दोस्तों आज हमने देशाटन पर निबंध लिखा है। यह निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 और 12 के लिए उपयुक्त है। Here you will find Essays a...
दोस्तों आज हमने देशाटन पर निबंध लिखा है। यह निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 और 12 के लिए उपयुक्त है। Here you will find Essays and Paragraph on Deshatan in Hindi language for students.
देशाटन पर निबंध - Essay on Deshatan in Hindi
दोस्तों देशाटन का अर्थ होता है देशों का भ्रमण करना। देशाटन पर लिखे इस निबंध में हम जानेंगे कि देशाटन की परिभाषा क्या है तथा देशाटन करने से हमें क्या क्या लाभ प्राप्त होते हैं। इस लेख में देशाटन पर कई सारे छोटे बड़े निबंध दिए गए हैं। छात्र अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें चुन सकते हैं।
देशाटन पर निबंध (150 Words)
देशाटन दो शब्दों से मिलकर बना है देश और अटन। अटन का अर्थ है घूमना। अतः देशाटन का अर्थ हुआ देशों में घूमना। देशाटन से वह ज्ञान मिलता है, जो अध्ययन करने से नहीं मिल सकता। देशाटन करने से मनुष्य एक दूसरे से संपर्क स्थापित करता है तथा वहां की सभ्यता और संस्कृति से अपना परिचय स्थापित करता है।
जो मनुष्य देशाटन नहीं करते, उनका ज्ञान अधूरा रहता है। स्वर्गीय महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने देशाटन के विषय में अत्यधिक साहित्य का सृजन किया है। उन्होंने "अथातो ब्रह्म जिज्ञासा" इस वेदांत सूत्र के समान "अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा" इत्यादि रूप से सूत्रों का प्रणयन किया है। देशाटन द्वारा लोगों का एक दूसरे पर धार्मिक सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव भी पड़ता है
आदि गुरु शंकराचार्य ने भी चार पीठों की स्थापना करके देशाटन के महत्व पर पूर्ण प्रकाश डाला है। यदि भगवान शंकराचार्य देश में चारों और घूमते नहीं तो किस प्रकार वे देश में चार पीठों की स्थापना करते। अतः यह सिद्ध होता है कि शंकराचार्य जी जैसे महापुरुष भी देशाटन का महत्व ह्रदय से अंगीकार करते थे, हृदय से अंगीकार करते थे।
देशाटन पर निबंध (600 Words)
प्रस्तावना : मनुष्य एक सामाजिक जीवन है। वह मकान में बंद होकर नहीं रह सकता। अकेलेपन की कैद उसके लिए सबसे बड़ी सजा समझी जाती है। साधारण मनुष्य यह जानना चाहता है कि और देशों के लोग किस प्रकार रहते हैं और उनके रीति-रिवाज, शिक्षा-पद्धतियां और शासन विधियां किस प्रकार की हैं। वह अपने ज्ञान को व्यापक बनाना चाहता है। मनुष्य में देश विदेश में जाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। इस प्रवृत्ति को पूरी करने के लिए उसे नाना प्रकार के यान और वाहन बनाए हैं। देशाटन का अर्थ केवल विदेश यात्रा ही नहीं है, अपितु अपने देश के भिन्न-भिन्न स्थानों में जाना भी देशाटन कहलाता है। अब तो भारतवर्ष में विदेश जाने का चाव भी बहुत बढ़ गया है क्योंकि अब समुद्र यात्रा के विरुद्ध सामाजिक-धार्मिक बंधन पहले जैसे नहीं रहे। अब मनुष्य के लिए कोई देश अगम्य नहीं है। उसके संबंधों का बहुत विस्तार हो गया है। उन संबंधों के कारण देशाटन बड़ी आसान हो गया है। देशाटन से मनुष्य को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य संबंधी अनेक प्रकार के लाभ होते हैं।
