रानी अवंती बाई पर कविता - Rani Avanti Bai Par Kavita
अवंतीबाई लोधी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और मध्य प्रदेश में रामगढ़ (वर्तमान डिंडोरी) की रानी थीं। इस लेख में रानी अवंति बाई पर कविता लिखी गयी है जिसे पढ़कर पाठकों को रानी अवंति बाई के शौर्य और पराक्रम का पता चलेगा।
रानी अवंती बाई पर कविता
दोहराता हूं आज पुनः , कुछ वीरो के उन किस्सों को !
जिन्हें उकेरा नहीं गया , उन इतिहासों के हिस्सों को !!
ये गाथा है एक रानी की, उसके आज़ादी के सपने की ,
और उसकी क़ुर्बानी की ! !
ग्राम मन-खेड़ी, जिला सेवनी , राजा जुझार सिंह की बेटी थी !
नाम अबंती बाई जिसका , बेटों से बढ़ कर बेटी थी !!
विवाह हुआ रामगढ के राजा लक्ष्मण सिंह के बेटे थे !
समय रहा सन ५७ का दुश्मन घाट लगाये बैठे थे !!
यूं समय जरा ही बीत सका, फिर सन्नाटा सा छाया था !
रिक्त हुए सिंहासन पर , शत्रु गिद्धों सा मढ़राया था !!
डलहौजी ने हड़प नीति से, फिर अपनी जात दिखा डाली !
रानी ने भी शेख मोहम्मद और अब्दुल्ला को बाहर की राह दिखा डाली !!
रानी के इस निर्णय से, दुश्मन के मनसूबे टूट गये !
एक नारी के साहस से , गोरों के छक्के छुट गये !!
शंखनाद हो चूका , अब संग्राम समर में जाना था !
रामगढ़ की सेना को अभी और सेन्य बल पाना था !!
रखा सम्मेलन , राजो – परगनादारों को बुलवाया था !
दो चूड़ियां पत्र में रख कर संदेसा भिजबाया था !!
लिखा पत्र में पहनो चूड़ी या युद्ध करो !
कसम तुम्हें मातृ-भूमि की कुछ तो अंतर मन को शुद्ध करो !!
चले हजारो साथ में सैनिक , बजे नगाड़े ,भगवा ध्वज नभ को चूम रहे !
सजा रण स्वतंत्र भारत के स्वप्न का , हर हाथ में भाले झूम रहे !!
हर हर महादेव के जयकारों से, गूंज उठा रण चहुं-ओर !
टूट पड़ी वह शत्रु पे सिंह सी , छाई बन कर मृत्यु घटा घनघोर !!
वह करती नर संघार जैसे मां काली काट रही हो शीश रक्तबीज के !
क्या ही पैदल, क्या ही घोड़े, जैसे रानी करती हो
अभिषेक मात्रभूमि का शत्रु का रक्त सींच के !!
हिला दिए दुश्मन के चूल्हे, गोरों के दिल में एक डर जग गया !
डलहौजी के होश उड़ गये , वाडिंग्टन सिवनी भाग गया !!
पर बन अंधकार सा फिर लौटा, शत्रु लेकर सैन्य अपार !
चला, तोप और बंदूके ले, करता जाता वार पे वार !!
जर्जर कर दिवार किले की , गिरी तोप के गोलों से !
पर अभिमान कहा मरने वाला था इन ठन्डे आग के शोलों से!!
जब तक प्राणों में स्वांस रही, वह चली समर में आंधी सी !
नहा रक्त में लाल हुई, तलवार वह जो चमक रही थी चांदी सी!!
घेरा दुश्मन ने रानी को , आत्मासमर्पण चाहता था !
एक आंधी को जंजीरों के वश में करना चाहता था !!
भोंक ली तलवार सीने में , रानी वीरगति को प्राप्त हुई !
छोड़ देह ,वह आत्मा भारत के ह्रदय में व्याप्त हुई !!...
लेखक- Narendra Lodhi
Rani Avanti Bai Par Kavita
धन्न भूम भई मनकेड़ी की, जितै अवतरीं रानी,
जुगन-जुगन नौ जाहर हो गई उनकी अमर कहानी;
बड़े प्रेम सैं चबा चुकी तीं, देस-प्रेम कौ बीरा,
जियत-जियत नौ ई धरनी की, दूर करत रई पीरा।
नगर मण्डला के बीरन में ऐसे भाव भरे ते,
प्रान हाँत पै धर गोरन सैं, अपनें आप लरे ते,
थर-थर प्रान कँपे गोरन के, ई रानी के मारैं,
डार-डार हँतयार भगे ते, सुन-सुन कै ललकारैं।
हल-हल गऔ रानी के मारें, बाडिंगटन कौ आसन,
सोस-सोस रै गए ते दुसमन, अब का करबैं सासन।
ऐसौ परो खदेरौ उनपै, प्रान बचाकैं भागे,
कजन बचे रए रानी जू सैं, भाग सबई के जागे।
सुन-सुन कै दुक गए ते दुसमन, ऊ घुरवा कौ टापैं,
लाल-लाल मों देख जुद्ध में, जिऊ अरियन के काँपैं।
एक हाँत पाछैं रइँ उनसै, झाँसीवारी रानी,
ई धरनी कौ कन-कन कै रओ, उनकी सुजस कहानी।
राज रामगढ़ की रानी की, है काँ किलौ पुरानौ?
अपुन इए अब आजादी की, निउँ कौ पथरा मानौ।
अमर बीरता के साके की, दै रओ किलौ गबाई,
जी के भीतर देस-भक्ति की, जगमग जोत जगाई।
ऐसी अमर बीर रानी खौं, भूले काय कुजानें,
जस की डोर दौर कै भइया, अपनी तरपै तानें।
स्वार्थ भाव के इँदयारे में, नीत-न्याय खौं भूले,
उल्टी-सूदी बातें गड़कै, ऊसई फिर रए फले।
देस-प्रेम की मीठौ अमरत, अपनें मन में घोलो,
बीर अवंतीबाई जू की, एक साथ जय बोलो।
महातीर्थ सी कर्म भूमि के, दरसन करबे जइयौ,
भक्तिभाव सैं चिर समाधि पै, श्रद्धा-सुमन चढ़इयौ।