भारत-चीन संबंध पर निबन्ध। Essay on Indo China Relatioship in Hindi

भारत-चीन संबंध पर निबन्ध। Essay on Indo China Relatioship in Hindi! सन 1950 में, 29 एशियाई राष्टों का बाडङ्ग सम्मेलन विश्व में शांति स्थापना की भावना से हुआ था। इसमें एशिया के सभी देशों ने सहर्ष भाग लिया और सभी ने नहेरू जी के पंचशील के सिद्धान्त को स्वीकार किया था। भारतवर्ष और जनवादी चीन इन सिद्धान्तों के नियामक थे। इसके पश्चात चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन लाई भारत आए और भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्वर्गीय पंडित नेहरू चीन गए। दोनों प्रधानमन्त्रियों को दोनों देशों की जनता ने हृदय खोलकर स्वागत किया। ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई' के गगन भेदी नारों से आकाश गूंज उठा, परन्तु भारत ने शत्रु को मित्र समझने की भूल की। दूसरी भूल तब की जबकि उसने तिब्बत पर चीन का अधिकार स्वीकार किया। जब चीन और भारत के मैत्री के सम्बन्ध बनाये जा रहे थे, तभी चीन चुपके चुपके अमृत में विष मिलाता जा रहा था और सैनिक हमारी सीमाओं पर एकत्रित होते जा रहे थे।

भारत-चीन संबंध पर निबन्ध। Essay on Indo China Relatioship in Hindi

सन 1950 में, 29 एशियाई राष्टों का बाडङ्ग सम्मेलन विश्व में शांति स्थापना की भावना से हुआ था। इसमें एशिया के सभी देशों ने सहर्ष भाग लिया और सभी ने नहेरू जी के पंचशील के सिद्धान्त को स्वीकार किया था। भारतवर्ष और जनवादी चीन इन सिद्धान्तों के नियामक थे। इसके पश्चात चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन लाई भारत आए और भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री  स्वर्गीय पंडित नेहरू चीन गए। दोनों प्रधानमन्त्रियों को दोनों देशों की जनता ने हृदय खोलकर स्वागत किया। ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई' के गगन भेदी नारों से आकाश गूंज उठा, परन्तु भारत ने शत्रु को मित्र समझने की भूल की। दूसरी भूल तब की जबकि उसने तिब्बत पर चीन का अधिकार स्वीकार किया। जब चीन और भारत के मैत्री के सम्बन्ध बनाये जा रहे थे, तभी चीन चुपके चुपके अमृत में विष मिलाता जा रहा था और सैनिक हमारी सीमाओं पर एकत्रित होते जा रहे थे।

शनैः शनै: चीन ने समस्त तिब्बत पर अधिकार कर लिया। दलाई लामा ने भारत में आकर अपनी प्राणरक्षा की। हृदय से तो चीन भारत का शत्रु था ही, परन्तु अब उसे भारत के साथ अपनी शत्रुता प्रदर्शित करने का और भी बहाना मिल गया। चीन ने भारतवर्ष की उत्तरी-पूर्वी सीमा नेफा प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया, फिर कुछ समय पश्चात् लद्दाख प्रदेश में आक्रमण हुए और वह भी चीनियों के अधिकार में हो गया। इस प्रकार, भारत की 12000 वर्ग मील की भूमि चीन के अधिकार में चली गई। भारतवर्ष शांतिपूर्ण ढंग से सीमा समस्या को सुलझाने का प्रयत्न करता रहा। भारत ने मैकमोहन लाइन को अपनी सीमा घोषित किया, मानचित्र छपवाकर चीन को दिखाये गये, परन्तु उसने एक बात भी स्वीकार नहीं की।