देशाटन से शिक्षा में लाभ : देशाटन शिक्षा का एक प्रमुख अंग माना गया है। देशाटन के बिना शिक्षा को अपूर्ण समझना चाहिए। किसी पदार्थ के विषय में बीसियों पुस्तकें पढ़ लेने से भी उतना लाभ नहीं होता, जितना एक भ्रमण कर लेने से होता है। ताजमहल का वर्णन चाहे कितनी ही बार क्यों ना पढ़ लिया जाए, पर उसकी बनावट का ठीक-ठाक ज्ञान उसे देखने से ही किया जा सकता है। भूगोल का वास्तविक ज्ञान तो देशाटन द्वारा ही प्राप्त होता है। देशाटन द्वारा हम दूसरे देशों की राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाओं से ठीक तरह परिचित हो सकते हैं। देशाटन का शिक्षा संबंधी बहुत महत्व है।
देशाटन से व्यापारिक लाभ : देशाटन से दूसरे देशों के बाजारों का पता चलता है। हम अपने देश का माल वहां बेच सकते हैं और वहां बनने वाली वस्तुएं अपने देश में लाकर व्यापार कर सकते हैं। देशाटन के आदी होने के कारण पश्चिम देशवासी आज संसार भर के व्यापार के कर्ताधर्ता बने हुए हैं। देशाटन की बदौलत ही यूरोप निवासियों को अमेरिका और भारतवर्ष का पता चला था। देशाटन द्वारा हम दूसरे देशों के कला-कौशल से परिचय प्राप्त कर सकते हैं और उस ज्ञान के द्वारा अपने यहां के कला-कौशल में उन्नति कर सकते हैं।
देशाटन से स्वास्थ्य लाभ : देशाटन से स्वास्थ्य पर भी बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। जब हम अपने स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान में जाते हैं तब हमारी चिंताएं कुछ कम हो जाती हैं और हमारा कार्य कुछ हल्का हो जाता है। उसका हमारे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। एक स्थान पर रहते-रहते हमारा जी ऊबने लगता है। दूसरी जगह जाने से हमको आनंददायक विभिन्नता दिखाई पड़ती है और उससे हमारे चित्त को प्रसन्नता मिलती है। दूसरे देशों और प्रांतों में जाकर जलवायु परिवर्तन का भी हमारे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। प्रायः डॉक्टर लोग समुद्र तट की जलवायु सेवन का परामर्श देते हैं। कभी-कभी वे अपने मरीजों को पहाड़ पर भेज देते हैं। जो लोग देशाटन कर सकते हैं, वे हमेशा अधिक गर्मी, बरसात और सर्दी के कुप्रभाव से अपने को बचाए रखते हैं।
निष्कर्ष : देशाटन से मनुष्य भिन्न-भिन्न स्थानों की प्राकृतिक दृश्यों भली-भांति निरीक्षण कर सकता है। भारत में कश्मीर आदि ऐसे सुरम्य प्रदेश हैं जो पृथ्वी के स्वर्ग कहे जा सकते हैं। नदियों के जल प्रपात, हिमालय पर्वत की चोटियां और सघन वनस्थली किसका मन नहीं लेती? देशाटन से प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनों प्रकार की शोभा देखने को मिलती है। बड़ी-बड़ी गगनचुंबी इमारतें, स्फटिक के सामान स्वच्छ सड़कें, सुंदर बाग-बगीचे, बड़ी-बड़ी दुकानें, जगमगाते बाजार और आंखों में चकाचौंध पैदा करने वाली विद्युत प्रकाश किस के मन को आकर्षित नहीं करती? इसलिए कहा गया है-सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां?
