ब्रिटेन की संवैधानिक प्रणाली बताइए - Britain Ki Samvaidhanik Pranali Bataiye

ब्रिटेन की संवैधानिक प्रणाली बताइए : इस लेख में ब्रिटेन की संवैधानिक प्रणाली को समझाया गया है और ब्रिटिश संविधान की विशेषता बताई गयी है।

ब्रिटेन की संवैधानिक प्रणाली बताइए : इस लेख में ब्रिटेन की संवैधानिक प्रणाली को समझाया गया है और ब्रिटिश संविधान की विशेषता बताई गयी है। 

    ब्रिटेन की संवैधानिक प्रणाली / Britain Ki Samvaidhanik Pranali

    "ब्रिटेन का संविधान बड़ी-बड़ी संवैधानिक घटनाओं, कानूनों, न्यायिक निर्णयों, साधारण कानून (कामन लॉ) और रूढ़ियों (प्रथाओं) में पाया जाता है।" ब्रिटेन का संविधान उन सभी कानूनों एवं सिद्धान्तों के समुच्चय को कहते हैं जिसके अन्तर्गत यूनाइटेड किंगडम का शासन चलता है। और 

    ब्रिटिश संविधान क्रमिक विकास का प्रतिफल है। इनकी जड़ें सदियों से पुराने इतिहास से जुड़ी हुई हैं। जैसा कि वुडरो विल्सन का विचार है-"इंगलैण्ड के संवैधानिक इतिहास की यह विशेषता है कि राजनीतिक संगठनों का निरन्तर विकास हुआ है और उसकी निरन्तरता प्राचीन काल से ही, अब तक अविच्छिन्न बनी रही है।"

    वस्तुतः इंगलैण्ड का सांविधानिक इतिहास पाँचवीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है। 450 से 600 ई० तक के काल में ऐंग्लो-सेक्सन जाति के बीच संघर्ष ने, अंग्रेजी संविधान की नींव डाली। उस काल के बाद इंगलैण्ड में राजतंत्र का विकास हुआ। अंग्रेजी संविधान के विकास का प्रतिफल यह है कि, इसने संसदीय लोकतंत्र व्यवस्था को जन्म दिया। वहाँ शासन की शक्तियाँ जनता के प्रतिनिधियों के हाथों निहित हैं। वहाँ के नागरिकों को स्वतंत्रता और समानता प्राप्त है।

    ब्रिटिश संविधान की विशेषताएं / British Samvidhan Ki Visheshta

    1. विकसित तथा विकासशील संविधान
    2. ब्रिटिश संविधान संयोग और विवेक का परिणाम है
    3. ब्रिटिश संविधान में सिद्धान्त और व्यवहार में बहुत अंतर है 
    4. लोकतंत्र की प्रधानता
    5. अलिखित संविधान
    6. पैतृक तथा सीमित राजतंत्र 
    7. अभिसमयों
    8. संसद की सर्वोच्चता अथवा प्रभुसत्ता 
    9. एकात्मक शासन प्रणाली 
    10. सुपरिवर्तनशील या लचीला संविधान
    11. विधि का शासन 
    12. कैबिनेट प्रणाली या मंत्रिमण्डलीय प्रणाली 
    13. संसदात्मक लोकतंत्र 
    14. न्यायपालिका और प्रशासनिक सेवा के कार्य में कार्यपालिका या विधायिका का हस्तक्षेप नहीं,
    15. धर्मनिरपेक्ष संविधान नहीं 
    16. मिश्रित संविधान अर्थात् राजतंत्र, कुलीन तंत्र तथा लोकतंत्र का समन्वय,
    17. मौलिक अधिकारों की संविधान में कोई सूची न होते हुए भी मौलिक अधिकारों का अस्तित्व,
    18. द्विदलीय पद्धति 

    1. विकसित तथा विकासशील संविधान (Evolved and Evolving Constitution) : ब्रिटेन का संविधान कभी भी किसी संविधान सभा द्वारा नहीं बनाया गया, बल्कि इसका विकास निरन्तर हुआ है। जैसा कि मुनरो का कथन है-"ब्रिटिश संविधान कोई पूर्णता प्राप्त वस्तु न होकर एक विकासशील वस्तु है। यह बुद्धिमत्ता और संयोग की संतान है जिसका मार्गदर्शन कहीं आकस्मिकता ने और कहीं उच्च कोटि के योजनाओं ने किया है।" वस्तुतः ब्रिटेन का संवैधानिक इतिहास शासन व्यवस्था के स्वेच्छाचारी राजतंत्र में परिवर्तित होने की कहानी है। वह परिवर्तन किसी निश्चित एक वैधानिक पत्र द्वारा न किया जाकर शनैः-शनैः ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुसार अनेक साधनों द्वारा किया गया है, जिसमें पार्लियामेंट के कानून, राजा द्वारा प्रदत्त आज्ञापत्र (charters) एवं घोषणापत्र, न्यायालयों के निर्णय, रीति-रिवाज एवं प्रथा-परम्परायें आदि प्रमुख हैं। यही कारण है कि ब्रिटेन का संविधान निरन्तर विकासशील परन्तुशृंखलाबद्ध है।