1960 के अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के पूना अधिवेशन में उत्तरी सीमा की संकटकालीन स्थिति के सम्बन्ध में काँग्रेस सभापति श्री संजीव रेड्डी ने कहा था, "उत्तर से हमारे देश पर आक्रमण हुआ है, शत्रुओं ने हमारे देश की 12000 मील भूमि दबा रखी है यह हमारे देश की विषम समस्या है और हमें इसका सामना करना है। परन्तु इसके ठीक विपरीत, भारत के तत्कालीन रक्षामन्त्री श्री कृष्णामेनन ने संयुक्त राज्य अमेरिका में चीन के सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त करते हुए कहा था, "चीन का विषय अधिकार के लिए युद्ध नहीं है। जहाँ देश की एक ही समय में देश के दो उत्तरदायी व्यक्तियों के भिन्न-भिन्न विचार हों, वहाँ समस्या और भी भयंकर बन जाती है। शिखर सम्मेलन की असफलता ने इस समसया को और भी भयंकर बना दिया। चीन ने रूस के कान में यह स्पष्ट बैठा दिया कि रूस का यदि कोई सच्चा मित्र है तो वह चीन ही है।

20 जून सन 1960 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने भी किसी विशेष उद्देश्य से दो सप्ताह की रूस की यात्रा की थी, परन्तु इससे भी कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। 

चीन की समस्या को सुलझाने में बड़े-बड़े विचारशील पुरुष व्यस्त हैं, परन्तु कोई मार्ग ही दृष्टिगोचर नहीं होता। भारतवर्ष न युद्ध करना चाहता और वह न भविष्य में चाहेगा ही। वह इस ग्रन्थि को शांतिपूर्ण ढंग से ही सुलझाना चाहता है, परन्तु यह सम्भव तभी हो सकता है जब चीन भी यह चाहे। क्योंकि एक हाथ से कभी ताली नहीं बज सकती। उसमें दोनों हाथों का सहयोग आवश्यक है।

चीन की नीति एक विशेष प्रकार की है। वह दूसरों को मूर्ख बनाकर अपनी स्वार्थ-सिद्धि करना चाहता है। माओत्से तुंग ने एक बार कहा था कि यदि बिना युद्ध के सौ विजय प्राप्त हो जायें तो कितना उत्तम है। युद्ध से-तो सभी विजय प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु बिना युद्ध के विजय मिल जाना एक विशेषता होती है। यह विशेषता चीन में है। केवल कोरिया में ही चीन को सैनिक जुआ खेलना पड़ा था, उसमें भी अभूतपूर्व विजय प्राप्त हुई थी, वह जानता था कि विश्व का कोई देश इस समय युद्ध के लिये उद्यत नहीं है। इन्डोचीन में उसने गुप्त रूप से वियतनाम को सहायता दी। हो-ची-मिन्ह को विजय प्राप्त करने के लिये घोर युद्ध करना पड़ा परन्तु चीन को बिना युद्ध के ही विजय प्राप्त हो गई। वियतनाम की पश्चिमी दिशा में चीन ने सभी आक्रमण इस नीति से किये। लाओस में गुप्त रूप से सैनिक प्रवेश द्वारा, बर्मा में गुमनाम धमिकयों और लूटमार द्वारा, तिब्बत में आतंक और दमन द्वारा, नेपाल में मित्रता-पूर्ण प्रतिज्ञाओं तथा झूठे अधिकारों द्वारा, भारत से मैत्री सम्बन्ध और गुप्त आक्रमणों द्वारा, सिक्किम और भूटान में दबाव और फुसलाहट के द्वारा ही चीन ने सफलता प्राप्त की। इन चालों में हानि कम थी और लाभ अधिक था। इस प्रकार साम्यवादी चीन ने अपने पड़ोसी देशों के साथ सदैव से ही मैत्री में विश्वासघात किया। जो भी पड़ोसी राष्ट्र चीन की मैत्री में विश्वास रखते हैं और उनके साथ राज्यों की सीमाओं को थोड़ा बहुत चुपचाप दबा लेना, वहाँ की शासन प्रणाली में आन्तरिक भेद भाव उत्पन्न कर देना, वहाँ के निवासियों के नैतिक चरित्र को गिराने का प्रयत्न करना, चीन के बायें हाथ का काम है। यह ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देना चाहता है कि दूसरा देश विवश होकर उसके उपद्रवों में सम्मिलित हो जाये और येन केन प्रकारेण उसे अपना संरक्षक स्वीकार कर ले।

