कलंक रेखा एकांकी का सारांश - Kalank Rekha Ekanki ka Saransh: रामकुमार वर्मा ने सिसोदीया वंश के साहस, धैर्य, और वीरता के तह में जो कायरता थी उसको कलंक
कलंक रेखा एकांकी का सारांश - Kalank Rekha Ekanki ka Saransh
राजस्थान के इतिहास के पन्नों में असंख्य अमर बलिदान की कथायें भरी पड़ी है। राजस्थान के जौहर की ज्वाला वहाँ की वीर नारियों के तेज़ के समक्ष फीकी पड़ गयी है। ऐसी वीरता का यशोगान करते हुए बहुत नाटक और एकांकियों की रचना हुई है। लेकिन इस वीरता के अन्दर छिपे हुए कलंक को देखने परखने की कोशिश विरले ही नाटककारों ने की हैं। रामकुमार वर्मा ने सिसोदीया वंश के साहस, धैर्य, और वीरता के तह में जो कायरता थी उसको कलंक रेखा एकांकी में स्पष्ट कर दिया है।
कलंक रेखा एकांकी का सारांश- उदयपुर के महाराणा भीमसिंह अपनी पुत्री कृष्णकुमारी का विवाह संबन्ध जयपुर के महाराजा जगतसिंह के साथ करने का निश्चय लेता है। लेकिन इसके विपरीत जोधपुर के महाराणा मानसिंह यह विवाह संबन्ध स्वयं से करना चाहते हैं। अमीरखां जो पहले उदयपुर नरेश का सहायक था, जो बाद में जोधपुर नरेश का मित्र बना, एक बड़ी सेना के साथ उदयपुर की सीमा पर आता है तथा भीमसिंह को यह चुनौती भेजता है कि या तो कृष्णकुमारी का विवाह मानसिंह से किया जाए नहीं तो युद्ध के लिए प्रस्तुत हो जाए।
राजा नहीं चाहते हैं कि अपने परिवार के एक व्यक्ति की रक्षा के लिए अपनी निरपराध प्रजा के सहस्रों वीरों का बलिदान कर दें। वे अपने माथे पर यह कलंक लगाना नहीं चाहते हैं कि उसने पुत्री के मोह में अपनी मातृभूमि के पवित्र मस्तक पर शत्रुओं के पैरों के चिद्दन लग जाने दिया। चूडावत अजितसिंह का सुझाव मानकर उसने अपने भाई जगत सिंह को बेटी कृष्णकुमारी की हत्या केलिए नियुक्त किया। लेकिन वह सफल न हुआ। सारी बातें जानकर कृष्णकुमारी अपने माता पिता की चिन्ता दूर करने के लिए स्वयं हलाहल पीती हैं। यों कृष्णकुमारी का जौहर विष की ज्वाला में हुआ।
कृष्णकुमारी की इस बलिदान को रामकुमार वर्मा सारे राजस्थान के लिए एक कलंकरेखा मानते हैं, जिसे उन्होंने एकांकी में शक्तावत सरदार संग्रामसिंह के शब्दों से स्पष्ट किया है। उसकी राय में राजकुमारी कृष्णा ने राजपूतों को कायरों और नपुंसकों की तरह समझा है, महाराणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री की हत्या में भी शामिल किया है। संग्रामसिंह को सबसे बड़ा दुःख इस बात में है बेचारी कृष्णा के मरने से उदयपुर हमेशा के लिए सुरक्षित भी नहीं हो गया है। एक महाराणा का अदूरदर्शी निर्णय एक अबोध बालिका की हत्या में परिणत हो गया।
एकांकीकार ने यह सिद्ध किया है देश की राजनीति की ज्वाला बहुत खतरनाक है। इस ज्वाला में असंख्य निरीह नारियों की कोमल भावनायें बुरी तरह झुलस गई है और झुलराती भी जा रही है।
व्यक्तिगत लाभ के लोभ में पड़कर समूचे देश में आग लगानेवाले अभीरखाँ और जयपुर नरेश मानसिंह जैसे लोग दरअसल देश की भलाई की कुर्बानी करते हैं। महाराणा मानसिंह का उदयपुर नरेश भीमसिंह के सहायक अमीरखाँ को घूस देकर अपनी तरफ मिला लेना उनकी स्वार्थ लिप्सा का स्पष्ट प्रमाण है।
रामकुमार वर्मा ने एकांकी में मनोवैज्ञानिक आधार पर ही घटनाओं और पात्रों को पिरोया है।
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