स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज) का जीवन परिचय - Swami Shraddhanand in Hindi : स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज) का जन्म २ फरवरी सन् 1856 ईसवी को पंजाब प्रान्त के जालन्धर जिले के तलवान ग्राम में एक खत्री परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक़ नाम मुंशीराम विज था। उनकी युवावस्था बड़े एशो-आराम और विलासिता में गुजरी। उनके पिता,श्री नानकचन्द एक पुलिस अधिकारी थे। मुंशीराम जी के पिता का तबादला अलग-अलग स्थानों पर होता रहता था, जिस कारण मुंशीराम की आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार से नहीं हो सकी।
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज) का जीवन परिचय - Swami Shraddhanand in Hindi
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज) का जन्म २ फरवरी सन् 1856 ईसवी (फाल्गुन कृष्ण त्र्योदशी, विक्रम संवत् १९१३) को पंजाब प्रान्त के जालन्धर जिले के तलवान ग्राम में एक खत्री परिवार में हुआ था। स्वामी श्रद्धानन्द भारत के शिक्षाविद, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी थे। रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने सबसे पहले उन्हे महात्मा की उपाधि से विभूषित किया।
जीवन परिचय
उनका वास्तविक़ नाम मुंशीराम विज था। उनकी युवावस्था बड़े एशो-आराम और विलासिता में गुजरी। उनके पिता,श्री नानकचन्द एक पुलिस अधिकारी थे। मुंशीराम जी के पिता का तबादला अलग-अलग स्थानों पर होता रहता था, जिस कारण मुंशीराम की आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार से नहीं हो सकी। वे एक सफल वकील बने तथा काफी नाम और प्रसिद्धि प्राप्त की। उनका विवाह श्रीमती शिवा देवी के साथ हुआ था। वह नास्तिक थे, लेकिन स्वामी दयानंद से मुलाकत ने उन्हें आस्तिक और देशभक्त बना दिया। उन्हें दिल्ली का दिल और हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता था। वह पहले हिंदू थे, जिन्होंने दिल्ली के लोगों में राष्ट्रभक्ति की भावना जामामस्जिद के अहाते से जगाई। एक वही थे, जिन्होंने चांदनी चौक के जुलूस में वायसराय के बंदूकधारी सैनिकों को सामने अपनी छाती खोल दी।
गुरुकुल कांगड़ी संस्थान की स्थापना
स्वामी श्रद्धानंद ने देश के आध्यात्मिक विकास पर अपने कार्यों के अमिट निशान छोड़े हैं। वर्ष 1901 में उन्होंने शिक्षा के प्रसार के दृष्टिकोण से गुरुकुल कांगड़ी संस्थान की स्थापना की। महिलाओं की शिक्षा की प्रसार में सहायता की और इसके साथ ही हिंदी भाषा की छवि सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उपलब्धि
उन्होंने 1889 में सद्धर्म प्रचारक, 1918 में श्रद्धा, 1919 में विजय और 1924 में अर्जुन का संपादन किया और इसके द्वारा आम जनता में राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार किया। 1913 के हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बने। वह एक समाज सुधारक और अध्यात्मिक देशभक्त भी माने जाते हैं।
मृत्यु
23 दिसम्बर, 1926 को चांदनी चौक, दिल्ली में गोली मारकर हत्या कर दी गयी। श्रद्धानंद के कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने भारत को आध्यात्मिक, राष्ट्रीय और नैतिक कर्तव्यों के लिये नई जागरूकता दी।
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