चीन की इस नीति को सभी जानते हैं। आज पैंत्तीस से अधिक वर्षों की स्वतन्त्रता के पश्चात् भी चीनी सरकार चीनवासियों पर पूर्णरूप से विश्वास नहीं करती। न शासन का शासितों पर विश्वास है और न शासितों का शासकों पर। चीन की सरकार जानती है कि अत्याचार, शोषण, अनैतिकता और दमन के आधार पर स्थित साम्राज्य चिरस्थायी नहीं हो सकता। दूसरी बात यह कि वह अपने चारों ओर के देशों में साम्यवादी वातावरण उत्पन्न करना चाहता हैं क्योंकि जब तक उसके निकट राष्टों में साम्यवादी वातावरण उत्पन्न नहीं हो जाता तब तक उसकी स्थिति कदापि सुरक्षित नहीं है। चीन अन्य राष्ट्रों को सदैव संदिग्ध दृष्टि से देखता है क्योंकि अनेक वर्षों तक विदेशियों ने चीन की सम्पत्ति और वैभव को लूटा है, इसलिये वह जानता है कि यही स्थिति फिर आ सकती है।

10 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर सहसा आक्रमण किया, यह आक्रमण 20 नवम्बर 1962 तक चलता रहा। चीनियों के अचानक और कपटपूर्ण आक्रमण से समस्त भारत को भयंकर आघात पहुंचा। हमारे तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने चीनियों को 'बेशर्म दुश्मन' के नाम से संबोधित किया और चीनियों के आक्रमण की कठोरतम शब्दों में निन्दा की। उन्होंने दृढ़ता के साथ घोषणा है कि भारतवासी तब तक चैन से नहीं बैठेगे जब तक शत्रु को अपनी प्यारी मातृभूमि से नहीं खदेड़ देंगे। हम चीनियों से तब तक कोई समझौते की वार्ता नहीं करेंगे, जब तक की चीनी मैकमोहन रेखा के पार नहीं पहुंच जाते। 

हमारे वीर योद्धा बहुत साहस तथा वीरता से मोर्चे पर लड़ रहे थे और समस्त राष्ट्र एकता के सूत्र में बंधकर स्वरक्षा के लिए सन्नद्ध हो गया। देश के कोने-कोने से स्वर्ण और रुपये की वर्षा होने लगी। स्थान-स्थान पर क्रुद्ध जनता के प्रदर्शन होने लगे। युवतियों और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों ने देश के लिए अपनी सेवायें अर्पित की।

सरकार भी दृढ़ता और संकल्प के साथ आक्रमण का सामना करने के लिए कटिबद्ध हो गयीं। हमारे राष्ट्रपति ने देश में आपात्कालीन स्थिति की घोषणा कर दी। सेनायें पूर्ण उत्साह के साथ शत्रु का सामना करने के लिए मोर्च पर बढ़ चलीं। इंगलैंड और अमेरिका ने नवीनतम हथियारों से हमारे योद्धाओं को सुसज्जित करने के लिए सहायता देने का वचन दिया। विश्व के विभिन्न देशों ने भारत के प्रति अपनी सहानुभूति और नैतिक सहायता का प्रदर्शन करते हुए चीनी आक्रमणकारियों की घोर निन्दा की।

सहसा 20 नवम्बर, 1962 को चीन सरकार ने नाटकीय घोषणा की कि चीन ने अपनी सारी सेना को आज मध्य रात्रि से भारत-चीन सीमा पर युद्ध विराम का आदेश दिया है। चीनी सीमान्त सेनाये 1 दिसम्बर, 1962 से सीमा से 20 किलोमीटर हटकर 1959 की स्थिति में आ जायेंगी। इसके बाद चीन ने अपना त्रिसूत्री प्रस्ताव भारत को भेजा जिसे भारत सरकार ने पूर्णतः अमान्य घोषित कर दिया। इसमें चीन की भारतीय प्रदेश को हड़पने की चाल छिपी हुई थी। युद्ध विराम पर भारत ने कई बार स्पष्टीकरण मांगा, परन्तु प्रत्येक बार चीन द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण सन्तोषजनक नहीं था। इसके पश्चात् कोलम्बों राष्ट्रों के प्रस्ताव प्रारम्भ हुए, भारत ने कोलम्बो प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया, परन्तु चीन पूर्णतः अब तक उन्हें मानने को तैयार नहीं हैं।