देशाटन से लाभ पर निबंध (800 words)
प्रस्तावना : "सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां।" सच कहा है जीवन का आनंद सैर करने में है एक ही स्थान पर रहते रहते मनुष्य का मन ऊब जाता है और वह इधर-उधर घूमना फिरना चाहता है अन्य स्थानों के रहन-सहन रीति-रिवाज आदि से भी वह परिचित होना चाहता है इन्हीं प्रवृत्तियों का फल देशाटन है आजकल विज्ञान की सहायता से देशाटन के लिए बड़े सुगम साधन उपलब्ध हैं पहले यात्रियों को देशाटन में बड़ी कठिनाइयां झेलनी पड़ती थी वह पैदल घोड़े या बैलगाड़ी से यात्रा करते थे मार्ग में उन्हें लुटेरे लूट लेते थे वर्षा ऋतु में नदी नालों के कारण मार्ग बंद हो जाते थे थोड़ी दूर पहुंचने में बहुत समय लगता था धन्य है विज्ञान जिसने रेल मोटर जलयान वायुयान आदि यात्रा के सुगम साधन सुगम साधन जुटाए हैं इनसे देशाटन में बहुत आराम हो गया है
देशाटन से लाभ : प्रत्येक मनुष्य को देशाटन का प्रेमी होना चाहिए इससे अनेक लाभ हैं।
ज्ञान वृद्धि : देशाटन ज्ञान वृद्धि का बड़ा अच्छा साधन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि किसी वस्तु का ठीक और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए यह नितांत आवश्यक है कि उसे स्वयं देखा जाए। यद्यपि पुस्तकें विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान कराती हैं तो भी उन्हें प्रत्यक्ष देखे बिना उनकी पूर्ण जानकारी नहीं प्राप्त की जा सकती। जैसे कश्मीर का वर्णन पढ़कर कश्मीर का वैसा ज्ञान नहीं हो सकता जैसा उसे साक्षात देखकर होता है। भौगोलिक ज्ञान के लिए तो देश-विदेश भ्रमण अनिवार्य है। किसी देश की जलवायु, स्थिति, पैदावार आदि का समुचित ज्ञान उस देश में घूमने-फिरने से ही हो सकता है। इसके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न भू-भागो के निवासियों की रहन-सहन, रीति-रिवाज, राजनैतिक परिस्थिति, आर्थिक व्यवस्था, धार्मिक दशा आदि का ठीक-ठीक परिचय भी देशाटन द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। देशाटन अनुभवों की खान है। जो व्यक्ति देशाटन करता रहता है उसे अनेक प्रकार के अनुभव को जाते हैं। सांसारिक दांवपेच वह भलीभांति जान लेता है। किस प्रकार के व्यक्ति से कैसा व्यवहार करना है तथा किस प्रकार की परिस्थिति में कैसा काम करना है, इसका उसे अच्छा ज्ञान हो जाता है। स्वावलंबन की भावना प्राप्त करने के लिए देशाटन बहुत आवश्यक है।
मनोरंजन : देशाटन से मनोरंजन भी होता है। अनेक प्रकार की वस्तुएं देखने को मिलती हैं। कहीं अजायबघर देखने को मिलता है तो कहीं सुंदर भवन। कहीं कोई नया पशु देखने को मिलता है तो कहीं कोई नया पक्षी। कहीं मनोरम झील की छटा दिखाई पड़ती है तो कहीं मनोहर सरोवर की शोभा। कहीं समुद्र का भव्य रूप देखा जाता है तो कहीं नदी की चांदी सी उज्जवल धारा। कहीं हंसती हुई प्रकृति मन हर को जाती है। कहीं गगनचुंबी इमारतें मन को प्रसन्न करती हैं। कहीं स्वच्छता देख कर बहुत हर्ष होता है तो कहीं ग्रामीणों का सरल जीवन बड़ा अच्छा लगता है। कहीं नागरिकों की सजावट मन को आकृष्ट करती है।
