भारतीय एकता के सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध

भारतीय एकता के सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध! भारतीय जनता के हृदय सम्राट सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्‍म 31 अक्‍टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ। वल्‍लभभाई पटेल ने स्‍वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री के रूप में कुशल प्रशासक तथा दक्ष रणनीतिकार की ख्‍याति अर्जित की। किन्‍तु उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्‍धि 565 देसी रियासतों का भारतीय संघ में विलय मानी जाती है। स्‍वतंत्रता पश्‍चात बनी अंतरिम सरकार में नेहरू जी प्रधानमंत्री और वल्‍लभभाई पटेल जी उप प्रधानमंत्री बने। कहा जाता है कि पहले से ही यह चर्चा चल पड़ी थी कि नेहरू और वल्‍लभभाई पटेल में से ही कोई एक प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभालेगा। गांधी जी की इच्‍छा के अनुरूप सरकार में नेहरू को प्रथम और पटेल को द्वितीय स्‍थान मिला

भारतीय एकता के सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध

देश के स्‍वतंत्रता आंदोलन के एक सुदृढ़ स्‍तंभ और भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के अग्रणी नेता वल्‍लभभाई पटेल ने स्‍वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री के रूप में कुशल प्रशासक तथा दक्ष रणनीतिकार की ख्‍याति अर्जित की। किन्‍तु उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्‍धि 565 देसी रियासतों का भारतीय संघ में विलय मानी जाती है। देश के राजनीतिक इतिहास में पटेल के अविस्‍मरणीय योगदान का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्‍हें जवाहर लाल नेहरू के साथ महत्‍मा गांधी का दायां व बायां हाथ माना जाता था। स्‍वतंत्रता पश्‍चात बनी अंतरिम सरकार में नेहरू जी प्रधानमंत्री और वल्‍लभभाई पटेल जी उप प्रधानमंत्री बने। कहा जाता है कि पहले से ही यह चर्चा चल पड़ी थी कि नेहरू और वल्‍लभभाई पटेल में से ही कोई एक प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभालेगा। गांधी जी की इच्‍छा के अनुरूप सरकार में नेहरू को प्रथम और पटेल को द्वितीय स्‍थान मिला। कुछ इतिहासकार आज तक यह कहते हैं कि यदि उस समय पटेल का प्रधानमंत्री मिलता तो देश की राजनीतिक एव आर्थिक दशा-दिशा भिन्‍न होती। यह बात अलग है कि स्‍वतंत्रता के लगभग 3 वर्ष बाद ही 15 दिसम्‍बर 1950 को 75 वर्षकी आयु में उनका निधन हो गया। किन्‍तु स्‍वतंत्रता आंदोलन में अपनी अग्रणी भूमिका के पश्‍चात तीन वर्षो के छोटेसे कालखंड में ही अपनी व्‍यावहारिक एवं सकारात्‍मक सोच तथा दृढ़ व्‍यक्‍तित्‍व के कारण ‘लौहपुरूष’ का खिताब अर्जित किया। इससे पहले बारदौली आंदोलन का सफल नेतृत्‍व करने पर उन्‍हें ‘सरदार’ की उपाधि से नवाजा गया था। इस तरह उन्‍हें भारतीय एकता के सूत्रधार लौह पुरुष सरदार पटेल के रूप में याद किया जाता है।