    2. ब्रिटिश संविधान संयोग और विवेक का परिणाम है (British Constitution is the child of wisdom and chance) : ब्रिटेन के संविधान का निर्माण कभी भी इस प्रकार नहीं हुआ, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत का हुआ है। ब्रिटेन के इतिहास में संविधान निर्माण करने के लिए कभी भी संविधान सभा नहीं बैठी, अपितु कभी इसका विकास संयोगवश हुआ और कभी इसमें ऐसे अधिकार पत्र तथा संसदीय अधिनियम जोड़े गये, जो कि विवेकशीलता के परिणाम हैं। लिटेनस्टेची के शब्दों में, "ब्रिटिश संविधान संयोग और विवेक का शिशु है।"

    इसमें संदेह नहीं कि ग्रेट ब्रिटेन में बहुत सी संस्थाएँ संयोग का ही परिणाम हैं। उदाहरणार्थ, 1295 में एडवर्ड प्रथम ने स्काटलैण्ड से युद्ध के कारण (धन की नितान्त आवश्यकता थी) बैठक बुलाई। पादरी, सामन्त और नगर के प्रतिनिधियों की उपस्थिति के कारण तीन सदनों की प्रथा की उत्पत्ति की सम्भावना थी, परन्तु संयोगवश दो सदनों (लार्ड सदन और कॉमन सदन) का विकास हुआ।

    इसी तरह, प्रथम मन्त्रि 'वाल्पोल' को मंत्रिमण्डल की बैठक की अध्यक्षता करने और मंत्रिमण्डल के निर्णयों से सम्राट को अवगत कराने के कारण प्रधानमंत्री पद का संयोगवश ही निर्माण हुआ।

    3. ब्रिटिश संविधान में सिद्धान्त और व्यवहार में बहुत अंतर है (Difference between principle and practice) : ब्रिटिश संविधान के बारे में प्रायः यह कहा जाता है कि, वह संवैधानिक सिद्धान्त के अनुकूल न होकर उससे बहुत भिन्न (व्यवहार में) है। इसका प्रमुख कारण ब्रिटिश संविधान का संगठित रूप में न पाया जाना है। इंगलैण्ड निवासी अपनी-अपनी परम्पराओं, प्रथाओं तथा राजनीतिक संस्थाओं के स्वरूप को नष्ट नहीं करना चाहते। इसलिए वहाँ पर आज भी ऐसी परम्परायें, प्रथायें और संस्थायें विद्यमान हैं, जो समय तथा उपयोगिता की दृष्टि से पुरानी पड़ चुकी है। जैसा दीखता है, वैसा है नहीं और उसका कारण यह रहा है, जैसा विलियम एनसन के शब्दों में, "यह संविधान एक ऐसा भवन रहा है जिसमें नई पीढ़ियों ने समयानुसार अपने मनोनुकूल इस भवन में चीजें जोड़ी हैं।"

    वास्तव में इसका एक परिणाम यह हुआ कि, शासन-संस्थाओं का बाह्यरूप स्थिर रहा परन्तु उनको नई परिस्थितियों के अनुकूल बनाने की चेष्टा में उनका सार जाता रहा। इस प्रकार सिद्धान्त और व्यवहार में महान अंतर हो गया। प्रोफेसर मुनरो की भी मान्यता है कि "ब्रिटिश संविधान की यह अद्भुत विशेषता है कि, यह जैसा दिखाई देता है, वैसा है नहीं और जैसा है, वैसा दिखाई नहीं देता।" उदाहरणार्थ-सम्राट के अधिकार सिद्धान्त में आज भी वही है, जो नार्मनकाल में थे। सैद्धान्तिक दृष्टि से सम्राट के पास सारी शक्तियाँ हैं, वह सेना का सर्वोच्च सेनापति है, वही युद्ध तथा शांति की घोषणा करता है। वही सभी प्रमुख पदाधिकारियों को नियुक्त करता है। वह ही न्याय का स्रोत है और सभी संधियाँ उसी के नाम से की जाती हैं। सरकार के सभी अधिकारी ब्रिटिश ताज के सेवक हैं और उनको सम्राट पदच्युत कर सकता है। वह संसद को भंग कर सकता है और नए चुनाव करवा सकता है, परन्तु सब कुछ व्यवहार में सत्य नहीं है। व्यवहार में राजा की सारी शक्तियाँ अत्यन्त सीमित हैं और वह सारा कार्य अपने मंत्रियों के परामर्श से करता है।

