मधुर-मधुर मेरे दीपक जल कविता
मधुर मधुर मेरे दीपक जल
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तनय
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल !
पुलक- पुलक मेरे दीपक जल!
सारे शीतल कोमल नूतन,
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण
विश्व – शलभ सिर धुन कहता मैं
हाय, न जल पाया तुझमें मिल' !
सिहर सिहर मेरे दीपक जल!
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपकय
जलमय सागर का उर जलताय
विद्युत ले घिरता है बादल !
विहँस - विहँस मेरे दीपक जल!
द्रुम के अंग हरित कोमलतमय
ज्वाला को करते हृदयंगमय
वसुधा के जड़ अन्तर में भी
बन्दी है तापों की हलचल !
बिखर - बिखर मेरे दीपक जल!
मेरे निश्वासों से द्रुततर,
सुभग न तू बुझने का भय कर ।
मैं अंचल की ओट किये हूँ
अपनी मृदु पलकों से चंचल !
सहज-सहज मेरे दीपक जल!
सीमा ही लघुता का बन्धन,
है अनादि तू मत घड़ियाँ गिनय
मैं दृग के अक्षय कोषों से -
तुझमें भरती हूँ आँसू-जल !
सहज-सहज मेरे दीपक जल!
तम असीम तेरा प्रकाश चिर,
खेलेंगे नव खेल निरन्तरय
तम के अणु - अणु में विद्युत-सा -
अमिट चित्र अंकित करता चल
सरल - सरल मेरे दीपक जल!
तू जल-जल जितना होता क्षय,
यह समीप आता छलनामयय
मधुर मिलन में मिट जाना तू
उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल !
मंदिर-मंदिर मेरे दीपक जल!
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
मधुर मधुर मेरे दीपक जल शीर्षक कविता महादेवी वर्मा के काव्य-संग्रह 'नीरजा' (1935) में संगृहीत है. महादेवी वर्मा की ज्यादातर कविताओं को गीत की कोटि में रखा जाता है । इस कविता / गीत में महादेवी वर्मा ने दीपक को साधक के प्रतीक के रूप में चित्रित किया है. उनकी कई कविताओं में दीपक को साधक के रूप में प्रतीक बनाया गया है।