राजेन्द्र चोल का जीवन परिचय। Rajendra chola in History hindi : राजराज प्रथम चोलवंश का शासक था। राजेन्द्र चोल इन्हीं के पुत्र थे। 1014 ई0 में पिता की मृत्यु के बाद राजेन्द्र चोल ने राज्य का शासन सँभाला और 1044 ई0 तक शासन किया। इस अवधि में उन्होंने राज्य की शक्ति बढ़ाने, सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने और जनता को सुख-सुविधा प्रदान करने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किये। गंगा के क्षेत्र तक प्राप्त विजय की स्मृति में राजेन्द्र चोल ने ‘गंगईकोण्ड’ उपाधि धारण की तथा गंगईकोण्ड चोल पुरम् नामक नयी राजधानी का निर्माण कराया। उत्तरी भारत में राजेन्द्र चोल की यह विजय वैसी ही थी जैसी उत्तरी भारत के प्रसिद्ध सम्राट समुद्रगुप्त की थी जिन्होंने दक्षिणी भारत में अपना प्रभाव बढ़ाया था।
राजेन्द्र चोल का जीवन परिचय। Rajendra chola in History hindi
हमारे भारत का यश और सम्मान बढ़ाने में देश के सभी भागों की विभूतियों ने योगदान दिया है। आप उत्तरी भारत के ऐसे अनेक शासकों के विषय में जानते हैं जिन्होंने देश को शक्तिशाली बनाने और जनता के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। दक्षिण भारत में भी ऐसे महान शासक हुए हैं, जिनमें राजेन्द्र चोल का नाम विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
राजराज प्रथम चोलवंश का शासक था। राजेन्द्र चोल इन्हीं के पुत्र थे। 1014 ई0 में पिता की मृत्यु के बाद राजेन्द्र चोल ने राज्य का शासन सँभाला और 1044 ई0 तक शासन किया। इस अवधि में उन्होंने राज्य की शक्ति बढ़ाने, सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने और जनता को सुख-सुविधा प्रदान करने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किये।
चोल राज्य दक्षिणी भारत के प्रायद्वीप में स्थित था। यह भाग तीन ओर से समुद्र से घिरा है। राज्य में शान्ति और व्यवस्था बनाये रखने और आक्रमणों से उसकी रक्षा करने के लिये शक्तिशाली सेना का संगठन आवश्यक होता है। राजेन्द्र चोल इस बात को भली-भाँति समझते थे। उनके पिता राजराज प्रथम ने शक्तिशाली सेना का संगठन किया था। इस सेना की सहायता से उन्होंने पाण्ड्य और चेर जैसे पड़ोसी राज्यों और मैसूर तथा आन्ध्र के भागों पर आक्रमण कर वहाँ अपना प्रभाव बढ़ाया था। उन्होंने शक्तिशाली जल सेना का भी संगठन किया था और लंका तथा मालद्वीप पर आक्रमण कर वहाँ अपना अधिकार स्थापित किया था। राजेन्द्र चोल ने अपने पिता की विजय नीति को जारी रखा।
सैनिक शक्ति बढ़ाकर राजेन्द्र चोल ने विजय अभियान को आगे बढ़ाया। इसके लिये उन्हें अनेक युद्ध लड़ने पड़े। इनमें दो युद्ध बहुत ही साहसिक और वीरतापूर्ण थे। इस युद्ध में उनकी सेना समुद्र तट से होकर उड़ीसा की ओर बढ़ती गयी। उड़ीसा को पार कर गंगा तक पहुँच गयी और उन्होंने बंगाल के शासक पर विजय प्राप्त की। गंगा के क्षेत्र तक प्राप्त विजय की स्मृति में राजेन्द्र चोल ने ‘गंगईकोण्ड’ उपाधि धारण की तथा गंगईकोण्ड चोल पुरम् नामक नयी राजधानी का निर्माण कराया। उत्तरी भारत में राजेन्द्र चोल की यह विजय वैसी ही थी जैसी उत्तरी भारत के प्रसिद्ध सम्राट समुद्रगुप्त की थी जिन्होंने दक्षिणी भारत में अपना प्रभाव बढ़ाया था।
राजेन्द्र चोल के दूसरे विजय अभियान से भारत का प्रभाव समुद्र पार देशों पर स्थापित हुआ। वह बहुत दूरदर्शी शासक था। उनके समय में भारत का पश्चिमी और पूर्वी एशिया के देशों से व्यापार बहुत बढ़ गया था। भारत से पश्चिमी एशिया को वस्त्र, मसाले, बहुमूल्य रत्न आदि अनेक वस्तुएँ भेजी जाती थीं। दक्षिणी-पूर्वी एशिया के विभिन्न भागों से भारतीय व्यापारी लम्बे समय से व्यापार करते आ रहे थे। यह व्यापार दक्षिण चीन तक फैल गया था।