    वस्तुतः ब्रिटिश शासन-व्यवस्था में पग-पग पर सिद्धान्त और व्यवहार में अन्तर दृष्टिगोचर होता है। इसका कारण शासन-संस्थाओं का निरन्तर विकासशील रहना है। यह विकास विधियों द्वारा न किया जाकर प्रधानतः परम्पराओं तथा प्रथाओं द्वारा हुआ है। विधियों का प्रयोग बहुत कम अवसरों पर किया गया है। शासन व्यवस्था का अधिकांश भाग विशेषकर राजपद की स्थिति, उसके पार्लियामेन्ट तथा कैबिनेट से संबंध आदि विधियों द्वारा नियमित नहीं किये गये। इनकी प्रथाओं और परम्पराओं पर छोड़ दिया गया है।

    संक्षेप में हम कह सकते हैं कि ग्रेट ब्रिटेन में सिद्धान्त और व्यवहार में जो अंतर पाया जाता है,वे इस प्रकार हैं :

    • सैद्धान्तिक दृष्टि से इंगलैंड में राजतंत्र है, किन्तु व्यवहार में, वहां लोकतंत्र स्थापित हो गया है। 
    • यद्यपि शासन का सारा कार्य राजा के नाम से एवं राजा की मोहर लगाने से होता है, किन्तु व्यावहारिक रूप में राजा एक रबर की मोहर से ज्यादा कुछ नहीं है, वह सारा कार्य मंत्रियों की सलाह से ही करता है। 
    • सैद्धान्तिक दृष्टि से इंगलैंड में शक्तियों का पृथक्करण पाया जाता है, क्योंकि वहां कानून निर्माण की शक्ति संसद को दी गई है, कार्यपालिका शक्ति मंत्रिमंडल के पास है और न्यायपालिका शक्ति न्यायपालिका में निहित है, परन्तु इंगलैंड से संसदीय शासन व्यवस्था है और वहां मंत्रिमंडल संसद के अधीन है। मंत्रिमंडल भी उसी दल से बनता है, जिसका संसद में बहुमत होता है और प्रधानमंत्री कामन-सदन के विघटन की सम्राट अपना साम्राज्ञी से सिफारिश कर सकता है। 
    • सैद्धान्तिक रूप से इंगलैंड में एकात्मक शासन व्यवस्था है, और ऐसा प्रतीत होता है मानो वहां सम्पूर्ण शासन सत्ता का केन्द्रीकरण हो, किन्तु व्यवहार रूप में वहां शक्ति का समुचित विकेन्द्रीकरण है। स्थानीय स्तर पर इंगलैंड में पूर्ण स्वशासन है। 
    • सैद्धान्तिक रूप में सर्वोच्च न्यायिक शक्ति लार्ड सभा में निहित है, किन्तु व्यवहार रूप में न्यायिक शक्ति लार्ड सभा की एक उपसमिति में निहित है। 
    • 'सम्राट' आज शासन व्यवस्था का 'कार्यशील अंग' न रहकर, उसका केवल एक प्रतिष्ठित भाग बन गया है। सिद्धान्त में आज भी वह स्वेच्छाचारी है और उसकी शक्ति वस्तुतः असीमित है, परन्तु वास्तविकता यह है कि पिछली शताब्दियों के संवैधानिक विकास ने राजपद को पूर्णतया समारोहात्मक बना दिया है। 
    • इसी प्रकार सिद्धान्त में प्रिवी काउन्सिल अब भी महत्वपूर्ण है, परन्तु व्यवहार में उसका स्थान पूर्णत: कैबिनेट ने ले लिया है, जो देश की वास्तविक कार्यकारिणी है। 

    (4) लोकतंत्र की प्रधानता (Dominance of Democracy) : ब्रिटिश शासन प्रणाली की शुरूआत राजतंत्र से हुई, परन्तु धीरे-धीरे वह सांविधानिक राजतंत्र में परिणत हो गई। इस तरह वहां सार्वजनिक निर्णय की अंतिम शक्ति जनसाधारण के प्रतिनिधियों के हाथों में आ गई है और यह प्रणाली पूर्णतः लोकतंत्रीय बन गई है। आज ब्रिटिश राज के तत्व केवल अलंकारिक रह गया है। इनके चलन से लोकतंत्र की भावना या लोकतंत्र के सिद्धान्त का उल्लंघन नहीं होता, जैसे-ब्रिटेन में आज भी राजमुकुट की संस्था बनी हुई है, और लार्ड सभा भी कायम है। परन्तु इन्होंने अपने आप को लोकतंत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाल लिया है।

