राजनीतिक सिद्धांत के पुनरुत्थान की विवेचना कीजिए। बर्लिन, ब्लांडेल तथा स्ट्रास ने राजनीतिक सिद्धांत के पुनरुत्थान में बहुत से विचार दिये। यह कहना गलत
राजनीतिक सिद्धांत के पुनरुत्थान की विवेचना कीजिए।
- राजनीतिक सिद्धांत के पुनरुत्थान पर बर्लिन, ब्लांडेल तथा स्ट्रास के विचारों पर प्रकाश डालिए।
राजनीतिक सिद्धांत का पुनरुत्थान
बर्लिन, ब्लांडेल तथा स्ट्रास ने राजनीतिक सिद्धांत के पुनरुत्थान में बहुत से विचार दिये। यह कहना गलत है कि राजनीतिक सिद्धांत का पतन हो गया है। यह केवल क्लासिक परंपरा पर आधारित है। इसमें दूसरे विश्व युद्ध के बाद की अवधि में राजनीतिक सिद्धांत के महान विकास के पक्ष की उपेक्षा हो गई है।
उपरोक्त तीनों विचारक कहते हैं कि “राजनीतिक सिद्धांत न तो मर रहा है और न ही मृत है; यह पूर्णतया अस्तित्व में है।"
बर्लिन राजनीतिक सिद्धांत पुनरुत्थान के सम्बन्ध में तर्क देता है कि राजनीति केवल उसी समाज में मौजूद होती है जहाँ हितों की आपस में टक्कर हो।
बर्लिन यह अवश्य स्वीकार करता है कि राजनीतिक सिद्धांत के किसी अंश के अप्रचलित होने के कारण अपनी सार्थकता या अपना महत्व खो देता है लेकिन इसका यह अभिप्राय नहीं है कि सारा विषय ही अस्तित्वविहीन हो गया है। .
ब्लाडेन के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत के ह्रास से अभिप्राय है -
- वैज्ञानिक व्यवसायवाद और निश्चयवादी आग्रह ने राजनीतिक अध्ययन पर कब्जा कर लिया है।
- राजनीति के पुराने तरीकों को निरर्थक कहा जा सकता है।
- महत्वपूर्ण समस्याओं की उपेक्षा होने लगी थी।
दर्शन के क्षेत्र में हुई क्रान्ति से राजनीतिक सिद्धांत कहा जाने वाला एक व्यापक दार्शनिक विषय उभर कर सामने आया है जो शैली में विश्लेषणात्मक है तथा रीति-विधान, संकल्पनाओं के स्पष्टीकरण और तार्किक निश्चयवादियों के विपरीत राजनीतिक मूल्यांकन के तर्क से इसका सम्बन्ध है लेकिन हालिया अतीत में रॉल्स व नॉजिक जैसे दार्शनिकों ने इस विषय में नये प्राणों का संचार किया है, जिससे यह कहना कि राजनीतिक दर्शन मृत हो गया है, गलत है।
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