स्वास्थ्य लाभ : देशाटन से स्वास्थ्य लाभ भी होता है। मनोरंजन और स्वास्थ्य का घनिष्ठ संबंध है। डॉक्टरों का मत है, यदि कोई मनुष्य सदैव प्रसन्न रहें तो उसे कभी कोई रोग नहीं हो सकता। वह सर्वदा स्वस्थ रहेगा। देशाटन से मनोरंजन होता है, इसलिए देशाटन करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ता है। मनोरंजन के अतिरिक्त कई स्थानों की जलवायु स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाती है। पर्वतीय प्रदेशों में भ्रमण करके किसका स्वास्थ्य नहीं सुधर जाता? यह देखा जाता है कि निर्बल और रोगी मनुष्य कुछ दिन पहाड़ों पर जाकर टिकते हैं तो स्वस्थ हो जाते हैं। देशाटन से कुछ समय के लिए गृहस्थी की चिंताओं से भी छुटकारा मिल जाता है। इसका भी तंदुरुस्ती पर असर पड़ता है।
उन्नति : उन्नति के लिए देशाटन बड़ी आवश्यक वस्तु है। हम भिन्न-भिन्न देशों की यात्रा करके अपनी सामाजिक राजनैतिक और औद्योगिक उन्नति कर सकते हैं। दूसरे देशों की अच्छी समाज व्यवस्था का अध्ययन करके अपने देश में उसकी अवधारणा कर सकते हैं और कुरीतियों का अंत कर सकते हैं। अन्य देशों की राजव्यवस्था देखकर अपनी राजनीतिक दशा को सुधार सकते हैं। देशाटन द्वारा ही दूसरे स्थानों के कला-कौशल का ज्ञान प्राप्त करके अपने देश में उससे औद्योगिक उन्नति कर सकते हैं। आजकल जिस देश के निवासी देशाटन प्रिय हैं, वह अपने देश को दिन-प्रतिदिन उन्नत बना रहे हैं। पश्चिम वाले देशाटन के कारण संसार भर का व्यापार अपने हाथों में साधे हुए हैं। अंग्रेजों ने देशाटन द्वारा कितनी उन्नति कर ली है।
उपसंहार : हमारे देश के लोगों में देशाटन का प्रेम कम है। कारण यह है कि यहां प्राचीन काल में समुद्र पार की यात्रा धर्म की दृष्टि से बुरी समझी जाती थी। जो मनुष्य विलायत चला जाता था, उसका जाति से बहिष्कार हो जाता था। इस प्रकार की धार्मिक बाधा के कारण यहां के निवासियों में देशाटन की प्रवृत्ति का अभाव था। पर खुशी का विषय यह है कि अब यह धार्मिक बाधा दूर हो गई है और कुछ लोग इधर-उधर भ्रमण करने लगे हैं। भारतीय जनता की दरिद्रता भी देशाटन प्रेम में बाधक है। हे भगवान! क्या कभी हमारे देश की दरिद्रता दूर होगी और देशाटन द्वारा हमारा देश उन्नति करेगा?
देशाटन पर निबंध (800 words)
भिन्न-भिन्न देशों में भ्रमण के लिए की जाने वाली यात्रा या पर्यटन देशाटन है। विभिन्न देशों के महत्वपूर्ण स्थल देखने तथा मन बहलाने के लिए वहां के विस्तृत भू-भाग में किया जाने वाला भ्रमण देशाटन है।
मनुष्य में जिज्ञासा की भावना बड़ी प्रबल होती है। वह अपने आस-पड़ोस, नगर, राष्ट्र, विश्व के बारे में जानना चाहता है। यही जिज्ञासा उसे पर्यटन या देशाटन करने को विवश करती है। विभिन्न जीवन पद्धतियों के अध्ययन से, नए-नए प्रकार के प्राकृतिक दृश्यों को देखने से, विभिन्न राष्ट्रों के विकास साधनों एवं वैज्ञानिक उन्नति के पथ से मानव को आनंद, उत्साह तथा ज्ञान प्राप्त होता है।
पुस्तकें आनंद उत्साह और ज्ञान वर्धन का साधन है, किंतु पुस्तक के अध्ययन से किसी देश का परिचय प्राप्त करने और उसके साक्षात्कार दर्शन में अंतर होता है। महान घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन का कथन है, “जिस तरह फोटो देखकर आप हिमालय के देवदार के गहन वनों और सोए तुम श्वेत बर्फ की चादर से ढके शिखरों के सौंदर्य तथा उसके रूप का अनुभव नहीं कर सकते, उसी तरह यात्रा-कथाओं से आपको उस सौंदर्य से भेंट नहीं हो सकती, जो कि एक घुमक्कड़ अर्थात देशाटन को प्राप्त होता है।”
