चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता का सारांश : पंचवटी में रात्रि सौंदर्य अपने चरम पर है। सुंदर चंद्रमा की किरणें जल और थल सब जगह खेलती हुई प्रतीत होती हैं। चंद्रमा का प्रकाश धरती और आकाश पर ऐसे पैâला हुआ है, जैसे धरती पर धुली हुई चादर बिछा दी हो। पृथ्वी हरी-हरी घास की नोंकों को हिलाकर अपना हर्ष और उल्लास प्रकट कर रही है और वृक्ष मंद-मंद वायु के झोंकों से हिलकर उनकी प्रसन्नता को प्रकट कर रहे हैं। पंचवटी की छाया में सुंदर पत्तों की कुटिया बनी हुई है। जिसके सामने साफ पत्थर शिला पर धनुष धारण किए कोई वीर तथा निडर व्यक्ति बैठा है। जब सारा संसार रात्रि के कारण सो रहा है, तब यह जाग रहा है, जो तपस्वियों का वेश धारण किए इतना सुंदर लगता है, मानो सांसारिक सुखों में लिप्त रहने वाला योगी का रूप धारण करके बैठा हो।
चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता का सारांश
पंचवटी में रात्रि सौंदर्य अपने चरम पर है। सुंदर चंद्रमा की किरणें जल और थल सब जगह खेलती हुई प्रतीत होती हैं। चंद्रमा का प्रकाश धरती और आकाश पर ऐसे पैâला हुआ है, जैसे धरती पर धुली हुई चादर बिछा दी हो। पृथ्वी हरी-हरी घास की नोंकों को हिलाकर अपना हर्ष और उल्लास प्रकट कर रही है और वृक्ष मंद-मंद वायु के झोंकों से हिलकर उनकी प्रसन्नता को प्रकट कर रहे हैं। पंचवटी की छाया में सुंदर पत्तों की कुटिया बनी हुई है। जिसके सामने साफ पत्थर शिला पर धनुष धारण किए कोई वीर तथा निडर व्यक्ति बैठा है। जब सारा संसार रात्रि के कारण सो रहा है, तब यह जाग रहा है, जो तपस्वियों का वेश धारण किए इतना सुंदर लगता है, मानो सांसारिक सुखों में लिप्त रहने वाला योगी का रूप धारण करके बैठा हो। इस वीर ने ऐसा कौन-सा व्रत ग्रहण किया हुआ है, जिसके कारण इसने अपनी का त्याग किया हुआ है?
यह व्यक्ति जो वैराग्य धारण किए बैठा है, यह तो राजभवन के सुखों को पाने के योग्य है। मेरे मन में बार-बार यह प्रश्न उठ रहा है कि जिस कुटी की रक्षा में इस तपस्वी ने अपना तन, मन और जीवन अर्पण किया हुआ है, उसमें जाने ऐसा कौन-सा धन है। पंचवटी में तीन लोकों की महारानी सती सीता अपने पति श्रीराम संग निवास करती है और वह (लक्ष्मण) इस निर्जन प्रदेश में उनकी रक्षा के लिए बैठे हैं। सती सीता रघुवंश की मर्यादा हैं। इसलिए इस कुटी का वीर होना चाहिए। पंचवटी में रात्रि सन्नाटे से भरी है और चाँदनी दूर तक पैâली है, यहाँ कोई शब्द नहीं हो रहा है। नियति रूपी नर्तकी के समस्त कार्य चल रहे हैंै। राम लक्ष्मण और सीता के वनवास के तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, पर ऐसा है जैसे कल की ही बात हो, जब वे वनवास को आए थे परंतु अब वनवास की अवधि पूर्ण होने को है। लक्ष्मण विचार करते हैं कि राजा बनने के बाद राज्य-भार के कारण राम इतने व्यस्त हो जाएँगे कि वे हमें भूल जाएँगे। ऐसा करना उनकी विवशता ही होगी, किंतु इससे हमें दु:ख नहीं होगा क्योंकि इससे जनता का कल्याण होगा। परंतु क्या यह संसार अपना व दूसरों का कल्याण स्वयं नहीं कर सकता। यदि ये लोग अपना और संसार का हित कर सकते तो संसार कितना सुखद और मधुर होता।
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