भारत में दलित आंदोलन की विशेषताएं
- जातीय विद्वेष के तीव्र विरोधी,
- धार्मिक आडम्बरों व कुरीतियों के आलोचक,
- सामाजिक न्याय के प्रवक्ता,
- धर्म परिवर्तन व पलायनवादी
भारत में 'दलित आन्दोलनों' की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है
1. जातीय विद्वेष के तीव्र विरोधी- भारत में दलित आंदोलन सदैव से 'जातीय विद्वेष व भेदभाव के मुखर विरोधी रहे हैं। 'जाति-व्यवस्था' के प्रति इनका असन्तोष सदैव मुखरित होता रहा है। उदाहरण : डॉ० अम्बेडकर के नेतृत्व में 'दलित उत्थान' के आंदोलन इसका प्रमाण हैं।
2. धार्मिक आडम्बरों व कुरीतियों के आलोचक- भारत में दलितों के हित सम्बन्धी आन्दोलनों में अम्बेडकर, पेरियार इत्यादि द्वारा सदैव ही धार्मिक कुरीतियों व आडम्बरों पर प्रहार किया गया। क्योंकि उनके अनुसार धर्म की आड़ में ही सदियों से 'दलितों' के साथ अमानवीय व्यवहार होता रहा है।
3. सामाजिक न्याय के प्रवक्ता- भारत में दलित आंदोलन का सदैव से यह भी लक्षण रहा है कि इनमें 'सामाजिक न्याय' की स्थापना पर तीव्र रूप से बल दिया गया है ताकि समाज में भेदभाव, छुआछूत इत्यादि कुरीतियों को समाप्त कर 'दलितों' को समुचित सम्मान व स्थान दिलाया जा सके।
4. धर्म परिवर्तन व पलायनवादी- भारत में दलित आंदोलन की यह भी विवेचना रही है कि ये प्रारम्भ तो 'सुधारावादी' रूप में हुये परन्तु बाद में पलायनवादी बने गये। धर्म परिवर्तन' इसी प्रकार का अनिवार्य लक्षण है। डॉ. अम्बेडकर द्वारा 'दलित आन्दोलन' व्यापक रूप से चलाया गया परन्तु अन्ततः उन्होंने 'सामूहिक धर्म परिवर्तन' का मार्ग अपनाकर पलायनवादी प्रवृत्ति को सिद्ध कर दिया।