाही बन चुका हैं कि यहाँ बड़े निर्दयी खूँखार और शक्तिशाली विदेशी आक्रमणकारी आये थे, लोगों का खून बहाते थे, उन्हें लूटते थे, और उनका घर जलाते थे, यहाँ के मंदिर तोड़े थे और यहाँ की धनराशि लेकर यहाँ से चले गये थे। इन शक्तिशाली आततायियों में कुछ व्यक्ति, दूसरों की शांति और वीरता को परखने की क्षमता भी रखते थे। रामकुमार वर्मा ने तैमूर के चरित्र में वीरता को सराहने की ऐसी क्षमता देखी। इस बिन्दु के इर्दगिर्द तैमूर एकांकी का कथानक बुना गया है।
तैमूर की हार कहानी का सारांश- दीपलपुर वनप्रांत की एक गाँववाली कल्याणी अपने बेटे बलकरण के ग्यारहवीं वर्षगांठ के दिन उसके लिए मिठाइयाँ बनाती है और उसे एक पुराना गीत भी सुनाती है। उस गीत में विदेशी आक्रमणकारी महमूद गज़नी के अत्याचार और लूटमार का वर्णन था। बालक बलकरन एक साहसी और निर्भीक छोकरा है, तुर्क का किस्सा सुनते ही उसमें उन आततायियों से जूझने की इच्छा सिर उठती है, दूध लेने के लिए घर से बाहर जाते वक्त घर के चारों ओर शोरगुल मचता है।
गाँववालों को लूटते हुए तैमूर के नेतृत्व में सिपाही लोग हमला कर रहे हैं । भयभीत होकर गाँववाले अपना घरबार छोड़कर भागते हैं। तैमूर के सिपाही बलकरन के घर में घुसते हैं सोना, चाँदी आदि हाथ न आने पर वे लोग वहां रखा खाना और गरम मिठाइयाँ पेट भर खाते हैं जिसे कल्याणी ने अपने बेटे के लिए तैयार किया था । उस समय तैमूर वहाँ पहुँचता है और जब उसने देखा कि उसके सिपाही दौलत लूटने के बदले नाश्ता का स्वाद ले रहे हैं तो वे क्रोध से तिलमिलाते हैं और वे सिपाहियों को कड़ी सजा भी देते हैं। तैमूर बहुत प्यासा था और उसका गला सूख रहा था। इतने में दूध लेकर बलकरन वहाँ आता है। माँ को लापता देखकर तथा अजनबी आदमी को वहाँ खडे हुए देखकर उसे अचरज होता है । बहुत जल्दी वह समझ लेता है वह आदमी और कोई नहीं तैमूर ही है। तैमूर बालक से दूध माँगता है लेकिन वह स्पष्ट कहता है कि वह दूध माँ के सिवा और किसी को नहीं देता। लेकिन तैमूर बलकरन के हाथ से दूध छीन लेता है। जब तैमूर तख्त पर तलवार रखकर दोनों हाथों से दूध का बर्तन मुंह में उलट दे रहा था, बलकरण तैमूर की तलवार उठा लेता है। तैमूर को वह लड़का बड़ा निडर मालूम पड़ता है और उसकी बहादुरी से प्रभावित होकर अपनी फौज में भर्ती होने का तथा इस्लाम धर्म कबूल करने का आमंत्रण देता है । लेकिन बलकरन इनकार करते हुए अपनी चाकू से तैमूर से लड़ने का प्रयास करता है। तैमूर को वह बालक अपने से भी बड़ा बहादुर मालूम होता है। बलकरन की कुटिया से विदा लेने के पहले उस बालक की छोटी सी मुराद पूरा कर देने का वादा देता है। उस वादे के अनुसार तैमूर बालक के गाँव के बाहर चले जाते हैं। सारे शोरगुल के शांत हो जाने के बाद कल्याणी जो तलघर में छिपी बैठी थी बाहर चली आती है।
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