चीनी आक्रमण से भारत को एक लाभ हुआ। जनता में पार्टियों के रूप में जो आपस के मतभेद जड़ पकड़ते जा रहे थे, वे सब समाप्त हो गये। देश में जिस भावात्मक एकता के लिए सरकार निरन्तर प्रयत्नशील थी, वह स्वयम् ही देश के एक कोने से दूसरे कोने तक हो गई। ऐसा कौन व्यक्ति था, या ऐसी कौन-सी पार्टी थी, जिसने उस भयंकर समय में स्वर्गीय नेहरू के स्वर में स्वर मिलाकर उनके हाथ मजबूत न किये हों। इस प्रकार की जन-जागृति तो युगों से भारत में देखने को नहीं मिली थी। जिनके पास पाँच रुपये थे, वह पाँच रुपये ही दे रहा था, जिसके पास सोने का हार था वह सोने का हार दे रहा था। जिनके पास न रुपया था न सोना था, वह अपनी संतान को ही सेना में भेज रहा था। वास्तव में उस समय बड़ा अभूतपूर्व दृश्य था देश की एकता का कोई भी वर्ग ऐसा नहीं था, जिसने रक्षा कोष में अपनी शक्ति के अनुसार दान न दिया तो साहित्यकारों ने नाटक और गोष्ठियों में धन एकत्रित किया, सिनेमा के कलाकारों ने बम्बई में जुलूस निकालकर धन-संग्रह किया, विद्यार्थियों ने अपने खाने के पैसों को कालेजों में रक्षा कोष में दे दिया। महिलाओं ने अपने प्रिय आभूषण दिये, व्यापारियों ने समस्त लाभांश दिया, संसद और विधानसभा के सदस्यों ने अपने मासिक वेतन छोड़े, अध्यापकों ने प्रतिमास अपने वेतन कटवाये, कहने का तात्पर्य यह है कि शायद ही ऐसा कोई अभागा रहा है, जिसने देश रक्षा के समान यज्ञ में कुछ कुछ आहति न दे दी हो। वास्तव में चीनी आक्रमण भारतीय धैर्य, वीरता, त्याग और बलिदान की परीक्षा थी। अब देश जागृत है सजग है।

इसके पश्चात् भी चीन ने अनेकों भड़काने वाली कार्यवाहियों को और समय-समय पर झूठे विरोध पत्र भारत सरकार को भेजता रहा। पिछली बार जब पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था, तब भी झूठा दोषारोपण करते हुए चीन ने तीन दिन का अल्टीमेटम दिया था। उसके बाद कहा कि हमारी 75 या 80 भेड़ हिन्दुस्तानी उठा ले गये। भारत ने वे भी लौटाई। कभी कहता है कि हमारे सैनिकों पर गोली चलाई। यही चीन का स्वभाव है। पिछले वर्षों से चीन में आन्तरिक गृहकलह का बोलबाला है। माओ त्से-तुंग की विचारधारा को बड़े जोर शोरों से प्रचार किया जा रहा था। लाल रक्षक बना दिये गये थे और लाल किताबें उनके हाथों में दे दी गई थीं। 12 जून, 1967 को एक और षड्यन्त्र रचकर चीन ने भारत को अपमानित करना चाहा। पेकिंग में भारतीय दूतावास के द्वितीय सचिव श्री के० रघुनाथ तथा तृतीय सचिव पी० विजय पर जासूसी का आरोप लगाकर उनका कूटनीति का दर्जा समाप्त कर दिया तथा उन पर मुकदमा भी वहाँ की अदालत में शुरू कर दिया। भारतीय दूतावास को लाल रक्षकों ने घेर लिया, और कई दिनों तक बर्बर व्यवहार किया गया कि सुनने वालों का भी खून खौलता था। इसकी प्रतिक्रिया नई दिल्ली में हुई। भारतीय जनता ने चीनी दूतावास पर भी अपना विरोध प्रकट करने के लिए प्रदर्शन किया। पथराव आदि से सात चीनी घायल हुए। चीनी दूतावास पर भी सरकारी पहरा बैठा दिया गया, कहने का तात्पर्य यह है कि इस बार भारतीय सरकार ने अधिक दृढ़ता से कार्य किया, जैसा-जैसा चीन करता गया भारत भी पीछे-पीछे वैसा ही करता गया। भारतीय परिवारों को लाने के लिए भारतीय हवाई जहाज पर चीन ने पाबन्दी लगाई तो भारत ने भी ऐसा ही किया।