भारतीय जनता के हृदय सम्राट सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्‍म 31 अक्‍टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ। वे बचपन से ही बहुत स्‍वाभिमानी तथा दृढ़ स्‍वभाव के थे। वे छोटी उम्र में हीपरिवार से अलग रहने लगे किन्‍तु उनका अपने परिवार के साथ सुदृढ़ रिश्‍ता जीवन भर कायम रहा। उन्‍होंने 22 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी इच्‍छा कुछ धन जमा करके इंग्‍लैंड में वकालत की पढ़ाई करने की थी। इसलिए उन्‍होंने भारत में कानून की डिग्री हासिल की और गोधरा में वकालत करने लगे। अपनी पत्‍नी झाबरबा, बेटी मणिबेन तथा बेटे डाहियाभाई पटेल के भरण-पोषण का फर्ज निभाते हुए वे उच्‍च शिक्षा के लिए धन भी जमा करते रहे। अपना संकल्‍प पूरा करने के लिए वे 1911 में 36 वर्ष की आयु में लंदन गए तथा वहां ‘मिडल टेंपल इन’ में वकालत की शिक्षा के लिए प्रवेश लिया। उनकी योग्‍यता तथा सुदृढ़ इच्‍छा शक्‍ति का ही परिणाम था कि उन्‍होंने 36 महीने का पाठ्यक्रम 30 महीने में पूरा कर लिया और अपनी कक्षा में प्रथम स्‍थान प्राप्‍त किया। इंग्‍लैंड से लौटकर वे अहमदाबाद में रहने लगे। यही नगरी उनके राजनीतिक जीवन की जन्‍मस्‍थली और कर्मस्‍थली बनी। यों तो सन् 1917 से ही वे वकीलों और किसानों के हितों से जुड़े सार्वजनिक कार्यों में रुचि लेने लगे थे, किन्‍तु स्‍वतंत्रता आंदोलन में उनका प्रवेश गांधी जी की प्रेरणा से उस समय हुआ जब उन्‍होंने खेड़ा के किसान आंदोलन का नेतृत्‍व संभाला। यह आंदोलन गांधी जी के नेतृत्‍व में चल रहा था, किन्‍तु उन्‍हें उसी समय चंपारण के किसानों के संघर्ष का साथ देने के लिए जाना पड़ा। तब उन्‍होंने वल्‍लभभाई पटेल को इस काम के लिए चुना। पटेल ने कांग्रेस के अन्‍य नेताओं के साथ खेड़ा के किसानों को करों की अदायगीन न करने तैयार किया और अंतत: उनकी बहुत-सी मांगें मान ली गईं। इस आंदोलन की सफलता के बाद वे गांधी जी के और निकट आ गए तथा कांग्रेस में सक्रिय हो गए। 1920 में वे नवगठित गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष बनाए गए। 1922 से 1927 के बीच वे तीन बार अहमदाबाद नगरपालिका के अध्‍यक्ष चुने गए।   

खेड़ा में ग्रामवासियो को सगठितकरने का उनका अनुभव 1928 में बारदौली सत्‍याग्रह में काम आया जब उन्‍होंने अहमदाबाद नगरपालिका की जिम्‍मेदारी से मुक्‍त होकर पूरी तरह से स्‍वतंत्रता आंदोलन के प्रति स्‍वयं को समर्पित कर दिया। पटेल ने चार म‍हीनो तक अनवरत रूप से किसानों को कर का भुगतान करने के लिए तैयार किया और आंदोलन के लिए जनता से धन भी एकत्र किया। अगस्‍त 1928 में सरकार बातचीत के लिए तैयार हो गई और पटेल ने वार्ता के कुशल संचालन के माध्‍यम से किसानों के कल्‍याण के अनेक उपायों पर ब्रिटिश शासकों को राजी कर लिया। इसी सत्‍याग्रह के दौरान उन्‍हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली। 1931 में नमक सत्‍याग्रह में उन्‍होंने आगे बढ़कर भाग लिया। उन्‍हें रास गांव में गिरफ्तार कर लिया गया। पटेल तथा बाद में गांधी जी की गिरफ्तारी के फलस्‍वरूप नमक आंदोलन और तेज होता गया। 1931 में पटेल कराची अधिवेशन में कांग्रेस के अध्‍यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने बुनियादी मानव अधिकारों की रक्षा, धर्म निरपेक्ष, स्‍वरूप, न्‍यूनतम वेतन तथा अस्‍पृश्‍यता के उन्‍मूलन जैसे मूल्‍यों को स्‍वतंत्रता आंदोलन का अंग बनाने के प्रस्‍ताव स्‍वीकार किये। लंदन गोलमेज सम्‍मेलन असफल रहने पर जनवरी 1932 में गांधी जी और पटेल को जेल में डाल दिया गया। जेल में पटेल और गांधीजी विभिन्‍न विषयों पर चर्चा करते रहते थे जिससे दोनों के बीच वैचारिक तथा व्‍यावहारिक निकटता और सुदृढ़ हो गई। 1934 तक पटेल कांग्रेस में अग्रणी नेताओं की पंक्‍ति में आ गए और वे पार्टी गतिविधियों के लिए धन जुटाने वाले प्रमुख नेता बन कर उभरे। 1934 में केन्‍द्रीय एसेंबली और 1936 में प्रादेशिक एसेंबलियों के चुनाव के सयम वे कांग्रेस के संसदीय बोर्ड के अध्‍यक्ष रहे और उम्‍मीदवारों के चयन में उनकी बड़ी भूमिका रही।

