पर्यावरण एवं भारतीय औद्योगिक विकास पर लेख लिखिए। सर्वप्रथम सन् 1896 ई० में वैज्ञानिकों ने पर्यावरण में CO, (कार्बन-डाई-ऑक्साइड) गैस की अधिकता का पता ल
पर्यावरण एवं भारतीय औद्योगिक विकास पर लेख लिखिए।
सर्वप्रथम सन् 1896 ई० में वैज्ञानिकों ने पर्यावरण में CO, (कार्बन-डाई-ऑक्साइड) गैस की अधिकता का पता लगाया परन्तु उस समय पर्यावरण अथवा जलवायु पर इसके प्रभाव नगण्य थे। धीरे-धीरे बढ़ते हुए औद्योगिकरण के प्रभाव के कारण पर्यावरण के प्रदूषण की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं तथा ग्रीन हाऊस गैसों की समस्या ने अनेक प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने का संकेत देने प्रारम्भ कर दिए है। पर्यावरण में कार्बन-डाई-ऑक्साइड की बढ़ती मात्रा ने ओजोन की पर्त को प्रभावित किया है तथा उसमें अनेक छेद हो गए हैं। ओजोन पर्त तापमान को नियन्त्रित करती है और जब यह क्षतिग्रस्त हो जायेगी तब पृथ्वी पर तापमान में अत्यधिक वृद्धि होगी और उसके परिणामस्वरूप पहाड़ों पर जमी हुई बर्फ तथा ग्लेशियर पिघलने प्रारम्भ हो जाएँगे। जिसका परिणाम यह होगा कि समद्र के जलस्तर में भारी वृद्धि होगी तथा विश्व के अनेक द्वीप-समूह जल में डूब जाएँगे।
बढ़ते हुए तापमान का प्रभाव समुद्रों पर भी पड़ेगा। यदि समुद्र तल का तापमान । 270°C से अधिक हो जायेगा तो समुद्र में तुफान आने प्रारम्भ हो जाएँगे। जिससे अनेक क्षेत्रों में बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाएगा। पर्यावरण में सन्तुलन के कारण ही भूस्खलन तथा भूकम्प जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होने लगी हैं। बाढ़, सूखा, अकाल आदि भी पर्यावरण के असन्तुलन के कारण ही उत्पन्न हो रहे हैं। मनुष्यों द्वारा लगातार वृक्षों तथा वनों का काटन करना पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि करता है तथा वृक्षों के कटान से बाढ़ एवं सूखा जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती
इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि मनुष्यों ने ही पर्यावरण में असन्तुलन स्थापित किया है। पर्यावरण में प्रदूषण की समस्या को उत्पन्न किया है तथा जलवायु में अनेक परिवर्तन किए हैं अतः आपदाओं के आमन्त्रण में व्यक्ति की यह भमिका काफी सीमा तक उत्तरदायी है। वर्तमान समय में प्राकृतिक विपदाएँ भी बढ़ती जा रही हैं। जिससे पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न खतरों की ओर संपूर्ण विश्व का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है।
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