संसार एक रहस्य है। इसका जीवन रहस्यमय है। देशाटन दुस्साहसियों ने उस रहस्य को चीरने का प्रयास किया है। जिससे विश्व बंधुत्व का मार्ग प्रशस्त हुआ है। कोलंबस की घुमक्कड़ी ने अमेरिका का पता लगाया। वास्कोडिगामा का भारत से परिचय हुआ। ह्वेनसांग, फाहियान आदि चीनी यात्री भारत में बौद्ध-धर्म ग्रंथों की खोज में आए। पुर्तगाली, डच, फ्रांसीसी और अंग्रेजों ने भारत में व्यापार का आरंभ किया। भारतीय घुमक्कड़ो ने लंका, बर्मा, मलाया, कंबोज, बोर्निया और सैलीबीज ही नहीं, फिलीपींस तक का पता लगाया।
धर्म और संस्कृति के प्रचार और प्रसार कर देशाटन को ही जाता है। कबीर महात्मा बुद्ध, महावीर जैन जीवन भर घुमक्कड़ रहे। आदि गुरु शंकराचार्य ने तो भारत के चारों कोनों का भ्रमण किया और चार मठों की स्थापना की। वास्कोडिगामा के भारत पहुंचने से बहुत पहले शंकराचार्य के शिष्य मास्को और यूरोप में पहुंच चुके थे। गुरु नानक ने ईरान और अरब तक धावा बोला। स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ तथा उनके शिष्यों ने विश्व में वेदांत का झंडा गदा। महर्षि दयानंद और उनके शिष्यों ने विश्व में वेदों की ध्वजा लहराई।
मनुष्य स्थावर वृक्ष नहीं है, जंगम प्राणी है। चलना उसका धर्म है। ‘जब तक जीवन है चलते जाओ’ उसका नारा है।
सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां?
इस्माइल मेरठी के यह शब्द देशाटन के प्रेरणा स्रोत है। विभिन्न देशवासियों की प्रकृति प्रवृत्ति के परिणाम विशिष्ट विषय के अध्ययन ऐतिहासिक भौगोलिक साहित्यिक तथा वैज्ञानिक गवेषणा प्राकृतिक दृश्यों के अवलोकन धर्म तथा संस्कृति के प्रचार राष्ट्रीय मेलों तथा सम्मेलनों में एकत्र होना तीर्थाटन व्यापार वृद्धि राजकार्य पंच मांगी कूटनीतिक तथा गुप्तचर कार्य सर्वेक्षण आयोग तथा शिष्टमंडल जीविकोपार्जन आखेट मनोरंजन स्वास्थ्य सुधार पर राज्य में आश्रय आज के देशाटन के प्रायोजन हैं
घर से ही बाहर कदम रखते ही कष्टों का श्रीगणेश हो जाता है, फिर देशाटन तो महा कष्टप्रद है। थका देने वाली यात्रा, प्रतिकूल आहार-व्यवहार, विश्राम की विकृत व्यवस्था; भाषा ना समझ पाने की विवशता; परंपरा और सभ्यता के मापदंड की अनभिज्ञता; ठग और लुटेरों का भय, विपरीत प्रकृति-प्रवृत्ति वाले अथवा दुष्ट लोगों का साथ तथा अत्यधिक आर्थिक बोझ देशाटन में बाधक हैं। राहुल सांकृत्यायन कहते हैं कि, “घुमक्कड़ी में कष्ट भी होते हैं, लेकिन उसे उसी तरह समझिए जैसे भोजन में मिर्च।”
देशाटन से अनुभव का विकास होता है। विभिन्न राष्ट्रों स्थानों की भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति का ज्ञान होता है। व्यापारिक स्पर्धा और उन्नत होने के भाव बलवान होते हैं। सहिष्णुता की शक्ति बढ़ती है। विभिन्न प्रकृति के मनुष्यों से संपर्क होने के कारण मानव-मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्धि होती है। नए लोगों के मेल मिलाप से मित्रता की सीमा बढ़ती है। प्रकृति से सहचार्य बढ़ता है, लोगों के बातचीत करने का ढंग पता चलता है। व्यवहार कुशलता में वृद्धि होती है। कष्ट सहने की आदत हो जाती है। मनोरंजन भी होता है। जीवन में सफलता का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