1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन का दौर आते-आते सरदार पटेल नेहरू, आजाद तथा राजगोपालाचारी के साथ कांग्रेस के सर्वोच्‍च नेताओं की श्रेणी में शामिल हो चुके थे। इन सभी ने गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन’ का समर्थन किया। 7 अगस्‍त को मुम्‍बई के ऐतिहासिक गोवियो चौक में आयोजित एक लाख से अधिक लोगों की विशाल जनसभा को पटेल ने भी सम्‍बोधित किया। 9 अगस्‍त को उन्‍हें कांग्रेस के अन्‍य बड़े नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और 1945 तक वे अहमद नगर के किले में कैद रहे। 15 जून 1945 को वे रिहा किए गए। 1946 में कांग्रेस अध्‍यक्ष के चुनाव में पटेल ने गांधी जी के आग्रह पर अपना वापस ले लिया। यह चुनाव इस दृष्‍टि से महत्‍वपूर्ण था कि कांग्रेस का अध्‍यक्ष ही स्‍वतंत्र भारत की पहली सरकार का नेतृत्‍व संभालेगा।

कैबिनेट मिशन के देश के विभाजन के प्रस्‍ताव पर कांग्रेस में गहरे मतभेद थे। गहन विचार-विमर्श के बाद नेहरू तथा पटेल दोनों विभाजन पर सहमत हो गए। विभाजन के समय संपत्तियों तथा स्‍थानों के बंटवारे पर विचार करने के लिए बनी भारत विभाजन समिति में पटेल ने भारत का प्रतिनिधित्‍व किया। इसी समिति में नेहरू जी के साथ मिलकर उन्‍होंने भारत के भावी मंत्रिमंडल के नाम तय किए। विभाजन के फैसले के बाद हुए साम्‍प्रदायिक दंगों तथा जनसंख्‍या के आदान-प्रदान से अप्रत्‍याशित संकट पैदा हो गया। विस्‍थापितों के पुनर्वास, कानून व्‍यवस्‍था कायम करने तथा शांति बनाए रखने के लिए पाकिस्‍तान के नेताओं के साथ बातचीत करने में पटेल ने प्रमुख भूमिका निभाई। राजनीतिक तथा प्रशासनिक सूझबूझ का परिचय देते हुए सरदार पटेल ने शांति कायम करने के लिए सेना की दक्षिण भारतीय टुकडि़यों को तैनात किया ताकि निष्‍पक्षता से काम किया जा सके। उन्‍होंने दिल्‍ली में मुसलमानों के मन में सुरक्षा का भाव जगाने के लिए निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर जाकर प्रार्थना की तथा वहां मौजूद हजारों मुसलमानों को सुरक्षा का आश्‍वासन दिया।

आजादी के समय विभाजन की विभीषिका के साथ एक और विकट समस्‍या भी देश को विरासत में मिली। यह भी देसी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करना। गृहमंत्री होने के नाते यह कठिन चुनौती भी पटेल के कंधों पर आई। गांधीजी की पटेल से कहा – रियासतों की समस्‍या इतनी कठिन है कि इसे केवल तुम ही हल कर सकते हो। उन्‍होंने विभाजन के मामलों पर विचार के दौरान अपने सहयोगी रहे अधिकारी वी.पी. मेनन को अपने साथ लेकर 6 मई 1947 को रियासतों के एकीकरण का अभियान प्रारंभ किया। रियासतों के शासकों से मान-मनौवल और समझाने-बुझाने के फलस्‍वरूप जम्‍मू-कश्‍मीर जूनागढ़ तथा हैदराबाद को पुलिस कार्रवाई के बल पर भारत में शामिल कर लिया और कश्‍मीर के महाराजा हरिसिंह को मनाकर कुछ शर्तों के साथ कश्‍मीर को भी भारत में मिला लिया। किन्‍तु जम्‍मू-कश्‍मीर पर पाकिस्‍तान की ओर से कबाईली हमला हो जान से रियासत के कुछ हिस्‍सों पर पाकिस्‍तान का कब्‍जा हो गया। और इसने अन्‍तर्राष्‍ट्रीय विवाद रूप ग्रहण कर लिया। कश्‍मीर का मुद्दा आज तक भारत और पाकिस्‍तान के बीच तनाव का मुख्‍य कारण बना हुआ है। रियासतों के एकीकरण के कठिन व चुनौतीपूर्ण कार्य सम्‍पन्‍न करने के लिए सरदार पटेल की तुलना जर्मनी में ऐसा ही काम करने वाले नेता बिस्‍मार्क से की गई और उन्‍हें ‘भारत का बिस्‍मार्क’ कहा गया। संविधान सभा के सदस्‍य के रूप में भी पटेल ने उपयोगी भूमिका निभाई। डॉ. भीमराव अम्‍बेडकर को संविधान निर्माण समितिका अध्‍यक्ष बनाने में भी पटेल की भूमिका थी। पटेल स्‍वयं संविधान सभा की अल्‍पसंख्‍यकों, जनजातीय और उपेक्षित क्षेत्र, मौलिक अधिकार तथा प्रांतीय संविधान पर विचार करने वाली समितियों के अध्‍यक्ष थे।

