जैव विविधता के महत्व पर निबंध। Essay on Biodiversity in Hindi : जीवन की विविधता (जैव विविधता) धरती पर मानव के अस्तित्व और स्थायित्व को मजबूती प्रदान करती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (आईडीबी) घोषित किए जाने के बादजूद, यह जरूरी है कि प्रतिदिन जैव विविधता से सम्बद्ध मामलों की समझ और उनके लिए जागरूकता बढ़ाई जाए। समृद्ध जैव विविधता अच्छी सेहत, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास, अजीविका सुरक्षा और जलवायु की परिस्थितियों को सामान्य बनाए रखने का आधार है। विश्व में जैव विविधता का सालाना योगदान लगभग 330 खरब डालर है। हालांकि इस बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा का तेजी से हृास होता जा रहा है।
जैव विविधता के महत्व पर निबंध। Essay on Biodiversity in Hindi
जीवन की विविधता (जैव विविधता) धरती पर मानव के अस्तित्व और स्थायित्व को मजबूती प्रदान करती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (आईडीबी) घोषित किए जाने के बादजूद, यह जरूरी है कि प्रतिदिन जैव विविधता से सम्बद्ध मामलों की समझ और उनके लिए जागरूकता बढ़ाई जाए। समृद्ध जैव विविधता अच्छी सेहत, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास, अजीविका सुरक्षा और जलवायु की परिस्थितियों को सामान्य बनाए रखने का आधार है। विश्व में जैव विविधता का सालाना योगदान लगभग 330 खरब डालर है। हालांकि इस बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा का तेजी से हृास होता जा रहा है।
वर्ष 2012 के अंतर्राष्ट्रीयजैव विविधता दिवस का मूल विषय समुद्रीय जैव विविधता था। तटीय और समुद्रीय जैव विविधता आज दुनिया भर के लाखों लोगों के अस्तित्व बचाए रखने हेतु आधार बनाती है। पृथ्वी की सतह के 71 प्रतिशत हिस्सेपर महासागर हैं और 90 प्रतिशत से ज्यादा रहने योग्य जगह बनाता है। तटीय रेखाएं नाजुक पारिस्थितिकतंत्र प्रणालियों-मैनग्रोव्स, प्रवाल-भित्तियों, समुद्री पादप और समुद्री शैवालों के लिए सहायक हैं। लेकिन इन क्षेत्रों में जीवन की विविधता को कम समझा गया है और उनकी महत्ता कम करके आंकी गई है जिसके परिणामस्वरूप उनका जरूरत से ज्यादा दोहन हुआ है। कुछ समुद्रीय प्रजातियां गायब हो रही हैं और कुछ का अस्तित्व संकट में है। समुद्रीय जैव विविधता की आर्थिक एवं बाजार सम्बंधी सम्भावनाओं को अभी तक भली-भांति समझा नहीं जा सका है, जबकि समुद्रीय विविधता की सम्भावनाएं कई गुणा बढ़ गई हैं। समुद्रीय जीवन से सम्बद्ध उत्पादों और प्रक्रियाओं पर लिए जाने वाले पेटेंट्स की संख्या हर साल तेजी से बढ़ती जा रही है।
भारत में करीब 7,500 किलोमीटर तटीय क्षेत्र है, जिसमें से करीब 5,400 किलोमीटर प्रायद्वीपीय भारत से सम्बद्ध है और बाकि हिस्से में अंडमान, निकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह हैं। कम ऊंचाई वाले तटीय क्षेत्रों में रहने वाली कुल वैश्विक आबादी का करीब 11 प्रतिशत हिस्सा, दुनिया की 0.25 प्रतिशत से भी कम तटीय रेखा वाले भारत में बसता है। तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन मछली पकड़नी है। भारत का तटीय क्षेत्र प्रवाल भित्तियों, मैनग्रोव्स, समुद्रीय पादप/समुद्री शैवालों, खारे पानी वाले निचले दलदली इलाकों, रेत के टीलों, निदयों के मुहानों और लैगून्स से भरपूर है।
