बीता हुआ समय कभी नहीं लौटता हिंदी निबंध : संसार में कुछ बातें ऐसी भी हैं, जिन पर बड़े से बड़े, समर्थ से समर्थ व्यक्ति का भी कोई वश नहीं चलता। चाह कर भी कोई कुछ नहीं कर सकता। एकदम लाचार और असमर्थ होकर लौट जाया करता है। यदि सब बातों पर आदमी का वश चल पाता, तो राजा महाराजा और बड़े-बड़े धनवान आदमी कभी भी मरना तो क्या बूढ़े तक ना हो पाते। अपनी इच्छा अनुसार वह लोग किशोर या जवान बने रहते। परंतु ऐसा कोई भी नहीं कर सकता। मैं अगर चाहूं कि 3-4 साल की उम्र में पहुंच जाऊं, जब मैं बिना किसी चिंता के सिर्फ खाया पिया, खेला और सोया करता था, मेरी शरारतों को बच्चा कह कर टाल दिया जाता था, नुकसान करने पर भी मुझे कुछ ना कह सिर्फ प्यार से समझा दिया जाता था, नहीं, उस आयु में आज चाह कर भी मैं नहीं पहुंच सकता।
बीता हुआ समय कभी नहीं लौटता हिंदी निबंध
आज मनुष्य ने ज्ञान विज्ञान के सभी क्षेत्रों में बहुत उन्नति कर ली है। जीवन को सुखी और उन्नत बनाने वाले नए-नए आविष्कार कर लिए हैं और नित्यप्रति और आविष्कार करता जा रहा है। भयानक बीमारियों को ठीक करने के लिए नई नई जीवनदायक औषधियां खोजनी है। धरती, आकाश, पाताल, पानी, हवा, आग आदि हर चीज पर अपना अधिकार जमा लिया है। हर चीज मनुष्य के इशारे पर नाचने लगी है, और उसका कहना मान कर चलने को विवश है, पर समय ? नहीं, उस पर आदमी का आज भी कोई वश नहीं है। यदि ऐसा हो पाता तो महंगाई के और मुसीबतों भरे युग को यहीं छोड़ कर हम लोग फिर से उसी सुख समृद्धि भरे युग में पहुंच जाते, जिसे इतिहास में स्वर्ण युग कहा जाता है।
आज बच्चों-बूढ़ों को दूध तक नसीब नहीं हो पाता, यदि समय को वापस ला पाते तो हम उस युग को फिर से धरती पर ले आते जब यहां दूध की नदियां बहती थी। कहीं किसी भी वस्तु का अभाव नहीं था। यदि समय लौट पता तो इस सारी भारत भूमि को फिर से बृज भूमि बना दिया जाता। फिर से कृष्ण की मधुर मुरली गूंजती, जिसे सुनकर सभी सुखचैन और प्रेम भाव में मग्न होकर आनंद मनाते। लेकिन नहीं, आज हम इन सब बातों को केवल पुस्तकों में पढ़ सकते हैं। सबके सुखचैन भरे जीवन की मात्र कल्पना कर सकते हैं, पर चाह कर भी उस समय में लौट नहीं सकते। यही वह समय है, जिसे वापस नहीं लाया जा सकता।
सच तो यह है कि अगर बीता हुआ समय लौट पाता तो मानव आलसी बन कर आज भी किसी पत्थर युग में पड़ा रहकर प्रकृति के हर प्रकोप को सामान्य पशु के समान सहन कर रहा होता। मानव ने जो इतनी प्रगति करके विकास किया है, वह कभी भी ना कर पाता। जीवन में कुछ भी नयापन नहीं आ पाता। सभी कुछ बासी और सड़ा-गला ही होता। समय को हम पानी की बहती धारा कह सकते हैं। जैसे बहता हुआ पानी ही स्वच्छ और प्राण दायक रह पाता है, उसी प्रकार अनवरत बीत रहा समय ही मनुष्य जीवन में नवीनता, स्वच्छता और उच्च प्रगतिशीलता का संचार करता है। पानी की धारा अगर रुक जाए तो पहले वह सड़-गलकर दुर्गंधित हो जाती है, फिर धीरे-धीरे सूखकर नदी को मात्र बेकार के गड्ढों में परिवर्तित कर दिया करती है। ठीक यही गति दशा समय के रुक या ठहर जाने से, या फिर बीता समय लौट आने से निरंतर प्रगतिशील मानव जीवन और समाज की भी होती है।
