लोक साहित्य के संग्रह की आवश्यकता - लोक जीवन में लोक साहित्य की परंपरा केवल मन बहलाव, मनोरंजन अथवा समय बिताने का साधन नहीं है; इसमें लोक-जीवन के सुख-द
लोक साहित्य के संग्रह की आवश्यकता - Lok Sahitya ke Sangrah ki Aavshyakta
लोक साहित्य के संग्रह की आवश्यकता - लोक जीवन में लोक साहित्य की परंपरा केवल मन बहलाव, मनोरंजन अथवा समय बिताने का साधन नहीं है; इसमें लोक-जीवन के सुख-दुख, रहन-सहन, संस्कृति, लोक-व्यवहार, तीज-त्योहार, खेती-किसानी आदि की मार्मिक और निःश्छल अभिव्यक्ति होती है। इसमें प्रकृति के रहस्यों के प्रति लोक की अवधारणा और उस पर विजय प्राप्त करने के लिए उसके सहज संघर्षों का विवरण; नीति - अनीति का अनुभवजन्य तथ्यपरक अन्वेषण और लोक- ज्ञान का अक्षय कोश निहित होता है। लोक-साहित्य में लोक-स्वप्न, लोक- इच्छा और लोक -आकांक्षा की स्पष्ट झलक होती है। नीति, शिक्षा और ज्ञान से संपृक्त लोक साहित्य लोक शिक्षण की पाठशाला भी होती है। यह श्रमजीवी समाज के लिए शोषण ओर श्रम-जन्य पीड़ाओं के परिहार का साधन है। यह लिंग, वर्ग और जाति की पृष्ठभूमि पर अनीतिपूर्वक रची गई सामाजिक संरचना की अमानुषिक परंपरा के दंश को अभिव्यक्त करने की, इस परंपरा के मूल में निहित अन्याय के प्रति विरोध जताने की शिष्ट और सामूहिक लोकविधि भी है। जीवन यदि दुख, पीड़ा और संघर्षों से भरा हुआ है तो लोक साहित्य इन दुखों, पीड़ाओं और संघर्षों के बीच सुख का उल्लास का और खुशियों का क्षणिक संसार रचने का सामूहिक उपक्रम है। लोक साहित्य सुकोमल मानवीय भावनाओं की अलिखित मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है।
अपने पूर्वजों द्वारा संचित धन-संपत्ति और जमीन-जायदाद को, जोकि धूप-छांव की तरह आनी–जानी होती है, हम सहज ही स्वस्फूर्त और यत्नपूर्वक सहजेकर रखते हैं। लोककथाओं सहित संपूर्ण लोक साहित्य भी हमारे पूवर्जों द्वारा संचित; ज्ञान, नीति और दर्शन का अनमोल और अक्षय कोश है जिसे संग्रह करना आवश्यक है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां मानव सभ्यता, पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रसंगों, ऐतिहासिक लोक नायकों, संस्कृति, लोक व्यवहार, तीज-त्योहार, खेती-किसानी आदि विभिन्न पहलुओं से अवगत हो सके और अपनी ज्ञान वृद्धि कर सके ।
लोक साहित्य ही वास्तव में हमें हमारी विरासत और परंपरा से जोड़ता है। यह हमारी व्यक्तिगत सामाजिक पहचान एवं अस्तित्व का अभिन्न अंग है। इस उपभोक्तावादी युग में जब रिश्तों का ग्राफ भी बाजार की ताकत तय करने लगी है, तब लोक साहित्य के संग्रह और संरक्षण की आवश्यकता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है।
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