त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर राज्यश्री का चरित्र-चित्रण कीजिए: त्यागपथी’ खण्डकाव्य में सम्राट हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री का चरित्र पाठकों के हृदय म
त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर राज्यश्री का चरित्र-चित्रण (चरित्रांकन) कीजिए।
त्यागपथी’ खण्डकाव्य में सम्राट हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री का चरित्र पाठकों के हृदय में एक अमिट छाप छोड़ता है। हर्षवर्द्धन की वीरता और साहस के समानांतर, राज्यश्री का चरित्र करुणा और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक बनकर उभरता है। उनके जीवन की घटनाएँ पाठकों को भावनात्मक रूप से झकझोरती हैं, साथ ही उनके दृढ़ संकल्प और त्याग की भावना प्रेरणा देती हैं। राज्यश्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-
संघर्षपूर्ण जीवन: राज्यश्री को जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। राज्यश्री अपने माता-पिता की लाडली बेटी हैं। वह बचपन में एक लाड़ली राजकुमारी के रूप में पलती हैं, लेकिन उन्हें कम उम्र में ही विधवा होने का दुःख सहना पड़ता है। इसके बाद, उन्हें गौड़पति द्वारा बंदी बना लिया जाता है और उनके भाई राज्यवर्द्धन की मृत्यु का समाचार मिलता है। ये घटनाएँ उन्हें गहरे सदमे में डाल देती हैं। बंदीगृह से भागने के बाद, आत्मदाह का प्रयास तक करना उनकी पीड़ा की गहराई को दर्शाता है।
हालाँकि, राजा हर्षवर्द्धन के मिलने पर उनके भीतर एक नई शक्ति का संचार होता है। वह अपने दुखों से ऊपर उठकर अपने देश और प्रजा के प्रति समर्पित हो जाती हैं। उनके इस परिवर्तन में हर्षवर्द्धन का मार्गदर्शन और राज्यश्री की लौह इच्छाशक्ति, दोनों का ही योगदान है।
देशभक्त: राज्यश्री के हृदय में देशभक्ति का ज्वाला सदैव प्रज्वलित रहता है। वैधव्य का दुख सहते हुए भी वह अपने देश की सेवा के लिए तत्पर रहती हैं। उनके लिए वैयक्तिक सुख से अधिक महत्वपूर्ण है राष्ट्र का कल्याण। यही कारण है कि वह संन्यासिनी बनने का विचार भी त्याग देती हैं और अपना जीवन प्रजा की भलाई के लिए समर्पित कर देती हैं।
करुणा की मूर्ति: राज्यश्री के जीवन में दुःखों की एक लंबी श्रृंखला है। माता-पिता, पति और बड़े भाई का खोना उन्हें गहरा आघात पहुँचाता है। ये दुखद अनुभव उनके हृदय में करुणा का भाव जगाते हैं। अपने अग्रज हर्ष से मिलते समय उनकी करुण दशा पाठकों को भी भावुक कर देती है। वह न केवल अपनी पीड़ा से जूझती हैं, बल्कि दूसरों के दुखों को भी अपना दुख मानती हैं।
त्याग की प्रतीक: राज्यश्री का जीवन त्याग की भावना से ओतप्रोत है। भाई हर्षवर्द्धन उन्हें कन्नौज का राज्य सौंपते हैं, लेकिन वह इसे स्वीकार न करके एक साधारण जीवन जीना पसंद करती हैं। राज्य के बंधनों से मुक्त रहकर वह स्वयं को जनसेवा के लिए समर्पित कर देती हैं। प्रयाग महोत्सव के दौरान भी वह अपना सर्वस्व दान कर देती हैं।
ज्ञान और संयम का समावेश: राज्यश्री न केवल दयालु और त्यागी हैं, बल्कि वह सुशिक्षित और ज्ञानी भी हैं। आचार्य दिवाकर मित्र के मार्गदर्शन में वह संसार के सार को समझती हैं और मानव कल्याण के लिए कार्य करने का संकल्प लेती हैं। राज्यश्री का चरित्र हमें यह बताता है कि कठिन परिस्थितियों में भी ज्ञान और संयम से मार्गदर्शन प्राप्त कर हम एक सार्थक जीवन जी सकते हैं।
अनुकरणीय आदर्श: राज्यश्री का चरित्र भारतीय नारीत्व का एक आदर्श प्रस्तुत करता है। उनमें निष्ठा, त्याग, देशभक्ति और करुणा जैसे गुण विद्यमान हैं। उनके जीवन की कहानी पाठकों को प्रेरणा देती है कि कठिन परिस्थितियों में भी आशा बनाए रखें, कर्तव्यनिष्ठ रहें, और दूसरों की भलाई के लिए कार्य करें।
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