आज भारत की वह स्थिति नहीं जो सन् 1962 में थी। चीनी आक्रमण ने भारत का जो अपकार किया, वो कभी भुलाया नहीं जा सकता। देश में भावात्मक जागृति तो हुई ही, पर इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि देश, रक्षा सम्बन्धी मामलों में अपने पैरों पर खड़ा हुआ। यही कारण कि सन् 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। 29 जून, 1967 को भारत के रक्षामन्त्री ने कहा था-“भारतीय सेना चीन और पाकिस्तान जैसे अविश्वासनीय पड़ोसियों की सांठ-गाँठ के जवाब में पहले से अधिक समर्थ और सतर्क है। हम सशस्त्र हैं और 1967, अब 1962 नहीं है। हम पिछले वर्षों में खाली हाथ नहीं बैठे रहे हैं। देश के गौरव और मर्यादा की रक्षा के लिए हमें और भी शक्ति संग्रह करना होगा, जिससे कोई भी शत्रु इधर आँख उठाकर न देख सके।”

सन् 1971 के मध्य में विश्व के राजनीतिक रंगमंच पर एक दूसरा नाटक खेला गया जो स्वप्न में भी सम्भावित नहीं था। अमेरिका ने, जो सदैव से ही साम्यवाद का कट्टर विरोधी और चीन का कटु आलोचक रहा था, सहसा चीन के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। पहले खिलाड़ियों ' के आवागमन का आदान-प्रदान हुआ, फिर व्यापारिक क्रय-विक्रय का मार्ग प्रशस्त किया गया और उसके पश्चात प्रेसीडेन्ट निक्सन ने चीन कीयात्रा की। विश्व ने इस नाटक को बड़े आश्चर्य से मौन होकर देखा। सन् 1972 में चीन को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य भी बना लिया गया है।

सन 1974 में सिक्किम के प्रश्न पर भारत व चीन के सम्बन्ध तनावपूर्ण हुए। लेकिन सन 1976 में चीन की राजनीति में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। 9 सितम्बर, 1976 ई. को साम्यवादी क्रान्ति के जन्मदाता तथा चीन सरकार के अध्यक्ष एवं सर्वेसर्वा माओत्से तुंग परलोक सिधार गये। माओं की मृत्यु के बाद चीन के उत्तराधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया। एक लंब समय तक यह संघर्ष चलता रहा। अन्त में चीन में उग्रवादियों को पराजय हुई। चीन के नये प्रधानमंत्री ने भारत से मैत्रीपूर्ण नीति अपनायी। 26 जून, 1981 ई. को चीनी मंत्री ह्वांग ने भारत की यात्रा की और 1982 में दो चीनी शिष्ट मण्डल भारत आये। इन सबसे यह आशा की है कि दोनों के सम्बन्धों में और भी निखार आया। 1988 में श्री राजीव गाँधी चीन-यात्रा पर गये और दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध सुधारने में पहल की। प्रधानमन्त्री श्री वी० पी० सिंह भी चीन के साथ अच्छे सम्बन्ध रखने के इच्छुक थे। मई 1990 के अन्तिम सप्ताह में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के उपप्रधानमन्त्री एवं कृषि मन्त्री श्री देवीलाल चीन की सद्भावना यात्रा पर गये थे। उसके परिणामस्वरूप दोनों देश और अधिक निकट आये। 