जहाजों द्वारा भारत की वस्तुएँ चीन भेजी जाती थीं। चीन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के अन्य देशों से जहाजों द्वारा सामग्री भारत आती थी। भारतीय जहाजों को मलक्का की जलसन्धि (जलडमरूमध्य) से होकर गुजरना पड़ता था। उस समय इस पर श्री विजय का अधिकार था। मलाया प्रायद्वीप और सुमात्रा द्वीप इसी राज्य में सम्मिलित थे। श्री विजय के व्यापारी भारतीय जहाजों के मार्ग में कठिनाइयाँ उत्पन्न करने लगे। भारतीय व्यापारियों ने अपनी सुरक्षा के लिए राजेन्द्र चोल से प्रार्थना की। उन्होंने विशाल सेना भेजी जिसने श्री विजय पर विजय प्राप्त की। अब भारतीय व्यापारी उस मार्ग से सुरक्षापूर्वक व्यापार करने लगे। विदेश के साथ व्यापार के प्रसार से भारत को बहुत लाभ हुआ। चोल साम्राज्य की आय में भी बहुत वृद्धि हुई।
दक्षिण भारत में चोल राज्य का विस्तार करने के साथ ही राजेन्द्र चोल ने उड़ीसा तथा महाकौशल से बंगाल तक अपना अधिकार स्थापित किया। इसके अतिरिक्त उसने श्रीलंका, निकोबारद्वीप, ब्रह्मा, मलाया प्रायद्वीप, सुमात्रा आदि को अपने अधीन किया।
वह महान साम्राज्य निर्माता तो था ही इसके साथ ही वह कुशल शासक भी था। उन्होंने राज्य की शासन-व्यवस्था का उत्तम प्रबन्ध किया। वह मन्त्रिपरिषद् के अधिकारियों की सहायता से विशाल चोल साम्राज्य पर शासन करता था। सुविधा के लिए शासन को कई विभागों में संगठित किया गया था और प्रत्येक विभाग में कई स्तर के अधिकारी होते थे।
साम्राज्य कई प्रान्तों में विभक्त था और ये प्रान्त मण्डलम कहलाते थे। प्रत्येक मण्डलम कई वालानाडुओं में बाँटा गया था। प्रत्येक वालानाडु में निश्चित संख्या में गाँव होते थे। चोल शासन प्रणाली की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि स्थानीय प्रशासन की इकाई के रूप में गाँव का संगठन किया गया था। ग्राम सभा स्वायत्तशासी संस्थाएँ थीं जो गाँव के शासन के विभिन्न अंगों के कार्य की देख-रेख करती थीं। ग्यारहवीं शताब्दी में ग्राम पंचायत की कार्यकुशलता का उदाहरण आज भी ग्राम सभाओं के लिए आदर्श है।
राजेन्द्र चोल ने कृषि की उन्नति की ओर विशेष ध्यान दिया। भूमि का सावधानी से सर्वेक्षण करा उसे दो भागों में बाँटा गया। एक भाग कर योग्य था दूसरा कर के लिए अयोग्य था। उर्वरता तथा पैदा की जाने वाली फसलों के आधार पर कर निर्धारण किया गया। तालाबों से सिंचाई की सुविधाएँ बढ़ाई गई। इससे कृषि का उत्पादन बढ़ा और किसानों की दशा में सुधार हुआ।
व्यापार के विकास की ओर भी राजेन्द्र चोल ने बहुत ध्यान दिया। उसके समय में व्यापारी बहुत सम्पन्न हो गए थे। वे विशाल भारत के अनेक राज्यों से तो व्यापार करते थे, चीन, दक्षिण-पूर्वी एशिया और पश्चिमी एशिया के साथ भी उनका व्यापार बढ़ गया था। कुछ व्यापारी मिलकर एक व्यापार मण्डल बना लेते थे जिसे मणिग्राम कहा जाता था। व्यापार मण्डल प्रायः एक ही व्यवसाय में लगे व्यक्तियों का संगठन होता था। सभी व्यापारियों का धन मिलाकर बैंक- सा बन जाता था। इससे व्यापार के विकास में बहुत सहायता मिली। हर व्यापार मण्डल के पास अपना एक काफिला होता था जो सामान एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का कार्य करता था। इनके पास कुछ सशक्त सैनिक भी होते थे जो काफिले की रक्षा के लिए साथ चलते थे।
राजेन्द्र चोल की सुन्दर शासन व्यवस्था के कारण समाज में शान्ति स्थापित रही। समाज का जीवन सुखी तथा सुविधापूर्ण था। प्राचीन काल के एक शासक द्वारा राज्य की रक्षा और शासन की ऐसी सुन्दर व्यवस्था आश्चर्यजनक है। राजेन्द्र चोल के कार्यों से पता चलता है कि वह बहुत दूरदर्शी तथा कुशल शासक था। उसने देश की भौगोलिक स्थिति का ध्यान रखते हुए रक्षा सेनाओं का संगठन किया। शक्तिशाली जल सेना की सहायता से ही वह समुद्र पार देशों में भारत का प्रभाव तथा व्यापार बढ़ाने में सफल हो सका।
हमारे देश में शक्तिशाली जल सेना के अभाव के कारण यूरोप के लोग यहाँ अपना अधिकार स्थापित करने में सफल हुए। इसी के फलस्वरूप भारत को अंग्रेजों की पराधीनता में रहना पड़ा। राजेन्द्र चोल की शासन प्रणाली तथा समाज-कल्याण के लिए किए गए कार्य आज भी हमारे लिये प्रेरणा के स्रोत हैं।
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