अलका का चरित्र चित्रण - Alka Ka Charitra Chitran: अलका चन्द्रगुप्त नाटक में महत्वपूर्ण स्त्री-पात्र है। वह प्रसाद की काल्पनिक पात्र है। अलका के चरित
अलका का चरित्र चित्रण - Alka Ka Charitra Chitran
अलका का चरित्र चित्रण- अलका चन्द्रगुप्त नाटक में महत्वपूर्ण स्त्री-पात्र है। वह प्रसाद की काल्पनिक पात्र है। अलका के चरित्र द्वारा प्रसाद जी ने अपने आदर्शों को व्यक्त किया है। वह गांधार नरेश की पुत्री है और आम्भीक की बहन है। लोभ - वश आम्भीक यवनों का स्वागत करता है। इससे देश प्रेमी अलका दुखी हो, राज्य के सुखों को त्याग कर चल पडती है। इसका कारण बताते हुये वह दाण्ड्यायन से कहती है - "ऋषे यवनों के हाथ बेचकर उनके दान से जीने की शक्ति मुझ में नहीं है।" उसकी दृष्टि में पराधीनता से बढकर और कोई विडम्बना नहीं है।
सिंहरण के प्रति आकृष्ट
प्रथम दृष्टि में ही अलका सिंहरण के गुणों पर मुग्ध होती है। वह अपने भाई से सिंहरण के बारे में बताती है - " भाई ! इस वन्य निर्झर के समान स्वच्छ और स्वच्छद हृदय में कितना वेग है।" अलका सिंहरण की निर्भीकता, देश - प्रेम, वीरता आदि गुणों से आकृष्ट हती है। वह कहती है। "जिस देश में ऐसे वीर युवक हो, उसका पतन असम्भव है। मालव वीर! तुम्हारे मनोबल में स्वतंत्रता है। तुम्हारी दृढ भुजाओं में आर्यावर्त के रक्षण की शक्ति है, तुम्हें सुरक्षित रखना चाहिये।”
देशप्रेम
यवनों के आगमन को सुगम बनाने केलिये सिंधु - तट पर सेतु का निर्माण होने लगता है। आम्भीक उसका निरीक्षण करता है। मालविका उसका मानचित्र बनाकर अलका को देती है। एक यवन सैनिक उसे उससे छीनने का प्रयत्न करता है। तब अलका उसे वहाँ आये हुये सिंहरण को दे देती है। सिंहरण उसे पर्वतेश्वर को पहुँचाता है।
अलका भाई आम्भीक के कलंक को निवृत्त करना चाहती है। परन्तु आम्भीक उसे बंदी बनाता है। वह अपने पिता से शिकायत करती है - "महाराज ! जिस उन्नति की आशा से आम्भीक ने यह नीच कर्म किया है, उसका पहला फल यह है कि आज मैं बन्दिनी हूँ, सम्भव है कल आप होंगे और परसों गांधार की जनता वेगार करेगी। उनका मुखिया होगा आपका वंश - उज्जवलकारी आम्भीक। अलका यथाशक्ति अपने भाई को देश - द्रोही बनने से रोकना चाहती है। वह स्वयं कहती है आम्भीक को मैं शक्ति - भर पतन से रोकूँगी।"
अलका में देश- प्रेम कूट कूट कर भरा हुआ है। वह सिल्युकस से कहती है- "मेरा देश है, मेरे पहाड हैं, मेरी नदियाँ है, और मेरे जंगल हैं। इस भूमि के एक - एक परमाणु मेरे हैं और मेरे शरीर के एक-एक क्षुद्र अंश भी उन्हीं परमाणुओं के बने है "
व्यवहार कुशला
अलका व्यवहार कुशल है। कानन - पथ में सिल्युकस से मुलाकात होने पर वह उसका पिंड छुड़ाने के लिये कहती है – “देखे, वह सिंह आ रहा है।" सिल्युकस उधर देखने लगता है तो वह दूसरी ओर निकल जाती है। वह सिल्यूकस को मूर्ख बनाकर निकल भागती है। इसी प्रकार वह सिंहरण को बंदी - गृह से छुडाने केलिये एक उपाय रचती है। वह पर्वतेश्वर से प्रेम का अभिनय करती है। वह पर्वतेश्वर से विवाह करने की बात करती है। परन्तु दो शर्तें लगाती है - (1) सिंहरण को अपने देश की रक्षा केलिये मुक्त किया जाय और (2) सिकंदर के भारत में रहने तक वह स्वतंत्र रहे। पर्वतेश्वर उन शर्तों को मान लेता हैं और सिंहरण को बंधनमुक्त करता है। यहाँ भी अलका की व्यवहार कुशलता प्रकट होती है।
अलका चाणक्य की आज्ञा का सदा पालन करती रहती है। वह उनकी आज्ञा के अनुसार सिंहरण के साथ नटों के वेष में जाकर पर्वतेश्वर की सेना में मिल जाती है। चाणक्य एक छद्म-पत्र मालविका को देकर उसे नंद को देने केलिए कहता है और अलका को मालविका के साथ जाने को कहता है। अलका उसकी आज्ञा का पालन करती है।
जागरण
अलका स्वतंत्रता के युद्ध में सबको समान मानती है। वह कहती है - "स्वतंत्रता के युद्ध में सैनिक और सेनापति का भेद नहीं।" उसका विचार है कि राज्य किसी का नहीं है, सुशासन का है। वह निडर है। मानचित्र को लेते समय यवन सैनिक उसे बंदी बनाने की धमकी देता है तो अलका उससे पूछती है - "पहले तुम्हें बताना होगा कि तुम यहाँ किस अधिकार से यह अत्याचार किया चाहते हो ?" वह अपने पिता से भी कहती है- " गांधार में विद्रोह मचाऊँगी " अलका लोगों में देश - प्रेम को जगाने केलिये कहती है- "वीर नागरिकों। देश पद - दलित हो रहा है और तुम विलासिता में फँस रहे हो। क्या यह मातृभूमि के प्रति तुम्हारा कर्त्तव्य है ?" उसके देश - प्रेम पर आम्भीक मुग्ध होता है। उसमें बड़ा परिवर्तन होता है। एक दिन अपनी बहन अलका की हत्या करने के लिये जो आम्भीक तैयार हुआ था, वही कहता है - "बहन, तू छोटी है, पर मेरी श्रद्धा का आधार है। मैं भूल करता था बहन। तक्षशिला के लिये अलका पर्याप्त है, आम्भीक की आवश्यकता न थी। मैं देशद्रोही हूँ, नीच हूँ। तू ने तो गाँधार के राजवंश का मुख उज्ज्यल किया है। राजासन के योग्य तू ही है।" आम्भीक का परिवर्तन अलका के चरित्र की सार्थकता है।
उपसंहार
अलका बीर वनिता है। मालव - दुर्ग की रक्षा में वह सिंहरण की सहायता करती है। यवन - सैनिक दुर्ग पर चढने का प्रयत्न करते है तो वह तीर चलाकर दो सौनिकों को मार डालती है। इतना ही नहीं, वह घायलों की सेवा में संलग्न रहती है। अन्त में अलका सिंहरण से विवाह करके देश - सेवा में लग जाती है।
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