डॉ राम मनोहर लोहिया की जीवनी। Ram Manohar Lohia Biography in Hindi : प्रखर समाजवादी विचारक डॉ0 राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, सन् 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अन्तर्गत अकबरपुर तहसील में हुआ था जो कि वर्तमान में अम्बेडकर नगर जिले में स्थित है। इनके पिता श्री हीरा लाल लोहिया तथा माता श्रीमती चन्द्री देवी थीं। जब ये लगभग ढाई वर्ष के थे, तभी इनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया। माताजी के न रहने पर इनका पालन-पोषण इनकी दादीजी ने किया। इन्होंने मुम्बई से मैट्रिक, बनारस से इण्टरमीडिएट और कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् डॉ0 लोहिया ने बर्लिन (जर्मनी) से सन् 1932 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
डॉ राम मनोहर लोहिया की जीवनी। Ram Manohar Lohia Biography in Hindi
Ram Manohar Lohia |
विश्व मानवता के उपासक व विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ0 राम मनोहर लोहिया बीसवीं सदी के महान समाजवादी चिन्तक थे। उनका जीवन दुःखी, पीडि़त व शोषित जनता को समर्पित था, जिनके सुधार व उत्थान के लिए वे आजीवन प्रयत्नशील रहे। जहाँ अन्याय के खिलाफ विरोध करने का उनमें अदम्य साहस था, वहीं अपनी गलतियों का एहसास होने पर क्षमा माँगने में उन्हें तनिक भी संकोच या डर नहीं लगता था। उनके सपनों में एक ऐसा विश्व था, जिसमें मानव-मानव के बीच किसी प्रकार का कोई भेदभाव न हो।
नाम
|
डॉ0 राम मनोहर लोहिया
|
जन्म
|
23 मार्च, सन् 1910
|
जन्म स्थान
|
अकबरपुर
(वर्तमान-अम्बेदकर नगर)
|
पिता का नाम
|
श्री हीरा लाल लोहिया
|
माता का नाम
|
श्रीमती चन्द्री देवी
|
मृत्यु
|
12 अक्टूबर, सन् 1967
|
जीवन परिचय : प्रखर समाजवादी विचारक डॉ0 राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, सन् 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अन्तर्गत अकबरपुर तहसील में हुआ था जो कि वर्तमान में अम्बेडकर नगर जिले में स्थित है। इनके पिता श्री हीरा लाल लोहिया तथा माता श्रीमती चन्द्री देवी थीं। जब ये लगभग ढाई वर्ष के थे, तभी इनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया। माताजी के न रहने पर इनका पालन-पोषण इनकी दादीजी ने किया।
बचपन से ही यह अपने पिताजी के साथ रहे और उनके जीवन से ही इन्हें राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा मिली। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अकबरपुर के प्राइमरी स्कूल में हुई। अकबरपुर की पढ़ाई समाप्त करने के बाद ये अपने पिता के साथ मुम्बई चले गए। इन्होंने मुम्बई से मैट्रिक, बनारस से इण्टरमीडिएट और कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् डॉ0 लोहिया ने बर्लिन (जर्मनी) से सन् 1932 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में डॉ0 लोहिया का योगदान : डॉ0 लोहिया ने प्रो0 बर्नर जोम्बर्ट के निर्देशन में नमक सत्याग्रह पर अपना शोध कार्य पूरा किया। डॉ0 लोहिया सन् 1933 के प्रारम्भ में स्वदेश लौटे। स्वदेश लौटने के बाद ये समाज के उत्थान हेतु देश में संचालित समाजवादी आन्दोलन के साथ जुड़ गए। देश की स्वतंत्रता से पूर्व ये भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का मुखर विरोध करते रहे। सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी इन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया और इसे आज़ादी की आखिरी लड़ाई के रूप में स्वीकार किया। ये कई माह तक भूमिगत रहे और इसी समय इन्होंने गुप्त रेडियो स्टेशन की स्थापना की। रेडियो के अनेक प्रसारणों के माध्यम से लोगों में नवीन चेतना जाग्रत की और आन्दोलन को जारी रखा। ब्रिटिश काल में ये कई बार जेल भी गए।
