राज्य सभा की संरचना, कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए। भारतीय संसद के उच्च सदन को राज्य सभा कहा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 80CA) के अनुसार, राज्य स
राज्य सभा की संरचना, कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
- राज्य सभा की संरचना (गठन) पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- राज्य सभा का कार्यकाल बताते हुए सदस्यों की योग्यतायें बतायें।
- राज्य सभा की विधायी शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- राज्य सभा के दो विशिष्ट अधिकारों पर प्रकाश डालें।
- 'राज्य सभा द्वितीय सदन नहीं, द्वितीय श्रेणी का सदन है। पुष्टि कीजिए।
- राज्य सभा की वित्तीय शक्तियों पर एक टिप्पणी कीजिए।
- राज्य सभा की शक्तियों पर प्रकाश डालिए।
राज्य सभा की संरचना
भारतीय संसद के उच्च सदन को राज्य सभा कहा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 80CA) के अनुसार, राज्य सभा में अधिकतम 250 सदस्य होंगे जिनमें 238 सदस्य राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों से निर्वाचित होंगे। इसके अतिरिक्त 12 व्यक्ति राष्ट्रपति द्वारा ऐसे क्षेत्रों से मनोनीत किये जायेंगे जो साहित्य, कला, विज्ञान एवं समाजसेवा में विशेष योग्यता एवं अनुभव रखते हों। राज्यसभा के सदस्यों का चनाव राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अंतर्गत एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा किया जाता है जबकि केन्द्र शासित प्रदेशों को प्रतिनिधित्व देने के लिए चनाव संसद द्वारा निर्मित नियमों द्वारा किया जाता है।
राज्य सभा का कार्यकाल
राज्य सभा एक स्थायी सदन है। इसका कभी विघटन नहीं होता। राज्य सभा के सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं तथा एक तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष पश्चात अवकाश ग्रहण करते हैं। .
राज्य सभा सदस्यों की योग्यतायें
राज्य सभा की सदस्यता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यतायें होनी चाहिए .
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए,
- उसकी आयु 30 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए
- किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए
- दिवालिया या पागल नहीं होना चाहिए
- ऐसी अन्य योग्यतायें होनी चाहिए जो संसद निर्धारित करे
- उस राज्य का मतदाता होना चाहिए, जिससे वह चुनाव लड़ रहा हो।
राज्य समा के कार्य एवं शक्तियाँ
राज्य सभा के कार्य एवं शक्तियाँ निम्न प्रकार हैं .
1. विधायी शक्तियाँ - साधारण विधेयक के संबंध में राज्यसभा एवं लोकसभा दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं। कोई भी साधारण विधेयक यद्यपि किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है, किन्तु सामान्यतः वह लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है। लोकसभा द्वारा पारित किो जाने के बाद विधेयक राज्य सभा में भेजा जाता है, जहाँ से पारित होने के बाद विधेयक राष्ट्रपति के पास उसकी स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है।
यदि किसी विधेयक के सम्बन्ध में दोनों सदनों में मतभेद उत्पन्न हो जाता हैं तो ऐसी स्थिति में महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत की जाती है। संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा की जाती है। संयुक्त बैठक में विधेयक पर मतदान के द्वारा बहुमत के आधार पर निर्णय किया जाता है। यद्यपि इस प्रक्रिया में दोनों सदनों का समान महत्व रहता है किन्तु राज्यसभा लोकसभा की अपेक्षा कमजोर पाई जाती है। क्योंकि संयुक्त अधिवेशन राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद तथा प्रधानमन्त्री की सलाह पर ही आहूत करता है और मन्त्रिपरिषद लोकसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती है। दूसरे यह कि संयुक्त बैठक से विधेयक पर बहुमत के आधार पर निर्णय किया जाता है और लोकसभा सदस्यों की संख्या राज्यसभा सदस्यों से अधिक होने के कारण इसमें भी राज्यसभा कमजोर ही दिखती है।
2. कार्यपालिका शक्तियाँ - राज्य सभा की कार्यपालिका शक्तियाँ लोकसभा की तुलना में बहुत कम हैं। चूंकि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। अतः राज्य सभा के सदस्य मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव लाकर उसे पदच्युत नहीं कर सकते। हालाँकि राज्य सभा सदस्य मंत्रियों से प्रश्न व पूरक प्रश्न पूछकर उनकी आलोचना अवश्य कर सकते हैं।
3. वित्तीय शक्तियाँ - राज्य सभा को यद्यपि कुछ वित्तीय शक्तियाँ भी प्राप्त हैं, किन्तु इस संबंध में पर्याप्त सीमायें हैं। कोई भी वित्त विधेयक राज्य सभा में प्रस्तावित नहीं किया जा सकता तथा उसमें किसी प्रकार के संशोधन या अस्वीकृत का इसे कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। राज्य सभा वित्त विधेयक को मात्र 14 दिन तक रोक सकती है। इसके अतिरिक्त राज्य सभा के सभापति (उपराष्ट्रपति) को यह निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त नहीं है कि कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं ? वित्त विधेयक को प्रमाणित करने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष को प्राप्त है।
4 संविधान संशोधन की शक्ति - संविधान संशोधन के प्रश्न पर राज्य सभा एवं लोकसभा क समान शक्तियाँ प्राप्त हैं। संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है।
5. विविध शक्तियाँ - राज्य सभा अपनी कुछ शक्तियों का प्रयोग लोकसभा के साथ करती है ऐसी शक्तियाँ निम्न प्रकार हैं -
- राष्ट्रपति का चुनाव,
- राष्ट्रपति द्वारा जारी की गयी आपातकाल की उद्घोषणा का अनुमोदन,
- राष्ट्रपति तथा उच्च एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों पर महाभियोग,
- राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गये अध्यादेशों का अनुमोदन,
- उपराष्ट्रपति का चुनाव,
- उपराष्ट्रपति की पदमुक्ति।
6. राज्य सभा की विशिष्ट शक्तियाँ - राज्य सभा को दो ऐसी शक्तियाँ प्राप्त हैं जो लोकसभा को प्राप्त नहीं हैं। ये निम्नवत् हैं
- संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्य सभा, उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों के 2/3 बहमत से प्रस्ताव पारित कर राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे, तो संसद को ऐसे विषय पर संपूर्ण भारत के लिए अथवा क्षेत्र विशेष के लिए विधि बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
- संविधान के अनुच्छेद 312 के अनुसार, राज्य सभा अपने 2/3 बहुमत से किसी नई अखिल भारतीय सेवा का सृजन कर सकती है। अखिल भारतीय सेवा से आशय ऐसी सेवा से है जो संघ एवं राज्य दोनों के लिए हो।
आलोचनात्मक टिप्पणी - राज्य सभा के उपरोक्त कार्य एवं शक्तियों के आधार पर कहा जा सकता है कि राज्य सभा द्वितीय सदन नहीं अपितु द्वितीय श्रेणी का सदन है। शक्ति संपन्नता की दृष्टि से विद्वानों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि राज्य सभा संसार का निर्बलतम द्वितीय सदन है। वित्तीय मामलों में यह नितान्त शक्तिहीन है और साधारण विधेयक में भी यह मात्र थोडा विलम्ब कर सकती है। आलोचकों का मानना है कि यदि राज्य सभा को समाप्त कर दिया जाये तो हमारे दैनिक संसदीय कार्यों में कोई अन्तर नहीं आयेगा तथा राज्य सभा द्विसदनात्मक संसद के आधुनिक फैशन की पूर्ति मात्र है।
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