भारत में ग्रामीण नगरीय संपर्क की विवेचना कीजिए। इस लेख में ग्रामीण तथा शहरी अर्थात नगरीय संपर्क का वर्णन किया गया है जिससे हम जानेंगे की किस प्रकार ग्
भारत में ग्रामीण नगरीय संपर्क की विवेचना कीजिए।
इस लेख में ग्रामीण तथा शहरी अर्थात नगरीय संपर्क का वर्णन किया गया है जिससे हम जानेंगे की किस प्रकार ग्रामीण तथा नगरीय जीवन एक दूसरे पर आधारित है।
ग्रामीण नगरीय संपर्क (Rural-Urban Linkage)
गाँव और नगर का अध्ययन करने के पश्चात यह स्पष्ट होता है कि इन दोनों के मध्य पर्याप्त अंतर पाया जाता है, किन्तु फिर भी ग्रामीण और नगरीय जीवन पूर्णतः एक-दूसरे से अलग नहीं होते हैं, इन दोनों के मध्य परस्पर आदान-प्रदान की क्रियाएँ होती रहती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि गाँव और नगर के बीच संपर्क रहता है, परिणामस्वरूप इन दोनों के जीवन यापन करने के ढंगों में परिवर्तन होता रहता है। नगरीकरण एवं ग्रामीणीकरण जैसी क्रियाओं के क्रियाशील होने के कारण आज ग्राम एवं नगर का मिश्रित स्वरूप दृष्टिगोचर होता है। पहले गाँव के लोग पूर्णरूप से कृषि पर आत्मनिर्भर होते थे आज नगरों में कल-कारखाने चलाने के लिए कच्चा माल प्राप्त करने के लिए गाँव पर निर्भर रहना पड़ता है। नगरों का विकास और वहाँ उपलब्ध संसाधनों ने गाँव वालों को अपनी ओर आकर्षित किया है, जिससे ग्रामीणों का नगरीकरण होता जा रहा है। गाँव और नगर के संपर्क के फलस्वरूप एक सामंजस्यपूर्ण अवस्था का उद्भव हुआ, जिसमें नगरीय एवं ग्रामीण विशिष्टताओं की सहयोगिता दृष्टिगोचर होती है। इसी कारण गाँव और नगरों का मिश्रित स्वरूप देखने को मिलता है। इसका जीता जागता उदाहरण नगरों के समीप बने हुए फार्म हाउस हैं।
वर्तमान में न तो ग्रामीण जीवन पूर्णरूप से नगरीय रह गया है और न ही ग्रामीण जीवन पूर्णतः प्रकृति पर आधारित है। ये दोनों ही एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। वर्तमान में गाँव एवं नगर एक-दूसरे के पूरक बन गए हैं। नगरों में काम करने वाले श्रमिक गाँव से ही आते हैं और नगरों के कारखाने कच्चे माल के लिए गाँवों पर ही निर्भर करते हैं। नगरीकरण की प्रक्रिया के कारण ही नगरों में जनाधिक्य की समस्या बढ़ती जा रही है और यदि इसी प्रकार की व्यवस्था बनी रही तो इस समस्या का निदान होते नहीं दिखता है। आज ग्राम और नगर की सीमा में भेद करना अत्यन्त कठिन हो गया है, क्योंकि नगर निवासियों और ग्रामवासियों के वास्तविक जीवन में हमें ऐसे क्षेत्र भी देखने को मिलते हैं जहाँ ग्रामीण दशाओं के साथ. साथ नगरीय दशाएँ भी पायी जाती हैं।
वर्तमान भारतीय गाँव और नगरों में आवागमन एवं सन्देश वाहन के साधनों के निरन्तर विकास के परिणामस्वरूप ग्रामीण नगरीय सम्बन्धों को और भी अधिक विस्तृत होने का अवसर मिला है। गाँव और नगरों के मध्य अनेक प्रकार के सम्बन्ध दिखायी पड़ते हैं। गाँव के लोग धनार्जन के उददेश्य से तथा अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु नगरों में जाते हैं जबकि नगरों के लोग खाद्य सामग्री. एवं साग-सब्जी र के उददेश्य से गाँवों में जाते हैं। इस प्रकार गाँवों एवं नगरों में प्रतिदिन का सम्पर्क बना रहता है जिससे - दोनों के सम्बन्धों में और अधिक प्रगाढ़ता आती है।
व्यावहारिक दृष्टि से गाँव और नगरों में अट्ट सम्बन्ध होता है। धार्मिक दृष्टि से भी नगरों के लोग ग्रामों को और गाँवों के लोग नगरों को जाते हैं, क्योंकि कछ पवित्र धार्मिक स्थल गाँवों में और कुछ पवित्र धार्मिक स्थल छोटे-बड़े नगरों में स्थित है, जहाँ पर नगरवासी व ग्रामवासी पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं। इसी प्रकार प्रशासनिक समस्याओं के समाधान के लिए भी ग्रामीण नगरों में आते हैं क्योंकि प्रमुख प्रशासनिक व्यवस्थाएँ नगरों में ही स्थित हैं। इस प्रकार ग्राम और नगर एक-दूसरे पर परस्पर जुड़े हुए हैं। राजनैतिक दृष्टि से देखने पर भी यह दोनों एक-दूसरे के सम्पर्क में दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि जब प्रजातान्त्रिक चुनाव होते हैं तो नगर के प्रत्याशी गाँव में और गाँव के प्रत्याशी नगर में वोट माँगने के लिए आते हैं।
उपरोक्त अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि गाँव और नगरों के बीच निरन्तर सम्पर्क बना रहा है और वर्तमान में अत्यधिक विस्तृत और व्यापक सम्बन्ध गाँव और नगरों के बीच दृष्टिगोचर होता है।
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