भारत में तीनों प्रमुख रीफ्स या समुद्री चट्टनें (एटाल, फ्रिंजिंग और बेरियर) बेहद वैविध्यपूर्ण, विशाल और बहुत कम हलचल वाले समुद्री चट्टानों वाले इलाकों में मिलती हैं। भारत की तटीयरेखा के चारों तरफ चार प्रमुख समुद्री चट्टानों वाले या रीफ क्षेत्र हैं। पश्चिमेत्तर में कच्छ की खाड़ी है, दक्षिण पूर्व में पाल्क और मन्नार की खाड़ी है, पूर्व में अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह हैं तथा पश्चिम में लक्षद्वीप द्वीपसमूह है। मैनग्रोव्स 4827 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले हैं इनमें से पूर्वी तट के साथ 57 प्रतिशत, पश्चिमी तट के साथ 23 प्रतिशत और बाकी के20 प्रतिशत अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के साथ हैं। भारतीय समुद्रों में छह श्रेणियों के साथ समुद्री पादपों की 14 प्रजातियां होने की जानकारी है। उपरोक्त वर्णित सभी पारिस्थितिक तंत्र अनूठे समुद्रीय और जमीन पर रहने वाले वन्यजीवन को आश्रय देती हैं।
प्रवाल भित्तियों की आर्थिक सामर्थ्य करीब 125 करोड़ डालर/हैक्टेयर/वर्ष है। ये आंकड़े अर्थ शास्त्रियों शोध के हैं। सोचिए, हमें स्थानीय लोगों के लिए इस सामर्थ्य के महज 10 प्रतिशत हिस्से के बारे में ही मालूम है।
मानव के बार-बार समुद्रीय और तटीय पारिस्थितिक तंत्र से लाभान्वित होते रहने के बावजूद, हमारी भूमि और महासागर पर आधारित गतिविधियों ने समुद्रीय पारिस्थितिक तंत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा है। तटवर्ती शहरों और उद्योगों द्वारा अंधाधुंधा कचरा बहाने और मछली तथा अन्य समुद्रीय उत्पादों का सीमा से अधिक दोहन प्रमुख चुनौतियां हैं।
लिहाजा तटीय और समुद्रीय पारिस्थितिक तंत्रों पर विपरीत असर डालने वाले जमीनी गतिविधियों को नियंत्रित किए जाने की जरूरत है। इतना ही नहीं, समुद्रीय संसाधन आमतौर पर स्वभाविक रूप से पुन: उत्पन्न हो जाने की क्षमता रखते हैं, इसके बावजूद, उनका दोहन उनकी दोबारा उत्पत्ति की क्षमता के लिहाज से सीमित होना चाहिए। तटीय और समुद्रीय जैव विविधता के संरक्षण और प्रबंधन के लिए समुद्रीय संरक्षित क्षेत्रों/रिजर्व या आरक्षित क्षेत्रों को प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। भारत में बहुत से समुद्रीय संरक्षण क्षेत्र/रिजर्व या आरक्षित क्षेत्र हैं और जिनका विस्तार किए जाने की जरूरत है।
दुनिया भर के पर्यावरण मंत्रियों द्वारा आगामी 'कांफ्रेंस आफ पार्टीज टू द कंवेशन ऑन बायोलाजिकल डाइवर्सिटी' (सीबीडी सीओपी 11 ) की 11वीं बैठक में समुद्रीय और तटीय जैव विविधता पर विशेष और प्रमुख ध्यान दिए जाने की सम्भावना है। इस दौरान सिर्फ समुद्रीय जीवन और तटीय जैव विविधता के संरक्षण के सम्मिलित प्रयासों की पहचान किए जाने की ही सम्भावना नहीं है बल्कि इस प्राकृतिक खजाने की आर्थिक सामर्थ्य पर भी गौर किया जाएगा, जो आजीविका उपलब्ध कराती है, हमें जलवायु परिवर्तन से बचाती है और यह सुनिश्चित करती हैं कि हमारे भोजन एवं पोषण की सुरक्षा यथावत रहे साथ-ही-साथ उचित अंतरालों के साथ बढ़ती रहे।
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