    (5) अलिखित संविधान (Unwritten Constitution)-आज जहां विश्व के अधिकांश संविधान लिखित हैं, वहीं केवल मात्र ब्रिटिश संविधान अलिखित संविधान है। इसका अर्थ यह है कि, यहां ऐसा कोई अकेला दस्तावेज तैयार नहीं किया गया है, जिसे किसी संविधान सभा विधिवत् अधिनियमित किया हो, और जिसे ब्रिटिश संविधान की संज्ञा दी जा सके, अर्थात् जिसे किसी भी सार्वजनिक निर्णय, नियम या कानून की प्रामाणिकता का अंतिम स्रोत माना जा सके। इस दृष्टि से ब्रिटिश संविधान, फ्रांस, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संविधान से भिन्न है।

    ब्रिटिश संविधान के बनाने में चार महत्वपूर्ण तत्वों ने (स्रोतों) ने विशेष रूप में अपना काम किया है। ये स्रोत या तत्व निम्नलिखित हैं-संसदीय अधिनियम का अधिकार या अधिकार पत्र (चार्टर) न्यायालयों के निर्णय, लोक विधि, संसद के नियम और रीति-रिवाज, परिपाटियाँ या प्रथाएँ संवैधानिक व्यवहार का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। यद्यपि अधिकार पत्र, संसद द्वारा बनाये हुए कानून और न्यायाधीशों के निर्णय लिखित है। परन्तु रूढ़ियाँ अलिखित हैं। चूँकि ब्रिटेन के संविधान की कार्यविधि को रूढ़ियों ने बहुत अधिक प्रथावित किया है, यही कारण है कि, ब्रिटिश संविधान को अलिखित माना जाता है।

    (6) पैतृक तथा सीमित राजतंत्र (Limited Monarchy)-इंगलैंड में पैतृक तथा सीमित राजतंत्र की स्थापना हो गई है। 1642 के गृह युद्ध से पहले सम्राट की शक्ति निरकुंश थी और वे सभी क्षेत्रों में अपनी मनमानी करते थे। किन्तु 1688 के गौरवमय क्रांति के बाद सम्राट की शक्तियाँ सीमित हो गईं। यथार्थ रूप में आज सम्राट की शक्तियों का प्रयोग मंत्रियों द्वारा की जाती है। सम्राट के पास व्यावहारिक रूप से तीन ही शक्तियां हैं

    1. चेतावनी देने का अधिकार 
    2. मंत्रियों को सलाह देने का अधिकार
    3. प्रोत्साहन देने का अधिकार।

    इसके अतिरिक्त सम्राट को प्रशासन के बारे में किसी प्रकार की सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। इंगलैंड में सम्राट पद तो रखा गया है, किन्तु उसकी शक्तियां संविधान द्वारा सीमित कर दी गई है।

    (7) अभिसमयों (रूढ़ियां तथा प्रथाएँ) पर आधारित विधान (Based on Conventions)-इंगलैंड का संविधान रूढ़ियों तथा प्रथाओं पर आधारित है। ये सब रूढ़ियां तथा प्रथाएँ अलिखित हैं और इन्होंने संविधान को लिखित तत्वों से भी प्रभावित किया है। जैसा कि एल. एस. एमरी के शब्द है- "अंग्रेजी संविधान औपचारिक अधिनियम, पूर्वाभ्यास एवं परि पाटियों का मिश्रण है।" वैसे तो थोड़ा बहुत सभी संविधानों को अभिसमयों पर आश्रित रहना पड़ता है, परन्तु अंग्रेजी संविधान में इसकी बाहुल्य है। वस्तुतः इंगलैंड की समस्त-व्यवस्था ही अभिसमयों पर टिकी हुई है।

    (8) संसद की सर्वोच्चता अथवा प्रभुसत्ता (Parliamentary Sovereignty)-इंगलैंड की शासन व्यवस्था का मूलमन्त्र है, 'कानून की दृष्टि से संसद की प्रभुता।' संसदीय प्रभुसत्ता का अर्थ है, विधि निर्माण के क्षेत्र में संसद की असीम शक्तियां प्राप्त होना। ब्रिटिश संसद जो भी कानून बना देती है, वह अन्तिम है। उसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। सर्वोच्च न्यायालय उसे अवैध घोषित नहीं कर सकता। ब्रिटिश संसद सभी प्रकार के कानूनों की तरह संविधान को भी समाप्त कर सकती है। वह कार्यकारिणी पर भी नियंत्रण रखती है। वस्तुतः ब्रिटिश संसद की कानूनी सत्ता 'सर्वोच्च' है। यहां पर डीलोम का कथन है- "संसद सब कुछ कर सकती है, केवल स्त्री को पुरुष, और पुरुष को स्त्री नहीं बना सकती है।" डायसी के शब्दों में- "कानून की दृष्टि से हमारी राजनीतिक संस्थाओं की प्रमुख विशेषता संसद की सर्वोच्चता है......... संसद की शक्ति इतनी सर्वोच्च है कि उसको व्यवस्थापन द्वारा भी सीमित नहीं किया जा सकता।"

