चाँदबीबी का जीवन परिचय। Chand Bibi Biography in Hindi : चांद बीबी (1550-1599), जिन्हें चांद खातून या चांद सुल्ताना के नाम से भी जाना जाता है अहमदनगर के शासक हुसैन निजामशाह की पुत्री थीं। बाल्यकाल में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इसलिए शासन का काम भी इनकी माँ देखती थीं। माँ ने चाँदबीबी की शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान दिया। थोड़े ही समय में चाँदबीबी रणनीति और राजनीति में कुशल हो गई। चाँदबीबी का विवाह बीजापुर के सुल्तान अली आदिल शाह से हुआ था। विवाह के कुछ दिनों बाद ही सन 1580ईस्वी में आदिल शाह की हत्या कर दी गई और गद्दी के लिए कई दावेदार खड़े हो गए। दरबार के अमीर और सरदार भी अलग-अलग गुटों में बँट गए और आपस में लड़ने-झगड़ने लगे। दुःखी होकर चाँदबीबी अपने भाई के पास अहमदनगर चली गई।
चाँदबीबी का जीवन परिचय। Chand Bibi Biography in Hindi
दक्षिण भारत के छोटे से राज्य अहमदनगर का मुगल साम्राज्य से लोहा लेना बड़े साहस का कार्य था किन्तु अहमदनगर ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि चाँदबीबी जैसी वीरांगना का कुशल नेतृत्व मिल जाय तो अकबर जैसे प्रतापी सम्राट की सेना को भी मुँह की खानी पड़ सकती है।
चांद बीबी (1550-1599), जिन्हें चांद खातून या चांद सुल्ताना के नाम से भी जाना जाता है अहमदनगर के शासक हुसैन निजामशाह की पुत्री थीं। बाल्यकाल में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इसलिए शासन का काम भी इनकी माँ देखती थीं। माँ ने चाँदबीबी की शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान दिया। थोड़े ही समय में चाँदबीबी रणनीति और राजनीति में कुशल हो गई।
चाँदबीबी का विवाह बीजापुर के सुल्तान अली आदिल शाह से हुआ था। विवाह के कुछ दिनों बाद ही सन 1580ईस्वी में आदिल शाह की हत्या कर दी गई और गद्दी के लिए कई दावेदार खड़े हो गए। दरबार के अमीर और सरदार भी अलग-अलग गुटों में बँट गए और आपस में लड़ने-झगड़ने लगे। दुःखी होकर चाँदबीबी अपने भाई के पास अहमदनगर चली गई।
चाँदबीबी ने सोचा था कि अहमदनगर में वे शान्ति से अपना जीवन व्यतीत कर सकेंगी किन्तु शान्ति से जीवन व्यतीत करना चाँदबीबी के भाग्य में नहीं था। कुछ समय बाद ही उनके भाई इब्राहिम की हत्या कर दी गई। दरबार के अमीर अपने-अपने उम्मीदवार को गद्दी दिलाने के लिए षड्यन्त्र करने लगे। दरबार के अमीरों की फूट और आपसी झगड़ों से अहमदनगर की शक्ति घट गई। राज्य की शासन-व्यवस्था पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा।
उस समय दक्षिण भारत में अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा और खान देश प्रमुख राज्य थे। उत्तर भारत में शक्तिशाली सम्राट अकबर का विशाल मुगल साम्राज्य था। अकबर दक्षिण भारत को भी अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था। उसने दक्षिण भारत के राज्यों के पास अपने दूतों से संदेश भेजा कि वे मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर लें जिससे अनावश्यक खून-खराबा न हो। खानदेश को छोड़कर अन्य किसी राज्य ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर ने अपने पुत्र मुराद को दक्षिण विजय के लिए भेजा।