गृह मंत्री के रूप में पटेलको शरणार्थियोंके पुनर्वास, पाकिस्‍तान की ओर से कश्‍मीर पर आक्रमण तथा साम्‍प्रदायिक सौहार्द कायम करने जैसी चुनौतियां का सामना करना पड़ा। अखिल भारतीय सेवाओं की व्‍यवस्‍था शुरू करनेका श्रेय भी सरदार पटेल को जाता है। इस नाते उन्‍हें ‘भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के संरक्षक संत के रूप में याद किया जाता है। यह व्‍यवस्‍था राष्‍ट्रीय एकता तथा अखंडता बनाए रखने में कारगर सिद्ध हुई है। आजादी के बाद असम, त्रिपुरा तथा पश्‍चिम बंगाल में पूर्वी पाकिस्‍तान के हिंदुओं के प्रवेश की भी समस्‍या पैदा हो गई। इसे भी पटेल ने पाकिस्‍तान के साथ बातचीत तथा सुरक्षा व्‍यवस्‍था कड़ी करके हल करने का प्रयास किया। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्‍या ने पटेल को अंदर से झकझोर दिया। उन्‍होंने तत्‍काल राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक पर प्रतिबंध लगाया तथा साम्‍प्रदायिक तनाव पर काबू पाने की दिशा में उपयुक्‍त उपाए किए। गांधी जी के हत्‍यारों पर मुकदमा चलाने तथा उन्‍हें सजा दिलाने में भी उनके गृह मंत्रालय ने तत्‍परता से कार्य किया। इस दौरान कुछ विषयों पर नेहरू तथा पटेल में मतभेद की खबरें भी आने लगीं। कुछ तत्‍वों ने आरोप लगाया कि पटेल का गृह मंत्रालय गांधी जी की जान बचाने में विफल रहा है। इस पर पटेल ने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया। किन्‍तु नेहरू ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया और पटेल के साथ किसी भी तरह के मतभेद से इंकार किया। नेहरू ने पटेल को व्‍यक्‍तिगत पत्र लिखकर उनकी योग्‍यता, प्रशासनिक कौशल तथा सत्‍यनिष्‍ठा की प्रशंसा की। उन दिनों यह अफवाह फैली कि पटेल स्‍वयं प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। पटेलने सार्वजनिक बयान जारी करके ऐसी अफवाहों का खंडन किया और नेहरू जी के नेतृत्‍व पूर्ण विश्‍वास व्‍यक्‍ति किया। यह सच है कि पटेल ने राजेन्‍द्र प्रसाद को राष्‍ट्रपति बनाने जैसे कई मामलों में नेहरू की इच्‍छा का खुलकर विरोध किया। 1948 में गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर के पुनरूद्धार के प्रश्‍न पर भी दोनों नेताओं के बीच असहमति सामने आई किंतु पटेल अपनी बात पर अडिग रहे। बाद में नेहरू को उनका प्रस्‍ताव स्‍वीकार करना पड़ा।

1950 में सरदार पटेल का तबियत खराब रहने लगी। उन्‍होंने बैठकों में भाग लेना कम कर दिया और घर पर डाक्‍टरों का दल उनकी देख भाल के लिए तैनात रहने लगा। 2 नवम्‍बर को उनकी तबियत एकदम बिगड़ गई और उनी चेतना लुप्‍त हो गई। 12 दिसम्‍बर को इलाज के लिए उन्‍हें मुम्‍बई ले जाया गया। 15 दिसम्‍बर को उन्‍हें दिल का दौरा पड़ा और वे सदा के लिए इस संसार से विदा हो गए।

सरदार पटेल का पूरा जीवन जन कल्‍याण तथा देश सेवा को समर्पित रहा। यही कारण है कि उनके नाम पर देश भर में अनेक संस्‍थाएं चल रही हैं और अनेक स्‍थानों पर उनकी प्रतिमाएं स्‍थापित की गई। गुजरात में ‘स्‍टेच्‍यू ऑफ यूनिटी’ का निर्माण हुआ जो विश्‍व में सबसे ऊंची प्रतिमाओं में शामिल है। पटेल देश के पहले सूचना और प्रसारण मंत्री भी थे। उनकी याद में आकाशवाणी की ओर से हर वर्ष सरदार पटेल व्‍याख्‍यान का आयोजन होता है जिसमें किसी ज्‍वलंत राष्‍ट्रीय मुद्दे पर किसी विद्वान व्‍यक्‍ति का व्‍याख्‍यान होता है। भारत की एकता के सूत्रधार और लौह पुरूष सरदार पटेल हमेशा लोगों के हृदयों में रहेंगे।
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HindiVyakran: भारतीय एकता के सूत्रधार सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध
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