जो शिलाएँ तोड़ते हैं कविता की व्याख्या और उद्देश्य: मेहनत सफलता का मूल आधार है। एक खुशहाल जिंदगी वे ही लोग जी सकते हैं जो परिश्रम करते है। जिस प्रकार
जो शिलाएँ तोड़ते हैं कविता की व्याख्या और उद्देश्य
जो शिलाएँ तोड़ते हैं कविता की व्याख्या
कविता की व्याख्या : मेहनत सफलता का मूल आधार है। एक खुशहाल जिंदगी वे ही लोग जी सकते हैं जो परिश्रम करते है। जिस प्रकार भगीरथ ने घोर तप करके शिव को प्रसन्न किया। तथा उनसे गंगा का वरदान माँग कर पूरी धरती को सुजलाम—सफलाम बनाया। उसी प्रकार हमें भी परिश्रम करके अपना और समाज का जीवन स्तर ऊँचा उठाना पड़ेगा। हर मनुष्य में नवनिर्माण की क्षमता होती है। हम उस क्षमता को पहचान नहीं पाते। 'कर्म' मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे जीवन में लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कर्म ही एकमात्र साधन है। हमें अंदर के सोए हुए गुणों को जगाकर कर्मपथ पर अग्रसर करना पड़ेगा। यही मानव जीवन का श्रेष्ठतम यज्ञ है।
वे लोग अपने चरित्र का निर्माण कर सकते हैं। जो अत्याधिक मेहनत करते हैं। हमारा इतिहास गौरवपूर्ण है। शिवाजी महाराज, गांधी, टिळक, आंबेडकर, महात्मा फुले आदि महापुरुषों ने बहुत ही परिश्रम करके हमारे भारत के इतिहास को एक गरिमा प्रदान की है। इनके दिखाए हुए मार्ग पर हमें चलना होगा।
जिंदगी को वे ही लोग गढ़ेंगे जो अपने आप पर समाज पर और देश पर आए प्रलय को रोकते हैं। जिंदगी का गढ़ने वाले लोग रक्त से रंजित धरती पर शांति का मार्ग खोजते हैं। जिससे समाज में सुराज्य स्थापित हो सकेगा। सब श्रम शक्ति के बिना नहीं हो सकता इसलिए मैं उसे श्रेष्ठ मानता हूँ।
अंत में अग्रवाल जी कहते हैं कि मैं नए युग का, प्रगतिशीलता विचारों से प्रेरित हुआ इंसान हूँ । श्रम और मानवता इन दो सूत्रों पर आधारित समाज के निर्माण में मैं सहयोग दूँगा। इस नई खूबसूरत जिंदगी की जवानी का आनंद उठाऊँगा।
जो शिलाएँ तोड़ते हैं कविता का उद्देश्य
उद्देश्य : किसी एक सफल चरित्र निर्माण के केंद्र में मेहनत होती है। इतिहास गवाह है कि हमारे महापुरुषों ने मेहनत के आधार पर सुखी समाज का निर्माण किया। हमें भी कर्म का दामन थामकर शूरवीरों के मार्ग पर चलना होगा। हमें मानवता और प्रेम पर आधारित समाज का निर्माण करके खूबसूरत जिंदगी को भोगना होगा ।
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