1961 में भारत के वायु-मण्डल में गूंजी ध्वनि 'हिन्दी-चीनी भाई-भाई'। चीन आक्रमण के बाद ऐसा प्रतीत होता था मानो ये ध्वनि सदैव-सदैव के लिये सो गई हो। लेकिन समय ने फिर करवट बदली, बुरे के बाद अच्छे का आना स्वाभाविक ही था। शनैः शनैः सम्बन्ध सुधरे। 1996 के अन्तिम चरण में चीन के राष्ट्रपति सद्भावना यात्रा पर भारत पधारे। उनका भारत की जनता ने और सरकार ने भावभीना स्वागत कर उनके हृदय को जीत लिया और वही पुरानी ध्वनि हिन्दी-चीनी भाई-भाई आकाश में एक बार फिर गूंज उठी। भविष्य सुनहरा दिखने लगा।

COMMENTS

Name

10 line essay,281,10 Lines in Gujarati,1,Aapka Bunty,3,Aarti Sangrah,3,Aayog,3,Agyeya,4,Akbar Birbal,1,Antar,170,anuched lekhan,54,article,17,asprishyata,1,Bahu ki Vida,1,Bengali Essays,135,Bengali Letters,20,bengali stories,12,best hindi poem,13,Bhagat ki Gat,2,Bhagwati Charan Varma,3,Bhishma Shahni,6,Bhor ka Tara,1,Biography,141,Biology,88,Boodhi Kaki,1,Buddhapath,2,Chandradhar Sharma Guleri,2,charitra chitran,205,chemistry,1,chhand,1,Chief ki Daawat,3,Chini Feriwala,3,chitralekha,6,Chota jadugar,3,Civics,32,Claim Kahani,2,Countries,10,Dairy Lekhan,1,Daroga Amichand,2,Demography,10,deshbhkati poem,3,Dharmaveer Bharti,10,Dharmveer Bharti,1,Diary Lekhan,7,Do Bailon ki Katha,1,Dushyant Kumar,1,Economics,29,education,1,Eidgah Kahani,5,essay,737,Essay on Animals,3,festival poems,4,French Essays,1,funny hindi poem,1,funny hindi story,3,Gaban,12,Geography,44,German essays,1,Godan,8,grammar,19,gujarati,30,Gujarati Nibandh,214,gujarati patra,20,Guliki Banno,3,Gulli Danda Kahani,1,Haar ki Jeet,2,Harishankar Parsai,2,harm,1,hindi grammar,14,hindi motivational story,2,hindi poem for kids,3,hindi poems,54,hindi rhyms,3,hindi short poems,8,hindi stories with moral,15,History,42,Information,890,Jagdish Chandra Mathur,1,Jahirat Lekhan,1,jainendra Kumar,2,jatak story,1,Jayshankar Prasad,6,Jeep par Sawar Illian,3,jivan parichay,147,Kafan,8,Kahani,25,Kamleshwar,8,kannada,98,Kashinath Singh,2,Kathavastu,33,kavita in hindi,41,Kedarnath Agrawal,1,Khoyi Hui Dishayen,3,kriya,1,Kya Pooja Kya Archan Re Kavita,1,long essay,426,Madhur madhur mere deepak jal,1,Mahadevi Varma,7,Mahanagar Ki Maithili,1,Mahashudra,1,Main Haar Gayi,2,Maithilisharan Gupt,1,Majboori Kahani,3,malayalam,139,malayalam essay,112,malayalam letter,10,malayalam speech,36,malayalam words,1,Management,1,Mannu Bhandari,7,Marathi Kathapurti Lekhan,3,Marathi Nibandh,261,Marathi Patra,25,Marathi Samvad,13,marathi vritant lekhan,3,Mohan Rakesh,2,Mohandas Naimishrai,1,Monuments,1,MOTHERS DAY POEM,22,Muhavare,138,Nagarjuna,1,Names,2,Narendra Sharma,1,Nasha Kahani,6,NCERT,27,Neeli Jheel,2,nibandh,742,nursery rhymes,10,odia essay,60,odia letters,86,Panch Parmeshwar,10,panchtantra,26,Parinde Kahani,1,Paryayvachi Shabd,229,patra,236,Physics,2,Poos ki