Chini Feriwala Summary in Hindi: इस लेख में हम महादेवी वर्मा द्वारा रचित रेखाचित्र चीनी फेरीवाला का सारांश का वर्णन किया है। पढ़कर पाठक चीनी फेरीवाला
Chini Feriwala Summary in Hindi: इस लेख में हम महादेवी वर्मा द्वारा रचित रेखाचित्र चीनी फेरीवाला का सारांश का वर्णन किया है। जिसे पढ़कर पाठक चीनी फेरीवाला रेखाचित्र की Summary जान पाएंगे।
चीनी फेरीवाला का सारांश - Chini Feriwala Summary in Hindi
चीनी फेरीवाला का सारांश - लेखिका महादेवी वर्मा ने चीनी फेरीवाला नामक रेखाचित्र के माध्यम से एक ऐसे बच्चे के रूप रंग, नाक-नक्शा व वेषभूषा का आदि का उल्लेख करती है, जो अपनी अजीविका के लिए विषम परिस्थितियों से जूझते हुए घर-घर जाकर अपने सामने को बेचता है। वह लेखिका के द्वार पर पहुँचकर मइया, माता, जीजी, दिदिया, बिटिया आदि ऐसे संबोधनों का प्रयोग करता है जो लेखिका को प्रिय हैं। इन्हीं से प्रभावित होकर लेखिका उसे अपने द्वार से वापस नहीं जाने देती है। पहले तो लेखिका विदेशी वस्तुओं को देखकर विचलित हो जाती है किंतु बच्चे का यह जवाब कि हम क्या फारन हैं? हम तो चायना से आता है। जो लेखिका को अपने पड़ोसी होने का बोध करा देता है। इससे भावुक होकर जब लेखिका उससे भाई का संबंध जोड़ देती है। तभी लेखिका को याद आता है कि बचपन में उसे उसकी छोटी आँखों के कारण चीनी कहकर पुकारा जाता था। इसके बाद स्थितियाँ एक नई करवट ले लेती हैं। अब लेखिका न चाहते हुए भी एक मेजपोश खरीद लेती है।
इसके पश्चात यह सिलसिला लगातार चल निकलता है। अगले दिन वह लेखिका के लिए ऊदी रंग के डोरे भरे रूमाल को लेखिका के सामने रख देता है। इनमें भर फूलों से लेखिका चीनी नारी की कोमल उँगलियों की कलात्मकता तथा उनके जीवन के अभाव की करुण कहानी को महसूस करती है।
इस फेरीवाले की कहानी भी बड़ी ही मर्म स्पर्शी है। जिसे सुनाने के लिए वह बड़ा ही व्याकुल रहता है। इस वक्त उसे इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं रहती कि उसकी भाषा को कोई समझ पा रहा है या नहीं। वह बतता है कि उसकी माँ उसके जन्म लेते ही इसका सारा बोझ इसकी सात साल की बहन पर छोड़कर चली गई। पिता ने दूसरी शादी कर ली। इसी के साथ इन मातृहीनों की करुण कहनी आरंभ होती होती है। अभी वह पाँच साल का ही हुआ था कि एक दुर्घटना में उसके पिता भी इस संसार से चल बसे।
इसके पश्चात वह देखता है कि उसकी किशोर बहन के समक्ष विमाता द्वारा रखे गए प्रस्ताव को लेकर जब वैमनस्य बढ़ता था तो इसका बदला उससे न लेकर उसके अबोध भाई को कष्ट देकर चुकाया जाता था। उसकी बहन आस-पड़ोस से माँग- माँगकर अपना व अपने भाई पेट भरने लगी। एक रात वह देखता है कि उसकी विमाता बहन की मैली कुचैली देह का काया पलट करने में लगी हुई है। तत्पश्चात उसे लेकर अंधकार में खो जाती है। और जब प्रातः आँख खुली तो बहन गठरी की तरह भाई के मस्तक पर मुख रखकर सिसकियाँ रोक रही थी। उस दिन से उसे अच्छा भोजन, कपड़े व खिलौने मिलने लगे।
बहन का संध्या होते ही कायापालट, फिर उसका आधी रात को भारी पैरों लौटना तत्पश्चात विशाल शरीर वाली विमाता का जंगली बिल्ली की तरह बिछौने से उछलकर उसके हाथों से बटुवा छीन लेना आदि क्रम चलने लगा। एक रात जब बहन घर नहीं लौटी तो वह बहन की खोज में घर से निकल पड़ता है। जगह-जगह खोजने के बावजूद उसे बहन तो नहीं मिली किन्तु स्वयं वह गिरहकटों ( जेबकतरों ) के गिरोह के हाथ लग गया। यहाँ इसे जेबकतरने के सभी गुण सीखाए गए। इस दल में बर्मी, चीनी और स्यामी आदि सभी शामिल थे। जब वह यहाँ से दी गई शिक्षा को व्यवहार में लाने के लिए घर से बाहर निकलता है तो उसकी भेट उसके पिता से परिचित एक व्यापारी से हो जाती है। इस संयोग ने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी। अब वह कपड़े की दुकान पर व्यापार से संबंधित गुणों को सीखने लगा। इस कला में वह इस प्रकार दक्ष हुआ जिसकी कल्पना कर पाना भी मुश्किल है। आज वह इस छोटी सी उम्र में ही समझ गया है कि धन संचय से संबंध रखने वाली सभी विद्याएँ एक-सी हैं। कोई इसका संचय प्रतिष्ठापूर्वक कर रहा है तो कोई छिपकर।
इसी बीच चीनी फेरीवाला मालिक के काम से रंगून आ जाता है। दो वर्ष तक कलकत्ता में रहकर अन्य साथियों के संकेत पर उसे इस ओर आने का आदेश मिला। अब वह इसी क्षेत्र में कपड़े के व्यापार को बढ़ा रहा है। वह अपनी दो इच्छाओं को लेकर जीवन जी रहा है जिसमें ईमानदार बने रहना और बहन को ढूँढ निकालना शामिल है। इसमें एक की पूर्ति वह स्वयं करता है और दूसरी के लिए भगवान बुध्द से प्रार्थना करता है।
एक दिन वह लेखिका से कहता है कि वह लड़ने के लिए चाइना जाएगा। वहाँ से बुलावा आया है। जब लेखिका ने उससे पूछा कि तुमने कहा था वहाँ तो तुम्हारा कोई नहीं है फिर बुलावा किसने भेजा तब वह बड़ी सहजता से कहता है कि हम कब बोला हमारा चाइना नहीं है ? यह सुन लेखिका स्वयं के प्रश्न पर ही लज्जित हो जाती है और उसके जाने के लिए कुछ पैसों का प्रबंध कर उसे दे देती है। चीनी फेरीवाला खुशी के मारे अपना कपड़ों से भरा गज वहीं छोड़कर चला जाता है।
इस प्रकार लेखिका ने उसके बहन को कभी नहीं देखा था किंतु चीनी फेरीवाले व उसकी बहन के चित्र लेखिका के स्मृति पटल से विस्मृत होने का नाम ही नहीं लेते हैं। इसीलिए चीनी फेरीवाले के गज व कपड़ो को लेखिका ने उसकी निशानी के रूप में अपने घर पर सहेजकर रखा हुआ है।
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