    (9) एकात्मक शासन प्रणाली (Unitary System)-ग्रेट ब्रिटेन का संविधान, संघीय नहीं बल्कि एकात्मक है। वहां पर शक्तियों को कोई विभाजन नहीं है। ब्रिटेन के सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए, एक ही सरकार तथा एक ही केन्द्र (लन्दन) की व्यवस्था की गई है। स्थानीय शासन को कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। वह केवल संसदीय कानून को लागू करने के लिए आवश्यक उपनियम बना सकता है। स्थानीय शासन को सारी शक्तियां, केन्द्रीय सरकार की देन हैं, और ये केन्द्रीय सरकार के विवेक पर ही आश्रित हैं। संसदीय नियम के अन्तर्गत किसी स्थानीय शासन की किसी इकाई के गठन में संशोधन किया जा सकता है, या उसके अस्तित्व को ही समाप्त किया जा सकता है।

    (10) सुपरिवर्तनशील या लचीला संविधान (Flexible Constitution)-संविधान की एक उल्लेखनीय विशेषता, इसका लचीलापन है। ब्रिटेन में सांविधानिक कानून और साधारण कानून के निर्माण की प्रक्रियाओं में कोई अंतर नहीं है। वहाँ संसद सर्वोच्च है तथा वह संविधान के किसी भी भाग को साधारण बहुमत के द्वारा संशोधित कर सकती है। ब्राइस के शब्दों में- "संविधान के ढाँचे को तोड़े बिना ही इसे आवश्यकतानुसार खींचा और मोड़ा जा सकता है।"

    चूँकि वहां संविधान को बदलना इतना सरल है, जैसे कोई साधारण कानून बनाना या बदलना हो, इसलिए ब्रिटिश संविधान को, सुनम्य या लचीला संविधान कहा जाता है। देखा जाए, तो ब्रिटिश संविधान की यह विशेषता वहाँ के अलिखित संविधान का स्वाभाविक परिणाम है।

    (11) विधि का शासन (Rule of Law)-अंग्रेजी संविधान एक उल्लेखनीय विशेषता है'विधि का शासन' की विधि के शासन का कानूनी अर्थ है, कानून के समक्ष सभी समान हैं। कानून सर्वोपरि है, व्यक्ति नहीं। कानून के शासन का अर्थ इंगित करते हुए इंगलैंड के भूतपूर्व न्यायाधिपति लार्ड हिवार्ट ने लिखा है :- "व्यक्तियों के अधिकारों के निर्धारण या निर्णय में कानून की प्रमुखता या प्रधानता होती है, न कि किसी मनमाने निर्णय या अन्य उपाय की प्रमुखता, जो कानून न हो।" डायसी को विधि के शासन का प्रमुख व्याख्याकार माना जाता है। उन्होंने यह सिद्धान्त विकसित किया कि ब्रिटिश शासन व्यवस्था का मूल गुण यह है कि, इसमें 'स्वेच्छाचारिता' के स्थान पर विधि की प्रधानता है, अर्थात् केवल विधि द्वारा ही उसकी स्वतंत्रता अथवा सम्पत्ति को हाथ लगाया जा सकता है। विधि के आधार पर सरकार की स्वेच्छाचारिता के विरूद्ध व्यक्ति न्यायालयों की शरण ले सकता है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष है और जिनके समक्ष सरकार और नागरिक दोनों समान हैं। इसी व्यवस्था को 'विधि राज्य' ((Rule of law) कहा जाता है। डायसी ने कानून के शासन के विषय में निम्न तीन मुख्य नियमों का उल्लेख किया है

    (क) प्रथम नियम यह है कि, देश में सामान्य कानून ही प्रधान अथवा सर्वोपरि है तथा सरकार को स्वेच्छाचार या मनमानी करने का अधिकार नहीं है अर्थात् व्यक्ति को कानून के उल्लंघन के लिए दण्ड दिया जा सकता है और किसी बात के लिए नहीं। इसका तात्पर्य है कि कोई भी व्यक्ति जब तक किसी साधारण न्यायालय द्वारा किसी पार्लियामेन्ट के कानून को भंग करने के लिए दोषी न सिद्ध हो जाये, उसे कोई दण्ड नहीं दिया जा सकता। 

    (ख) दूसरा नियम यह है कि कानून के समक्ष सब व्यक्ति समान हैं, अर्थात् सरकारी कर्मचारी तथा साधारण नागरिक दोनों सामान्य कानून ग्रास नियमित हैं तथा दोनों समान रूप से साधारण न्यायालयों के अधीन हैं। डायसी का अभिप्राय था कि, इंगलैंड में फ्रांस की भाँति कोई 'प्रशासकीय विधि' अथवा प्रशासकीय न्यायालयों की व्यवस्था नहीं है। 