Raat,9,Portuguese Essays,1,pratyay,186,Premchand,65,Punjab,28,Punjabi Essays,72,Punjabi Letters,13,Punjabi Poems,9,Raja Nirbansiya,4,Rajendra yadav,3,Rakh Kahani,2,Ramesh Bakshi,1,Ramvriksh Benipuri,1,Rani Ma ka Chabutra,1,ras,1,Report,5,Roj Kahani,2,Russian Essays,1,Sadgati Kahani,1,samvad lekhan,194,Samvad yojna,1,Samvidhanvad,1,Sandesh Lekhan,3,sangya,1,Sanjeev,2,sanskrit biography,4,Sanskrit Dialogue Writing,5,sanskrit essay,269,sanskrit grammar,157,sanskrit patra,30,Sanskrit Poem,3,sanskrit story,2,Sanskrit words,26,Sara Akash Upanyas,7,Saransh,61,sarvnam,1,Savitri Number 2,2,Shankar Puntambekar,1,Sharad Joshi,3,Sharandata,1,Shatranj Ke Khiladi,1,short essay,66,slogan,3,sociology,8,Solutions,3,spanish essays,1,speech,6,Striling-Pulling,25,Subhadra Kumari Chauhan,1,Subhan Khan,1,Suchana Lekhan,12,Sudarshan,2,Sudha Arora,1,Sukh Kahani,2,suktiparak nibandh,20,Suryakant Tripathi Nirala,1,Swarg aur Prithvi,3,tamil,16,Tasveer Kahani,1,telugu,66,Telugu Stories,65,uddeshya,14,upsarg,67,UPSC Essays,100,Usne Kaha Tha,2,Vinod Rastogi,1,Vipathga,2,visheshan,2,Vrittant Lekhan,1,Wahi ki Wahi Baat,1,Wangchoo,2,words,44,Yahi Sach Hai kahani,2,Yashpal,5,Yoddha Kahani,2,Zaheer Qureshi,1,कहानी लेखन,17,कहानी सारांश,56,तेनालीराम,4,नाटक,51,मेरी माँ,7,लोककथा,15,शिकायती पत्र,1,सूचना लेखन,1,हजारी प्रसाद द्विवेदी जी,9,हिंदी कहानी,110,
ltr
item
HindiVyakran: भारत-चीन संबंध पर निबन्ध। Essay on Indo China Relatioship in Hindi
भारत-चीन संबंध पर निबन्ध। Essay on Indo China Relatioship in Hindi
भारत-चीन संबंध पर निबन्ध। Essay on Indo China Relatioship in Hindi! सन 1950 में, 29 एशियाई राष्टों का बाडङ्ग सम्मेलन विश्व में शांति स्थापना की भावना से हुआ था। इसमें एशिया के सभी देशों ने सहर्ष भाग लिया और सभी ने नहेरू जी के पंचशील के सिद्धान्त को स्वीकार किया था। भारतवर्ष और जनवादी चीन इन सिद्धान्तों के नियामक थे। इसके पश्चात चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन लाई भारत आए और भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्वर्गीय पंडित नेहरू चीन गए। दोनों प्रधानमन्त्रियों को दोनों देशों की जनता ने हृदय खोलकर स्वागत किया। ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई' के गगन भेदी नारों से आकाश गूंज उठा, परन्तु भारत ने शत्रु को मित्र समझने की भूल की। दूसरी भूल तब की जबकि उसने तिब्बत पर चीन का अधिकार स्वीकार किया। जब चीन और भारत के मैत्री के सम्बन्ध बनाये जा रहे थे, तभी चीन चुपके चुपके अमृत में विष मिलाता जा रहा था और सैनिक हमारी सीमाओं पर एकत्रित होते जा रहे थे।
HindiVyakran
https://www.hindivyakran.com/2019/04/essay-on-indo-china-relatioship-in-hindi.html
https://www.hindivyakran.com/
https://www.hindivyakran.com/
https://www.hindivyakran.com/2019/04/essay-on-indo-china-relatioship-in-hindi.html
true
736603553334411621
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content