देशाटन द्वारा ज्ञान प्राप्ति के साथ साथ हमें सरस और रुचिपूर्ण मनोरंजन भी प्राप्त होता है। विभिन्न स्थानों, वनों, पहाड़ों, नदी-तालाबों और सागर की विशाल तरंगों का अवलोकन कर पर्यटक का मन झूम उठता है। पर्यटन हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। जलवायु परिवर्तन से चित्तमें सरसता और उत्साह का संचार होता है, जिससे हम प्रसन्न मनः स्थिति में रहते हैं। जो हमारे स्वास्थ्य की अनिवार्य शर्त है। देशाटन के दौरान हमें अनेक सुविधाओं और कष्टों का सामना भी करना पड़ता है। इन्हें सहन करके तथा इनका समाधान ढूंढ लेने पर हमें अद्भुत खुशी का अनुभव होता है।
देशाटन विश्व-बंधुत्व की भावना की भी वृद्धि करता है। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया” की मंगलमय भावना विश्व में शांति सुख सौंदर्य और श्रीवृद्धि की जनक है। कष्टों, विपत्तियों, प्राकृतिक विपदा और भावनाओं तथा विनाश प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने का प्रयास है। विश्व को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला ज्योति कुंज है।
देशाटन पर निबंध (1300 Words)
भूमिका : प्रत्येक मनुष्य में दूसरे व्यक्तियों तथा स्थानों के प्रति सहज उत्सुकता होती है। इस उत्सुकता की पूर्ति के लिए मनुष्य विभिन्न देशों की यात्रा करता है। इन यात्राओं के अनेक लक्ष्य हुआ करते हैं। कुछ लोग व्यापारिक कार्यों के सिलसिले में दूसरे देशों में जाते हैं और अपना कार्य कर के चले आते हैं। कुछ लोग धर्म प्रचार के लिए जाते हैं और अपना कार्य करते हैं। कुछ लोग राजनीतिक दृष्टिकोण से यात्रा करते हैं। इस प्रकार यात्रा के अनेक कारण हैं, उनमें देशाटन भी एक है। आज के वैज्ञानिक और अर्थवादी युग में देशाटन का अपना एक विशेष महत्व है।
देशाटन अथवा पर्यटन का रूप : देशाटन का अर्थ विभिन्न स्थानों में घूमना होता है। देशाटन के लिए लोग अपना समय निर्धारित कर लेते हैं और इतने समय में अधिक से अधिक स्थानों में जाते हैं। तथा उन स्थानों की प्रसिद्ध वस्तुएं तथा प्रसिद्ध इमारतें देखते हैं। फिर दो-चार दिन एक नगर में रहकर दूसरे नगर को प्रस्थान कर देते हैं। वहां दो-चार दिन रह कर पुनः तीसरे नगर की राह पकड़ते हैं साथ ही साथ हर स्थान की विशेष बातों को भी लिखते जाते हैं। इस प्रकार नियत समय और व्यय में देशाटन का कार्यक्रम पूरा करके लौट आते हैं। देशाटन का ही धार्मिक रूप तीर्थ यात्रा है। भारतवर्ष में तीर्थ यात्रा का अत्यधिक महत्व है। उसमें धार्मिक विश्वास की अधिकता के कारण अन्य बातें न्यून रहती हैं। तीर्थयात्री भगवान का दर्शन तथा कुछ समय तक तीर्थवास करके संतुष्ट हो जाता है। उसमें देशाटन की भावना वर्तमान अर्थ में नहीं रहती।