    (ग) तीसरा नियम यह है कि संविधान, नागरिक अधिकारों का ही परिणाम है, उनका स्रोत नहीं। अर्थात् नागरिकों के अधिकार, संविधान द्वारा निर्धारित न होकर, स्वयं संविधान नागरिकों के अधिकारों द्वारा निर्धारित हुआ है। नागरिकों के अधिकार मौलिक हैं, संविधान इनके संरक्षण विषयक नियमों का समूह मात्र है। चूंकि नागरिकों के अधिकार पार्लियामेन्ट के कानूनों तथा न्यायालयों के निर्णयों पर आधारित हैं, अत: पार्लियामेन्ट के कानून तथा न्यायिक निर्णय ही संविधान के स्रोत हैं। 

    इस प्रकार हम देखते हैं कि इंगलैंड में कानून के शासन के अनुसार किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग चलाए तथा उसका अपराध सिद्ध किए बिना, जेल में नहीं डाला जा सकता। वहाँ पर विधि के समक्ष सब बराबर हैं, चाहे कोई प्रधानमंत्री या फिर चपरासी ही क्यों न हो। सारे देश में एक ही प्रकार का कानून है। किसी भी व्यक्ति को केवल कानून के अनुसार दण्ड मिल सकता है और किसी अधिकारी की मनमानी इच्छा से नहीं। चाहे कोई साधारण व्यक्ति अपराध करे अथवा अधिकारी करे, सब के लिए एक ही प्रकार के कानून तथा न्यायालय है। अन्त में हम जैनिंग्स के शब्दों में कह सकते हैं कि- "विधि राज्य का जिस अर्थ में इंगलैंड में प्रयोग होता है, उसका अभिप्राय यह है कि क्राउन तथा अन्य शासन, कर्मचारियों के अधिकार, पार्लियामेन्ट के कानून तथा स्वतंत्र न्यायालयों के निर्णयों पर आधारित तथा उनके द्वारा मर्यादित होने चाहिए।

    (12) कैबिनेट प्रणाली या मंत्रिमण्डलीय प्रणाली (Cabinet System) : ब्रिटिश संविधान में संसदीय सर्वोच्चता की स्थापना के फलस्वरूप शक्ति विभाजन के सिद्धान्त को त्याग दिया गया है। तात्पर्य है कि यद्यपि सिद्धान्ततः ब्रिटिश संसद की सत्ता सर्वोच्च है। परन्तु संसद का नेतृत्व मंत्रिमण्डल के हाथों में रहता है। अर्थात् इंगलैंड में आज कार्यपालिका की समस्त शक्ति कैबिनेट में केन्द्रित है। इसलिए व्यवहार के धरातल पर सम्पूर्ण संसदीय कार्य को आरम्भ करने का अधिकार मंत्रिमण्डल के हाथों में आ गया है। कैबिनेट ही 'कामन्स सभा' का मार्ग निर्देशन कर सकती है। संसद का अधिवेशन, प्रधानमंत्री की सलाह से बुलाए जाते हैं। संसद की कार्य सूची का निर्माण और संसदीय समय का विभाजन प्रधानमंत्री के सलाह से निर्धारित किया जाता है। मंत्रिमंडल के सदस्य ही संसद में, अधिकांश विधेयक प्रस्तुत करते हैं और मंत्रिमंडल संसद में अपने बहुमत के बल पर इन विधेयकों को पारित करा लेता है। इसलिए यह कहा जाता है कि संसद अपने-आप में कोई कानून नहीं बनाती, बल्कि मंत्रिमण्डल ही संसद के अनुमोदन से सारे कानून बनाता है। मंत्रिमण्डल ही सारे कानून को लागू करता है और वही सारा प्रशासन संभालता है। देखा जाए तो आजकल मंत्रिमण्डल सम्पूर्ण सरकार का पर्याय बन गया है। राम्जे-म्योर के मत में- "कैबिनेट राज्य रूपी जहाज का चालक 'पहिया' है और प्रधानमंत्री उस जहाज का चालक है।

    (13) संसदात्मक लोकतंत्र (Parliamentary Democracy)-ब्रिटेन में संसदीय सरकार की स्थापना की गई है। इसका अर्थ है कि, राज्य में मुखिया 'सम्राट' के पास नाममात्र की शक्तियां होंगी और सरकार के मुखिया 'प्रधानमंत्री' के पास वास्तविक शक्तियाँ होगी। इसलिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री के पास वास्तविक शक्तियाँ हैं और वह अपने कार्यों एवं नीतियों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। ब्रिटिश संसद, प्रधानमंत्री तथा उसके मंत्रिमण्डल के विरुद्ध स्थगन प्रस्ताव या काम रोको प्रस्ताव तथा अविश्वास प्रस्ताव पास कर सकती है।

    चूँकि ब्रिटेन में प्रचलित व्यवस्था को 'संसदात्मक शासन-व्यवस्था' कहा जाता है। कार्यकारिणी का संसद के प्रति उत्तरदायी होना इसकी मुख्य विशेषता मानी जाती है। अतः इसको उत्तरदायी सरकार कहा जाता है।