दक्षिण के राज्यों की स्थिति अच्छी नहीं थी। एक राज्य की दूसरे राज्य से शत्रुता थी और राज्यों में दरबारियों के अलग-अलग गुटों से झगड़े चल रहे थे। अहमदनगर की स्थिति भी ऐसी ही थी। मुगल सेना ने अहमदनगर में घेरा डाल दिया था लेकिन दरबार के अमीर एक दूसरे को नीचा दिखाने में अपनी शक्ति बरबाद कर रहे थे। अमीरों का एक दल तो मुगलों से मिल भी गया था। चाँदबीबी ने देखा कि इस प्रकार आपसी फूट से पूर्वजों का स्थापित किया हुआ राज्य हाथ से निकल जाएगा और अहमदनगर का स्वतंत्र राज्य पराधीन हो जाएगा। उन्होंने दरबार के अमीरों तथा सरदारों से आपसी मतभेद भुलाकर अहमदनगर की रक्षा करने का वचन लिया।
यह चाँदबीबी की प्रथम सफलता थी। दरबार में अमीरों को संगठित करने के बाद उन्होंने बीजापुर राज्य से सन्धि की और इब्राहिम शाह के पुत्र को गद्दी पर बैठाकर शासन का कार्य सँभाल लिया। अहमदनगर का मोर्चा सुदृढ़ करने के लिए चाँदबीबी स्वयं बुरका पहनकर घोड़े पर सवार होकर युद्ध की तैयारी देखती थीं। वे मोर्चों पर जाकर सैनिकों का उत्साह बढ़ाती थीं, उनका आह्वान करतीं कि यह राज्य के मान-अपमान का प्रश्न है, आओ ! मेरे साथ आओ और बहादुरी से युद्ध करो। चाँदबीबी के साहस, धैर्य और शौर्य को देखकर सैनिकों का उत्साह बढ़ जाता था।
युद्ध कई दिनों तक चला। विशाल मुगल सेना अहमदनगर के छोटे से राज्य को दबा न सकी। एक दिन मुगल सेना ने सुरंग लगाकर किले की एक दीवार को उड़ा दिया। अहमदनगर के सैनिक घबड़ा गए क्योंकि अब मुगल सेना को रास्ता मिल गया था। मुगल सेना भी खुश थी कि अब तो विजय निश्चित ही है किन्तु चाँदबीबी रात भर दीवार पर खड़े होकर सैनिकों और कारीगरों का उत्साह बढ़ाती रही। रातों-रात किले की दीवार की मरम्मत कर दी गई। मुगल सेना यह देखकर आश्चर्य चकित रह गई।
अहमदनगर का घेरा चलता रहा। न तो चाँदबीबी हार मानने को तैयार थी और न ही मुगल सेना घेरा उठाने को तैयार थी। एक बार अहमदनगर की सेना के पास तोपों के गोले समाप्त हो गए। सैनिकों में निराशा छा गई किन्तु चाँदबीबी ने धैर्य और सूझबूझ से काम लिया। उन्होंने सोने-चाँदी के गोले ढलवाए जिनका प्रयोग तोपों में किया गया।
इधर अहमदनगर की सेना के पास साधन कम हो रहे थे और उधर मुगल सेना ने भी अनुभव किया कि चाँदबीबी पर विजय प्राप्त करना आसान नहीं है। दोनों पक्ष युद्ध से ऊब गए थे। अतः वे सन्धि करने को तैयार हो गए। चाँदबीबी ने बरार का क्षेत्र अकबर को देना स्वीकार कर लिया। सन्धि के बाद बहुत दिनों तक मुगलों ने अहमदनगर की ओर आँख नहीं उठाई। पाँच वर्ष बाद मुगलों ने अहमदनगर पर पुनः आक्रमण किया किन्तु इस समय चाँदबीबी नहीं थीं। दरबार के अमीरों ने षड्यन्त्र करके इस महान महिला की हत्या कर दी थी।
मुगल सम्राट अकबर भी चाँदबीबी की बहादुरी और हिम्मत की इज्जत करने लगा था। कहा जाता है कि अहमदनगर पर विजय प्राप्त करने के बाद अकबर ने उन सरदारों को ढुँढ़वाकर प्राण दण्ड दिया जो चाँदबीबी की हत्या के लिये उत्तरदायी थे।
धन्य है चाँदबीबी जिनके स्वतन्त्रता, प्रेम, धैर्य, शौर्य और साहस के कारण उनके शत्रु भी उनकी इज्जत करते थे।
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