चीनी फेरीवाला कहानी पर टिप्पणी : चीनी फेरीवाला नामक रेखाचित्र के माध्यम से लेखिका एक ऐसे बच्चे के रूप रंग, नाक-नक्शा व वेषभूषा आदि का उल्लेख करती है,
चीनी फेरीवाला कहानी पर टिप्पणी लिखिए
चीनी फेरीवाला कहानी पर टिप्पणी : चीनी फेरीवाला नामक रेखाचित्र के माध्यम से लेखिका एक ऐसे बच्चे के रूप रंग, नाक-नक्शा व वेषभूषा आदि का उल्लेख करती है, जो अपनी अजिविका के लिए विषम परिस्थितियों से जूझते हुए घर-घर जाकर अपने सामान को बेचता है। वह लेखिका के द्वार पर पहुँचकर मइया, माता, जीजी, दिदिया, बिटिया आदि ऐसे संबोधनों से का प्रयोग करता हैं जो लेखिका को प्रिय हैं। इन्हीं से प्रभावित होकर लेखिका उसे अपने द्वार से वापस नहीं जाने देती है। पहले तो लेखिका विदेशी वस्तुओं को देखकर विचलित हो जाती है किंतु बच्चे का यह जवाब कि हम क्या फारन हैं ? हम तो चइना से आता है।
चीनी धूल से मटमैले सफेद किरमिच के जूते में छोटे पैर छिपाए रहता था। उसके पतलून व पाजामे का सम्मिश्रित परिणाम जैसा पजामा और कुर्ता पहना होता था। उसके पास कोट की एकता के आधार पर सिला कोट रहता था । उसकी हैट उधड़े हुए किनारों से पुरानेपन की घोषणा करते हुए उसके आधे माथे को ढकी रहती थी। उसकी देह दाड़ी मूछ विहीन दुबली नाटी थी।
जब वह अपने सामान को बेचता है तब उसे इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं रहती कि उसकी भाषा को कोई समझ पा रहा है या नहीं। वह बताता है कि उसकी माँ उसके जन्म लेते ही उसका सारा बोझ उसकी सात साल की बहन पर छोड़कर चली गई। पिता ने दूसरी शादी कर ली। इसी के साथ इन मातृहीनों की करुण कहानी आरंभ होती है। अभी वह पाँच साल का ही हुआ था कि एक दुर्घटना में उसके पिता भी इस संसार से चल बसे।
इसके पश्चात वह देखता है कि उसकी किशोर बहन के समक्ष विमाता द्वारा रखे गए प्रस्ताव को लेकर जब वैमनस्य बढ़ता था तो इसका बदला उससे न लेकर उससे अबोध भाई को कष्ट देकर चुकाया जाता था। उसकी बहन आस-पड़ोस से माँग-माँगकर अपना व अपने भाई पेट भरने लगी। एक रात वह देखता है कि उसकी विमाता बहन की मैली कुचैली देह का काया पलट करने में लगी हुई है। तत्पश्चात उसे लेकर अंधकार में खो जाती है। और जब प्रातः आँख खुली तो बहन गठरी की तरह भाई के मस्तक पर मुख रखकर सिसकियाँ रोक रही थी। उस दिन से उसे अच्छा भोजन, कपड़े व खिलौने मिलने लगे।
अब वह कपड़े की दुकान पर व्यापार से संबंधित गुणों को सीखने लगा। इस कला में वह इस प्रकार दक्ष हुआ कि जिसकी कल्पना कर पाना भी मुश्किल है। आज वह इस छोटी सी उम्र में ही समझ गया है कि धन संचय से संबंध रखने वाली सभी विद्याएँ एक सी हैं। कोई उसका संचय प्रतिष्ठापूर्वक कर रहा है तो कोई छिपकर।
अब वह इसी क्षेत्र में कपड़े के व्यापार को बढ़ाता है। वह अपनी दो इच्छाओं को लेकर जीवन जी रहा है जिसमें ईमानदार बने रहना और बहन को ढूँढ निकालना शामिल है। इसमें एक की पूर्ति वह स्वयं करता है और दूसरी के लिए भगवान बुध्द से प्रार्थना कराता है।
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