    संसदात्मक शासन प्रणाली की मूल चार विशेषताएँ हैं

    (i) कार्यकारिणी का, संसद की सदस्यता में से ही गठित किया जाना। 

    (ii) कार्यकारिणी का, संसद के प्रति उत्तरदायी होना। 

    (iii) कार्यकारिणी का कार्य-काल, संसद की इच्छा पर निर्भर करना, अर्थात् पूर्व निर्धारित न होना,और 

    (iv) नाममात्र की कार्यकारिणी और वास्तविक कार्यकारिणी में भेद होना। 

    ब्रिटेन में संसदीय शासन प्रणाली के चारों तत्व या विशेषताएँ मौजूद हैं।

    (14) न्यायपालिका और प्रशासनिक सेवा के कार्य में कार्यपालिका या विधायिका का हस्तक्षेप नहीं (Non-interference of Executive or Legislature) : यह सच है कि ब्रिटिश संसदीय प्रणाली के अन्तर्गत शक्ति पार्थक्य की वैसी गुंजाइश नहीं है, जैसी कि संयुक्त राज्य अमेरिका में रखी गई है। यहां की विधायिका (संसद) और कार्यपालिका (मंत्रिमण्डल) आपस में जुड़ी हुई है और संसद का उच्च सदन, अर्थात् लार्ड सभा संसद के उच्च न्यायालय की भूमिका निभाती है। परन्तु सच में वह केवल उच्चतम पुनरावेदन-न्यायालय ((Highest Court of Appeal) का कार्य करती है, सांविधानिक मुद्दों पर वह कोई निर्णय नहीं देता। दूसरी ओर, न्यायाधीशों और प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के नित्य-प्रति के कार्यों में विधायिका (संसद) या कार्यपालिका (मंत्रिमण्डल) कोई हस्तक्षेप नहीं करती। प्रशासनिक विभागों के मंत्री अपने-अपने विभाग के कार्य के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं, किन्तु इन विभागों के अधिकारी संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होते, उनकी सेवा की शर्ते प्रशासनिक सेवा के नियमों से निर्धारित होती हैं। वे राजनीतिक दृष्टि से तटस्थ होते हैं।

    इसी तरह न्यायाधीशों को भी 'सद्व्यवहार' के दौरान 'कार्यकाल की सुरक्षा' प्राप्त होती है। उन्हें अपने पद से हटाना अत्यन्त कठिन है। वह तभी सम्भव है, जब संसद के दोनों सदन इस आशय का संकल्प पारित कर दें। अपने कार्यपालन के दौरान उन्हें राजनीतिक दबाव से पूर्ण उन्मुक्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा, अपनी आधिकारिक हैसियत से जो कार्य है, उसे न्यायिक उन्मुक्ति प्राप्त होती है।

    (15) धर्मनिरपेक्ष संविधान नहीं (Not a secular constitution) : यद्यपि ब्रिटेन का संविधान धर्मनिरपेक्ष संविधान नहीं है, तथापि सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। किसी भी धर्म का व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है, किन्तु ब्रिटेन में यह आवश्यक है कि, उसका राजा अथवा रानी प्रोटेस्टेंट ईसाई हो।

    (16) मिश्रित संविधान अर्थात् राजतंत्र, कुलीन तंत्र तथा लोकतंत्र का समन्वय (Mixed Constitution) : ब्रिटिश संविधान वस्तुततः एक मिश्रित संविधान है। इसमें राजतंत्र, कुलीन तंत्र और जनतंत्र के तत्व विद्यमान हैं। ब्रिटेन का शासनाध्यक्ष आज भी राजा अथवा रानी है और वह राजतंत्र वंशानुगत है। यदि राजा राजतंत्र का प्रतीक है, तो लार्ड सभा कुलीनतंत्र का। किन्तु वास्तविक शक्ति न तो 'राजा' के पास है और न ही 'लार्ड सभा' के पास। वह तो 'लोक सदन' (हाउस ऑफ कॉमन्स) तथा उसके प्रति उत्तरदायी मंत्रिमण्डल के पास है। इस तरह हम देखते हैं कि ब्रिटेन में राजतंत्र तथा कुलीनतंत्र के होते हुए भी पूर्ण लोकतंत्र की स्थापना हो गई है। इसका कारण यह है कि, सम्राट तथा कुलीन तंत्र के प्रतीक हाउस ऑफ लार्ड्स की शक्तियां अत्यन्त सीमित कर दी गई हैं और कॉमन सदन को शक्तियों का वास्तविक भण्डार बना दिया है, परन्तु राजतंत्र तथा लार्ड सदन को समाप्त नहीं किया गया है। यहां पर ऑग का कहना ठीक ही है- "ब्रिटेन का राज्य व्यवस्था, शुद्ध सैद्धान्तिक रूप से निरंकुश, राजतंत्र है और वास्तविक रूप में प्रजातान्त्रिक गणराज्य है।"

