बीरबल साहनी का जीवन परिचय। Birbal Sahni Biography in Hindi : बीरबल साहनी का जन्म 14 नवम्बर, 1891 को पंजाब के भेड़ा (अब पाकिस्तान में) नामक कस्बे में हुआ। इनके पिता रुचिराम साहनी गवर्नमेण्ट कॉलेज, लाहौर में रसायन विज्ञान के अध्यापक थे। माता ईश्वरी देवी कुशल गृहिणी थी। बीरबल की पेड़-पौधों तथा भूगर्भ में रुचि देखकर पिता ने उन्हें बचपन से ही विज्ञान की आवश्यक जानकारियाँ देना आरम्भ कर दिया। सन् 1911 में बीरबल साहनी कैम्ब्रिज में पढ़ने के लिए लंदन चले गए। वहाँ वे बड़ी सादगी से रहते। उन्हें अध्ययन हेतु नब्बे रुपये वार्षिक छात्रवृत्ति मिलती थी जिसमें वे अपना सारा खर्च चलाते थे। कैम्ब्रिज में बीरबल साहनी प्रोफेसर सीवर्ड के सम्पर्क में आए और उन्हें अपना गुरु मान लिया। प्रोफेसर सीवर्ड भी अपने इस होनहार शिष्य को अत्यन्त स्नेह देते थे।
बीरबल साहनी का जीवन परिचय। Birbal Sahni Biography in Hindi
नाम
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बीरबल साहनी
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जन्म
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14 नवम्बर, 1891
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पिता
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रुचिराम साहनी
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माता
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श्रीमती ईश्वरी देवी
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राष्ट्रीयता
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भारतीय
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कार्य क्षेत्र
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पुरावनस्पति विज्ञान
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मृत्यु
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10 अप्रैल सन् 1949
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बीरबल साहनी का जन्म 14 नवम्बर, 1891 को पंजाब के भेड़ा (अब पाकिस्तान में) नामक कस्बे में हुआ। इनके पिता रुचिराम साहनी गवर्नमेण्ट कॉलेज, लाहौर में रसायन विज्ञान के अध्यापक थे। माता ईश्वरी देवी कुशल गृहिणी थी। बीरबल की पेड़-पौधों तथा भूगर्भ में रुचि देखकर पिता ने उन्हें बचपन से ही विज्ञान की आवश्यक जानकारियाँ देना आरम्भ कर दिया।
उनका बचपन : उनका बस्ता डाक टिकटों, कंकड़-पत्थरों का छोटा-मोटा संग्रहालय लगता था। पौधे इकट्ठा करना और पतंग उड़ाना उन्हें बेहद प्रिय थे। डाक टिकट संग्रह करने की धुन के चलते अक्सर वह आधे रास्ते तक जाकर पोस्टमैन को पकड़ लेते, ताकि उनके भाई-बहन या और कोई टिकट न ले लें।
बचपन की इन रुचियों ने धीरे-धीरे वनस्पतियों और भूगर्भ के विस्तृत अध्ययन का रूप ले लिया और संसार के सामने ऐसी प्रतिभा का उदय हुआ जिसे प्रोफेसर बीरबल साहनी के नाम से ‘भारतीय पुरा-वनस्पति का जनक’ माना जाता है।
शिक्षा हेतु विदेश गमन : सन् 1911 में बीरबल साहनी कैम्ब्रिज में पढ़ने के लिए लंदन चले गए। वहाँ वे बड़ी सादगी से रहते। उन्हें अध्ययन हेतु नब्बे रुपये वार्षिक छात्रवृत्ति मिलती थी जिसमें वे अपना सारा खर्च चलाते थे। कैम्ब्रिज में बीरबल साहनी प्रोफेसर सीवर्ड के सम्पर्क में आए और उन्हें अपना गुरु मान लिया। प्रोफेसर सीवर्ड भी अपने इस होनहार शिष्य को अत्यन्त स्नेह देते थे।