रुका हुआ समय अर्थात जीवन अपने पुरानेपन और रूढ़िवादिता के कारण पहले सड़-गल अर्थात तरह-तरह की कुरीतियों का शिकार हो जाता है। फिर उस जीवन रूपी धारा में प्रगतिरुपी विकास का नया जल संचार तथा प्रवाहित ना होने पर धारा के समान ही जीवनरुपी समाज भी नष्ट होकर खंडहर बन कर रह जाता है। जिन्हें देखकर लोग कल्पना किया करते और कहा करते हैं कि कभी यहां नदी बहा करती थी। या फिर कभी यहां कोई बस्ती थी। उसमें जीवन जल हमेशा प्रवाहित रहा करता था पर अब सब समाप्त हो चुका है। अतः प्रवाह या गतिशीलता को ही जीवन मानकर समय की धारा को भरसक आगे बढ़ाने की चेष्ठा करनी चाहिए। जो बीत चुका है, उसे लौट आने की सोच और चेष्टा समय शक्ति और साधन का दुरुपयोग ही है।
आज बच्चों-बूढ़ों को दूध तक नसीब नहीं हो पाता, यदि समय को वापस ला पाते तो हम उस युग को फिर से धरती पर ले आते जब यहां दूध की नदियां बहती थी। कहीं किसी भी वस्तु का अभाव नहीं था। यदि समय लौट पता तो इस सारी भारत भूमि को फिर से बृज भूमि बना दिया जाता। फिर से कृष्ण की मधुर मुरली गूंजती, जिसे सुनकर सभी सुखचैन और प्रेम भाव में मग्न होकर आनंद मनाते। लेकिन नहीं, आज हम इन सब बातों को केवल पुस्तकों में पढ़ सकते हैं। सबके सुखचैन भरे जीवन की मात्र कल्पना कर सकते हैं, पर चाह कर भी उस समय में लौट नहीं सकते। यही वह समय है, जिसे वापस नहीं लाया जा सकता।
सच तो यह है कि अगर बीता हुआ समय लौट पाता तो मानव आलसी बन कर आज भी किसी पत्थर युग में पड़ा रहकर प्रकृति के हर प्रकोप को सामान्य पशु के समान सहन कर रहा होता। मानव ने जो इतनी प्रगति करके विकास किया है, वह कभी भी ना कर पाता। जीवन में कुछ भी नयापन नहीं आ पाता। सभी कुछ बासी और सड़ा-गला ही होता। समय को हम पानी की बहती धारा कह सकते हैं। जैसे बहता हुआ पानी ही स्वच्छ और प्राण दायक रह पाता है, उसी प्रकार अनवरत बीत रहा समय ही मनुष्य जीवन में नवीनता, स्वच्छता और उच्च प्रगतिशीलता का संचार करता है। पानी की धारा अगर रुक जाए तो पहले वह सड़-गलकर दुर्गंधित हो जाती है, फिर धीरे-धीरे सूखकर नदी को मात्र बेकार के गड्ढों में परिवर्तित कर दिया करती है। ठीक यही गति दशा समय के रुक या ठहर जाने से, या फिर बीता समय लौट आने से निरंतर प्रगतिशील मानव जीवन और समाज की भी होती है।
रुका हुआ समय अर्थात जीवन अपने पुरानेपन और रूढ़िवादिता के कारण पहले सड़-गल अर्थात तरह-तरह की कुरीतियों का शिकार हो जाता है। फिर उस जीवन रूपी धारा में प्रगतिरुपी विकास का नया जल संचार तथा प्रवाहित ना होने पर धारा के समान ही जीवनरुपी समाज भी नष्ट होकर खंडहर बन कर रह जाता है। जिन्हें देखकर लोग कल्पना किया करते और कहा करते हैं कि कभी यहां नदी बहा करती थी। या फिर कभी यहां कोई बस्ती थी। उसमें जीवन जल हमेशा प्रवाहित रहा करता था पर अब सब समाप्त हो चुका है। अतः प्रवाह या गतिशीलता को ही जीवन मानकर समय की धारा को भरसक आगे बढ़ाने की चेष्ठा करनी चाहिए। जो बीत चुका है, उसे लौट आने की सोच और चेष्टा समय शक्ति और साधन का दुरुपयोग ही है।
Nice...... it helped me a lot
ReplyDeleteजानकार ख़ुशी हुई.
DeleteI didn't get the desired answer as I was expecting from you people I was saying that samay bahumulya bita avsar hath nahin aata mujhe is per anuchchhed chahie na ki nibandh OKK
ReplyDeleteBakwas
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