अकेली कहानी का सारांश: सोमा बुआ बहुत अकेली है। एक अकेलापन उसे बेटे की मृत्यु ने दिया है, दूसरा पति के संन्यास ने और तीसरा सामाजिक जुड़ाव से कटाव करने
अकेली कहानी का सारांश - Akeli Kahani Ka Saransh
अकेली कहानी का सारांश: सोमा बुआ बहुत अकेली है। एक अकेलापन उसे बेटे की मृत्यु ने दिया है, दूसरा पति के संन्यास ने और तीसरा सामाजिक जुड़ाव से कटाव करने वाले पति के नादिरशाही हुकुम ने। यानी उसके हिस्से में दैवी, पारिवारिक, सामाजिक- सब प्रकार का अकेलापन आया है।
अकेली कहानी का आरम्भ परिचयात्मक है कि युवा बेटे हरखू की असमय मृत्यु के बाद सोमा बुआ के पति सन्यासी बन गए और बुआ जीवन के अकेलेपन और एकरसता से निजात पाने के लिए निस्वार्थ भाव से पास-पड़ोस को अपनापन देने और पाने लगी। कोई आमंत्रित करे या न करे, बुआ अपने व्यवहार और कार्यकुशलता से अपनापन देने और पाने लगी। कोई आमंत्रित करे या न करे, बुआ अपने व्यवहार और कार्यकुशलता से आयोजनों का भट्ठी–भण्डार घर सब सम्भाल प्रशंसा, आभार और आत्मसंतुष्टि पा लिया करती है। बुआ का पति वर्ष में एक महीने के लिए आता है। पति का स्नेहहीन व्यवहार, रोक-टोक और अंकुश बुआ के जीवन की अबाध बहती धारा को कुंठित कर देते हैं। पति का नादिरशाही हुकुम है कि बिना बुलावे के बुआ किसी के घर मुंडन, छठी, शादी या गमी में नहीं जाएगी। "बुआ को अपनी जिंदगी पास-पड़ोस वालों के भरोसे ही काटनी पड़ती थी। किसी के घर मुंडन हो, जनेऊ हो, छठी हो, शादी हो या गमी- बुआ पहुँच जाती और फिर छाती फाड़ कर काम करती, मानो वह दूसरे के घर में नहीं, अपने ही घर में काम कर रही हो। " बुआ को उदास देख पड़ोसिन राधा जब कारण पूछती है तो बुआ और उदास हो जाती है। बुआ के देवर के अमीर समधियों की एक लड़की की शादी बुआ के मुहल्ले में हो रही है। बुआ को आमंत्रण की प्रतीक्षा है। वह बेटे की एकमात्र निशानी अंगूठी बेच उपहारों की थाली सजा लेती है। अपनी साड़ी को रंग, माँड लगा जाने को तैयार बैठी है। आमंत्रण के लिए गली के मोड़ पर उनकी निगाहें घंटों टिकी रहती हैं, पर आमंत्रण नहीं मिला और सन्यासी जी महाराज ने कल से आज तक कोई पच्चीस बार चेतावनी दी है कि 'यदि कोई बुलाने न आए तो चली मत जाना।" बुआ बुझे मन से सारा सामान अपने एकमात्र सन्दूक में रख देती है।
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