    (17) मौलिक अधिकारों की संविधान में कोई सूची न होते हुए भी, मौलिक अधिकारों का अस्तित्व (No charter of Fundamental Rights) : अमेरिका, सोवियत संघ, भारत, जापान, चीन इत्यादि देशों के संविधान लिखित हैं और उसमें मौलिक अधिकारों की एक लम्बी सूची दी गई है। ब्रिटिश संवधान अलिखित है और उसमें इस प्रकार की कोई सूची नहीं दी हुई है, परन्तु फिर भी ब्रिटेन में किसी न किसी रूप में मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं का अस्तित्व है। ये मौलिक अधिकार और स्वतंत्रताएँ इंगलैण्ड के लोगों को मैग्ना कार्टा (1215 ई०) पिटीशन ऑफ राइट्स अथवा अधिकारों की याचिका (1628), हेबिस-कार्पस एक्ट (1679) तथा बिल ऑफ राइट्स (1689) के द्वारा मिले हुए हैं। इसके अतिरिक्त कई नागरिक अधिकार विभिन्न संसदीय अधिनियमों द्वारा प्रदान किये गये हैं, जैसे शस्त्र धारण करने का अधिकार, आवेदन पत्र प्रस्तुत करने का अधिकार, अत्यधिक जुर्माने और अमानुषिक दण्ड से बचने का अधिकार इत्यादि। कुछ स्वतंत्रताएँ जैसे-भाषण तथा लेखन की स्वतंत्रता, सम्मेलन और समुदाय बनाने की स्वतंत्रता, कानून के शासन पर आश्रित हैं। अनेक स्वतंत्रताएँ न्यायाधीशों के निर्णय के कारण भी लोगों को प्राप्त हुई हैं।

    (18) द्विदलीय पद्धति (Biparty System)-द्विदलीय पद्धति ब्रिटिश शासन प्रणाली की एक अद्वितीय विशेषता है जिसने संविधान की कार्यविधि को अत्यधिक प्रभावित किया है। यद्यपि ब्रिटेन में समुदाय बनाने की पूर्ण स्वतंत्रता है, परन्तु लगभग तीन शताब्दियों से ब्रिटेन में दो दलों (अनुदार दल तथा उदार दल) की ही प्रमुखता रही है।

    निष्कर्ष : 

    उपर्युक्त विशेषताओं का जब हम विश्लेषण करते हैं तो, यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रिटेन में । संविधानवाद को आधारभूत तत्वों का समावेश है। संविधानवाद की मान्यताओं के अनुकुल, ब्रिटिश संविधान शासन की आधारभूत संस्थाओं-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका तथा राजनीतिक दलों, समूहों एवं प्रशासकीय सेवाओं की समुचित व्यवस्था एवं स्थापना करता है। यहां भी सरकार की शक्तियों का सीमांकन कर दिया गया है ताकि, शासकों की स्वेच्छाकारी कार्यों से जनता की रक्षा हो सके। इस परिप्रेक्ष्य में, यहाँ विधि के शासन की स्थापना, मौलिक तथा नागरिक स्वतंत्रताओं का अस्तित्व, न्यायपालिका और प्रशासकीय सेवा के कार्य में, कार्यपालिका या विधायिका के हस्तक्षेप से बचाव किया गया है। केन्द्रीय स्तर से लेकर स्थानीय संस्थाओं तक के अधिकारों एवं शक्तियों का विवेचना; ब्रिटेन के संविधान में दृष्टिगोचर होते हैं। इतना ही नहीं; ब्रिटिश संविधान विकास का प्रतिफल है। समयानुकूल, इसमें आवश्यक परिवर्तन अथवा सुधार, जनता की आकांक्षाओं एवं इच्छाओं के मद्देनज़र किया गया है। इतना ही नहीं, ब्रिटिश संविधान, समयानुकूल राष्ट्रहित एवं जनहित में आवश्यक परिवर्तन या संशोधन करने में पूर्णरूप से सक्षम है। साथ ही, सरकार को उत्तरदायी बनाया गया है, ताकि वह मनमानी न कर सके।

    वस्तुतः संविधानवाद की जो आधारभूत विशेषता विधि और विनियमों द्वारा संचालित व्यवस्था से है, उनका स्पष्ट दृष्टान्त; ब्रिटिश संविधान में दृष्टिगोचर होते हैं। साथ ही, ब्रिटिश संविधान में राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और सीमित सरकार के सिद्धान्त का समावेश न ही किया गया है। शक्तियों का विभाजन कर सरकारी कार्यों पर प्रभावशाली नियंत्रण स्थापित किया गया है तथा सरकार को उत्तरदायी बनाया गया है। 

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