देशाटन की आवश्यकता : मनुष्य को विभिन्न स्थानों के लोगों के रहन-सहन का ज्ञान प्राप्त करने के लिए देशाटन की आवश्यकता होती है ,भिन्न-भिन्न स्थानों में गए बिना वहां के लोगों के विषय में ज्ञान नहीं प्राप्त हो पाता ,दूसरी आवश्यकता है अपने मन की उदासीनता तथा एकरसता को दूर करने के लिए। एक ही स्थान में निरंतर पड़े रहने के कारण मनुष्य का मन उदास सा हो जाता है। अतः मन बहलाने के लिए देशाटन करना आवश्यक होता है। विभिन्न प्रकार के दृश्यों के दर्शनार्थ भी देशाटन आवश्यक होता है। इससे विभिन्न प्रकार के लोगों से संपर्क होता है, जिससे मनुष्य के हृदय में विशालता आती है तथा उसका दृष्टिकोण व्यापक बनता है। देशाटन से मनुष्य के हृदय में सहयोग और सहानुभूति के गुण आते हैं। यह ऐसा कार्य है जिससे मनुष्य के ज्ञान का विकास होता है। भूगोल, इतिहास आदि सामाजिक तथा व्यावसायिक ज्ञान में वृद्धि होती है। देशाटन में जब मनुष्य घर के बाहर जाता है तो उसमें स्वावलंबन की भावना आती है। अतः देशाटन मनुष्य के लिए आवश्यक है।
देशाटन के साधन : देशाटन के लिए उचित साधनों और सुविधाओं की आवश्यकता होती है। प्राचीन काल में जब आवागमन के साधनों का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाया था, तब लोगों को देशाटन में बड़ी असुविधा होती थी। वर्तमान युग में आवागमन के साधनों का विकास हो गया है। अतः देशाटन सरल और सुविधा पूर्ण बन गया है। अब मार्ग की बाधाएं और समय का अपव्यय कम होता है। आजकल स्थान-स्थान पर धर्मशालाएं और विश्राम स्थलों की व्यवस्था है, जहां आदमी कुछ समय तक सरलतापूर्वक रह सकता है। यही कारण है कि आजकल देशाटन करने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है। लोग देश-विदेश में जाते हैं और अनेक प्रकार के लाभ उठाते हैं। वर्तमान युग में रेलवे, मोटर, बसें, वायुयान आदि यातायात के अनेक साधन उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा देशाटन सरल बनाया जा सकता है। पशुओं द्वारा तथा पैदल यात्रा की आवश्यकता अब नहीं रह गई है। आजकल देशाटन भी धन के ऊपर निर्भर हो गया है। यदि आपके पास धन है तो आप सरलता पूर्वक जहां चाहे जा सकते हैं। किंतु इन साधनों का प्रयोग करने से देशाटन का लक्ष्य आंशिक रूप में ही पूरा हो पाता है।
देशाटन से लाभ : यह ऐसा कार्य है, जिससे समाज के सभी वर्ग के लोगों को लाभ होता है। यह जिन देशों में जाते हैं, वहां की प्रगति रहन-सहन, रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपरा आदि विषयों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। इससे उनकी रचनाओं में देश-काल का यथार्थ वर्णन होता है। प्राचीन काल में भी कवि और विद्वान देशाटन करते थे। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में प्रकृति तथा देश-काल का यथार्थ चित्रण दिखाई देता है। महाकवि देव ने यदि पूरे भारत का देशाटन ना किया होता तो जाति-विलास जैसी रचनाएं वे न कर पाते।
गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास, केशवदास आदि सभी कवियों की रचनाएं उनके देशाटन का प्रमाण देती है। बाणभट्ट, भवभूति आदि कवियों ने यदि भ्रमण ना किया होता तो उनकी रचनाओं में कितने विभिन्न और स्वाभाविक वर्णन नहीं मिल पाते। अंग्रेजी के कवि जॉन कीट्स, शैली मिल्टन, शेक्सपियर आदि इन सभी ने देशाटन किया था। उनकी रचनाओं पर इसका प्रभाव भी स्पष्ट है। वर्तमान युग में तो इसका और महत्व बढ़ गया है। विश्व विख्यात कवि रवींद्रनाथ टैगोर, पंत जी तथा अन्य अनेक कवियों ने देश-विदेश की यात्राएं की हैं और अपने ज्ञान और भावना की भूमि को व्यापक बनाया है। सर राधाकृष्णन, पंडित जवाहरलाल नेहरू आदि महापुरुषों ने देशाटन से पर्याप्त लाभ उठाया है। हाल में ही श्री नरेंद्र मोदी रूस तथा अन्य देशों की यात्रा पर गए थे। सरकार देश के विभिन्न ख्याति प्राप्त कलाकारों तथा संस्था के सदस्यों को देशाटन के लिए आए दिन भेजा करती है। अतः बुद्धिजीवियों वर्ग के लिए देशाटन लाभप्रद है।
