पंडित परमसुख का चरित्र चित्रण- भवगतीचरण वर्मा की कहानी 'प्रायश्चित' से पंडित परमसुख का चरित्र उस पंडित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। जो कम पढ़ा-लिखा ह
पंडित परमसुख का चरित्र चित्रण - Pandit Paramsukh ka Charitra Chitran
पंडित परमसुख का चरित्र चित्रण- भगवतीचरण वर्मा की कहानी 'प्रायश्चित' में पंडित परमसुख का चरित्र उस पंडित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जो कम पढ़ा-लिखा है, जनता में धर्म के नाम पर मिथ्याडम्बर रच कर भ्रम उत्पन्न करता है, तथा अपनी रोजी-रोटी का साधन बनाने में सफल रहता है। पंडित परमसुख लालची वृत्ति का व्यक्ति है। पंडित को सदैव किसी ऐसे न्योते का इन्तज़ार रहता है, जहां जाकर वह किसी पूजा का विधान बताए और खूब पैसा व दान-दक्षिणा पा सके। जब पंडित को लाला घासीराम के घर से बुलावा आया, तो पूजा अधूरी छोड़ कर उठ खड़ा हुआ और पंडिताइन से मुस्कराते हुए कहा — "भोजन न बनाना। लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली, प्रायश्चित होगा। पकवानों पर हाथ लगेगा।"
भगवतीचरण वर्मा ने पंडित के व्यक्तित्व का परिचय इन शब्दों में दिया है — “पंडित परमसुख चौबे छोटे से, मोटे से आदमी थे। लम्बाई चार फुट दस इंच और तोंद का घेरा अट्ठावन इंच। चेहरा गोल-मटोल, मूंछें बड़ी-बड़ी, रंग गोरा, चोटी कमर तक पहुँचती हुई। कहा जाता है कि मथुरा में पंसेरी खुराक वाले पंडितों को ढूंढा जाता था, तो पंडित परमसुख को इस लिस्ट में प्रथम स्थान दिया जाता था।”
पंडित परमसुख स्वार्थी व्यक्ति है। वह स्वयं आडम्बरों में विश्वास करता है तथा भोली-भाली ग्रामीण जनता में मिथ्याडम्बरों का प्रचलन बड़ी कार्यकुशलता से करता है। बिल्ली की हत्या हुई है, यह जानकर पंडित को अत्यन्त प्रसन्नता हुई। पंडित को लाला घासीराम के खाते-पीते घर में प्रायश्चित करवाने से रुपया-पैसा, अनाज जैसी वस्तुएं व सोने की बिल्ली प्राप्त होने की संभावना थी। पंडित अनपढ़ व अज्ञानी है — इस पर लेखक का व्यंग्य सटीक है — “पंडित परमसुख ने पन्ने के पन्ने उल्टे, अक्षरों पर उंगलियाँ चलाईं।” पंडित ने बड़ी चतुराई से उपस्थित लोगों से बिल्ली की हत्या के समय की जानकारी लेकर कुम्भीपाक नरक को विधान बताया तथा रामू की माँ को आश्वासन दिलाया कि वे स्वयं शास्त्रानुसार प्रायश्चित करवाएँगे और उनके घर को शुद्ध कर देंगे — “रामू की माँ, चिंता की कौन सी बात है, हम पुरोहित फिर कौन दिन के लिए हैं। शास्त्रों में प्रायश्चित का विधान है, सो प्रायश्चित से सब ठीक हो जाएगा।”
लालची व ढोंगी स्वभाव वाले पंडित सुखराम पहले समय और स्थिति को परखते हैं, और बाद में ग्रामीण जनता को भ्रम में डाल देते हैं — और भोली-भाली जनता इनके रचाए गए भ्रमजाल से उभर नहीं पाती। पंडित परमसुख ने पहले तो बिल्ली के वजन की बिल्ली बनवाने के लिए रामू की माँ को परामर्श दिया, और जब रामू की माँ की ओर से सहमति न मिली, तो तोल-मोल करने लगे। अंततः ग्यारह तोले की बिल्ली पर सहमति हो गई। पंडित ने पूजा के सामान की एक लंबी सी लिस्ट दी — “यह सामान उसके घर भिजवा दो,” जिसे देखकर रामू की माँ सकते में आ गई। पंडित रामू की माँ को तर्क देते हैं — “खर्च को देखते वक्त पहले बहू के पाप को तो देख लो। यह तो प्रायश्चित है, कोई हंसी-खेल थोड़े ही है। और जैसी जिसकी मरजादा, प्रायश्चित में उसे वैसा खर्च करना पड़ता है। आप लोग कोई ऐसे-वैसे थोड़े ही हैं। और सौ-डेढ़ सौ रुपया आप लोगों के हाथ की मैल है।”
अंधविश्वासी जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली रामू की माँ पंडित के बनाए भ्रमजाल में उलझ ही जाती है। और अवसरवादी पंडित उसे सुझाव देता है कि बिल्ली की प्रायश्चित संबंधी पूजा वह स्वयं करेगा, दान-दक्षिणा लेगा तथा पाँच ब्राह्मणों का भोजन भी स्वयं ही करेगा। “इक्कीस दिन के पाठ के इक्कीस रुपए और इक्कीस दिन तक दोनों वक्त पाँच-पाँच ब्राह्मणों को भोजन करवाना पड़ेगा।” कुछ रुक कर पंडित परमसुख ने कहा — “सो इसकी चिन्ता न करो, मैं अकेले दोनों समय भोजन कर लूंगा और मेरे अकेले भोजन करने से पाँच ब्राह्मण के भोजन का फल मिल जाएगा।”
पंडित के निर्देशानुसार प्रायश्चित का प्रबन्ध होने लगा और पंडित जी खुश हो गए। तभी महरी ने आकर सूचना दी — “माँ जी, बिल्ली तो उठकर भाग गई।” इससे पंडित परमसुख की सारी योजनाएं बेकार हो गईं।
लेखक भगवतीचरण वर्मा ने पंडित जैसे ढोंगी, अन्धविश्वासी, रूढ़िवादी, लालची, स्वार्थी व अवसरवादी व्यक्तित्व द्वारा स्पष्ट किया है कि जब तक समाज में ऐसे लोग रहेंगे, अपनी अज्ञानता व मतान्धता से जनता को भ्रम में उलझाए रखेंगे। जनता को पंडितों के शोषण से बचने के लिए स्वयं ही व्यावहारिक प्रक्रिया ढूंढ़नी होगी।
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