देश की स्वतन्त्रता के बाद ये जीवनपर्यन्त समाजवादी आन्दोलन के साथ जुड़े रहे। सन् 1963 में ये फर्रुखाबाद संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव में लोकसभा के सदस्य चुने गए। मौलिक विचारक, क्रान्तिदर्शी और समाजवाद के प्रेरक स्तम्भ डॉ0 लोहिया का 12 अक्टूबर, सन् 1967 को देहावसान हो गया।
डॉ0 लोहिया का स्वभाव : डॉ0 लोहिया एक निर्भीक व्यक्ति थे। वह अपने आस-पास की घटनाओं व परिस्थितियों का निष्पक्ष विश्लेषण करते थे। उनके व्यक्तित्व में किसी भी स्तर पर कथनी और करनी में विरोधाभास नहीं था। वे चाहते थे कि मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन व स्वभाव की अभिव्यक्ति हो। वे इस पक्ष में नहीं थे कि व्यक्तित्व के किसी एक विशिष्ट पक्ष की एकांगी व सीमित वृद्धि हो। उन्होंने अपने कर्म व चिन्तन के द्वारा मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास को सदैव प्राथमिकता प्रदान की।
राम मनोहर लोहिया के राजनीतिक विचार : उनके चिन्तन में गांधी जी के विचारों का गहरा प्रभाव रहा है। अहिंसा के प्रति डॉ0 लोहिया की आस्था, सत्याग्रह के व्यापक प्रयोग में उनका विश्वास, रचनात्मक कार्यक्रमों में उनकी निष्ठा, विकेन्द्रीकरण के आधार पर देश की राजनीति और अर्थनीति में गुणात्मक सुधार लाने का उनका संकल्प गांधी जी की वैचारिक विरासत का प्रमाण है। उनका मत था कि सत्ता का स्रोत केन्द्र नहीं, गाँव की पंचायतें होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि- ‘‘जनतंत्र तभी सफल हो सकता है जब वाणी की पूर्ण स्वतन्त्रता हो और कर्म पर अनुशासन हो।’’ राष्ट्र को जाग्रत करना उनका मूल उद्देश्य था।
वास्तव में उनकी दृष्टि सार्वभौमिक व सम्पूर्ण थी। वह केवल राजनीतिज्ञ नहीं थे। वह भारतीय संस्कृति में डूबकर विश्व संस्कृति की कल्पना करते थे तथा विश्वमानव व विश्वबंधुत्व में विश्वास रखते थे। उनके विचार देश और समाज को एक सूत्र में पिरो सकते हैं क्योंकि उनके विचारों में चिन्तन की गहराई के साथ कर्म की ऊर्जा पैदा करने की क्षमता भी है। उनकी प्रासंगिकता इसलिए भी है कि उनकी समाजवादी विचारधारा समस्याओं का केवल विश्लेषण ही नहीं करती अपितु उनका समाधान भी प्रस्तुत करती है।
राम मनोहर लोहिया की रचनाएं : डॉ0 राम मनोहर लोहिया एक प्रबुद्ध विचारक और लेखक भी थे। इनकी रचनाएँ जीवन के विविध पक्षों से सम्बन्धित हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- इतिहास चक्र, अंग्रेजी हटाओ, धर्म पर एक दृष्टि, मार्क्सवाद और समाजवाद, समाजवादी चिन्तन, संसदीय आचरण आदि।
इन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया तथा उनके लिए लेख भी लिखे। भूमिगत रहते हुए इनकी जंगजू आगे बढ़ो तथा मैं आज़ाद हूँ आदि पुस्तिकाएँ प्रकाशित हुईं। इनकी रचनाओं में मौलिक चिन्तन के भी पर्याप्त अंश हैं। भूमि सेना और एक घण्टा देश को दो उनके मौलिक चिन्तन के प्रमुख उदाहरण हैं।
COMMENTS