भारत वापसी : 1919 ई. में लन्दन विश्वविद्यालय से और 1929 ई. में केंब्रिज विश्वविद्यालय से डी.एस-सी. की उपाधि प्राप्त कर बीरबल साहनी 1919 में भारत लौट आए और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर नियुक्त हो गए। वे छात्रों से अत्यन्त स्नेह करते तथा हर समय उनकी सहायता को तत्पर रहते। छात्र भी उनकी उदारता, विद्वता और सादगी से अत्यन्त प्रभावित रहते। काशी के बाद श्री साहनी लखनऊ आ गए।
प्रोफेसर साहनी शोध के लिए प्राप्त सामग्री एवं अपने शोध-पत्रों को बड़ी सावधानी से रखते थे। जब वे लखनऊ में थे उन्हीं दिनों गोमती नदी में भयानक बाढ़ आई। बाढ़ का पानी बड़ी तेजी से घर में घुसने लगा। घर के सभी सदस्य जहाँ घरेलू सामान और फर्नीचर की सुरक्षा में लगे थे, वहीं प्रोफेसर साहनी अपने शोध-पत्रों और एक खोज में प्राप्त फॉसिल (जीवाश्म) के टुकड़ों को सँभालने में व्यस्त थे।
विशेष :
- साठ लाख वर्ष प्राचीन जीवाश्मों की खोज।
- प्राचीन मुद्राओं की खोज। मुद्रा अनुसंधान पर ‘नेल्सन राइट’’ पदक की प्राप्ति।
- काशी व लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष रहे।
- चार वर्ष ‘राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी’ के सभापति तथा राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थान में उपाध्यक्ष रहे।
प्रोफेसर बीरबल साहनी को भारतीय पुरा-वनस्पति का जनक माना जाता है। उन्होंने बिहार की राजमहल पहाडि़यों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण फॉसिल-पेन्टोजाइली की खोज की। इस प्रकार का दूसरा नमूना अभी तक नहीं मिल पाया है।
साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोबॉटनी की स्थापना : प्रोफेसर बीरबल साहनी में वैज्ञानिक खोजों के प्रति अटूट लगाव था। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन वनस्पति जगत के अनुसंधानों में लगा दिया। उनके मन में ‘पुरा वनस्पति विज्ञान मन्दिर’ की स्थापना करने की दृढ़ इच्छा थी। पण्डित नेहरू के सहयोग से उनका स्वप्न पूरा हुआ। लखनऊ स्थित ‘साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोबॉटनी’ आज भारत ही नहीं वरन् विश्व का महत्त्वपूर्ण शोध संस्थान है।
मृत्यु : कौन जानता था कि इस संस्थान के शिलान्यास के ठीक सात दिन बाद ही प्रोफेसर साहनी इस संसार से विदा ले लेंगे। 10 अप्रैल सन् 1949 को यह महान विज्ञानी स्वर्ग सिधार गए। संस्थान के उद्घाटन के समय जिस स्थान पर खड़े होकर उन्होंने अपना भाषण दिया था, वहीं उनकी समाधि बनाई गई है। उनके द्वारा स्थापित ‘श्री बीरबल साहनी पेलियोबॉटनिक संस्थान’ देश का ऐसा शीर्षस्थ शोध-संस्थान है जहाँ उनकी अमूल्य द्दरोहर आज भी सुरक्षित है। इस महान वैज्ञानिक की स्मृति में भारत के सर्वश्रेष्ठ वनस्पति वैज्ञानिक को ‘बीरबल साहनी पदक’ प्रदान किया जाता है।
क्या है फॉसिल(जीवाश्म) ?
अनेक पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि लाखों वर्षों से भूकम्प आदि के कारण चट्टानों व पत्थरों के बीच दबे रहते हैं समय बीतने पर धीरे-धीरे इनकी छाप इन पत्थरों तथा चट्टानों पर पड़ जाती है। इसी बनावट के छुपे हुये पत्थरों को फॉसिल या जीवाश्म कहते हैं। विज्ञान की ‘पुरा-वनस्पति विज्ञान’ शाखा के अन्तर्गत इन जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है। अध्ययन द्वारा पता लगाया जाता है कि हजारों लाखों वर्ष पूर्व पेड़-पौधे या जन्तु किस प्रकार के थे, तथा उस समय की भू-वैज्ञानिक परिस्थितियाँ कैसी थीं। हमारे दैनिक जीवन की चीजों- शीशा, मिट्टी का तेल, कोयला, खनिज आदि की खोज में भी जीवाश्म अत्यन्त सहायक होते हैं।
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