देशाटन से व्यापार में लाभ : व्यवसायी वर्ग को देशाटन से आर्थिक लाभ अधिक होता है। एक व्यवसायी जब विभिन्न देशों में जाता है तो वह इस बात ध्यान में रखता है कि इस देश में किस वस्तु की अधिक खपत है तथा किस माल की अधिकता है। इस प्रकार वह अपना सारा हिसाब-किताब बैठा लेता है और उसके आधार पर व्यापार का सिलसिला शुरू करता है और समयानुसार वैभवशाली बन जाता है। यही कारण है कि व्यापारी देश-विदेश की यात्राएं करते हैं और अपना व्यवसाय बढ़ाते रहते हैं।
देशाटन से शासन में लाभ : शासक वर्ग को भी देशाटन से अनेक लाभ होते हैं। जब विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था देखते हैं तब उनसे बहुत कुछ सीखते हैं और अपने देश में उस ज्ञान द्वारा उपयोगी कार्य करते हैं। देशाटन द्वारा वह अपने मित्रों की संख्या में वृद्धि करते हैं। दूसरे देशों से मित्रता करते हैं। अपनी नीति को अधिक सफल बनाने का कार्य करते हैं। उन्हें विभिन्न राष्ट्रों की रणनीति तथा युद्ध अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार से राष्ट्र नायकों का देशाटन कम महत्वपूर्ण नहीं होता। यही कारण है कि देश-विदेश के राजनीतिज्ञ देशाटन करते हैं। महान नेताओं के देशाटन से अन्य देशों के साथ मैत्री का सूत्र दृढ़ बनता है।
देशाटन से कृषि में लाभ : कृषकों के लिए भी देशाटन आवश्यक है। वह भी देशाटन के ज्ञान से अपनी कृषि में सुधार करके अपनी स्थिति सुधारने का प्रयत्न कर सकते हैं। उनके इस सुधार कार्य में उनका देशाटन जनित ज्ञान उपयोगी सिद्ध होता है। इसी प्रकार धर्म-प्रचारक देशाटन द्वारा अपने धर्म का प्रचार करते हैं तथा उनका कार्य जनकल्याण के लिए होता है। इस प्रकार समाज के हर वर्ग के लिए देशाटन लाभकारी है।
उपसंहार : भारतवर्ष और विशेषकर हिंदू समाज एक ऐसा समाज है, जिसमें जीवन के लिए उपयोगी सभी बातों को धार्मिक दृष्टिकोण प्रदान किया गया है। भारतीय ऋषियों और मनीषियों ने धर्म को जीवन के विभिन्न अंगों से संबंधित कर दिया है। प्रयाग, हरिद्वार, रामेश्वर, जगन्नाथपुरी, उज्जैन का धाम, काशी और गंगा सागर आदि सभी तीर्थों में पर्वों पर मेले का विधान किया गया है। लोग यहां आकर मन के अनुकूल फल प्राप्त करते हैं। कोई धर्म भावना की प्राप्ति करता है, तो कोई अर्थ कमाता है। कोई आनंद प्राप्त करता है, तो कोई मोक्ष साधना में लीन रहता है। भारतीय पद्धति में देशाटन अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष सभी फलों का दाता है। परमेश्वर की सौंदर्य सृष्टि में अनेक विचित्रतायें हैं और इसका ज्ञान देशाटन द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। अतः देशाटन जीवन का धर्म है। इसके बिना जीवन की सर्वांगीण उन्नति संभव नहीं है।
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